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कहीं बड़ीमें दब न जाय छोटी बीमारी


नयी दिल्ली (एजेन्सियां)। उस मरीज के बारे में सोचिए जिसे डाक्टर ने एक साथ कई बीमारियां बता दी हों। ऐसे में मरीज सबसे बड़ी बीमारी को लेकर सबसे ज्यादा परेशान होता है। उसके आस पड़ोस वाले भी पहली चिंता उस बीमारी की ही करते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में कई बार जो दूसरे-तीसरे नंबर की बीमारी थी वो नजरअंदाज हो जाती है। नतीजा ये होता है कि मरीज पूरी तरह सेहतमंद नहीं हो पाता। अब बीमारी के इस उदाहरण को भारतीय क्रिकेट टीम के संदर्भ में समझते हैं। एकदिनी और टी-२० शृंखला में १-१ की बराबरी के बाद टेस्ट शृंखला में भारतीय टीम की शुरुआत बहुत खराब रही। एडिलेड टेस्ट में भारतीय टीम आठ विकेट के अंतर से हारी लेकिन बड़ा दर्द इस बात का रहा कि दूसरी पारी में पूरी टीम सिर्फ ३६ रन पर सिमट गयी। मेलबर्न टेस्ट से पहले पूरी टीम इंडिया इसी परेशानी का इलाज खोजने में लगी हुई है। अजिंक्य रहाणे को कप्तानी संभालनी है। कोच रवि शास्त्री हैं ही लेकिन क्रिकेट प्रशंसकों को डर ये सता रहा है कि कहीं खराब बल्लेबाजी पर चिंता का बोझ खराब फील्डिंग की चिंता को नजरअंदाज न करा दे। आप ये मत समझिएगा कि ये कहानी सिर्फ एडिलेड टेस्ट मैच की है। सिर्फ एडिलेड टेस्ट मैच में ही फील्डिंग खराब हुई होती तो परेशान होने की जरूरत नहीं थी लेकिन कड़वा सच ये है कि हाल के दिनों में टीम इंडिया की फील्डिंग बहुत ज्यादा खराब रही है। इसी दौरे पर टी-२० शृंखला में भारतीय फील्डिंग के दौरान १० से ज्यादा कैच छूटे थे। इसके बाद वनडे सीरीज में भी टीम इंडिया ने सात कैच टपकाए थे. इस साल की शुरूआत में टीम इंडिया ने न्यूज़ीलैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज में छह कैच छोड़े थे. इसी दौरे पर तीन वनडे मैच में भी टीम इंडिया ने छह कैच छोड़े थे. थोड़ा और पहले के रेकाड्र्स खंगालेंगे तो २०१७-१८ में दक्षिण अफ्रीका शृंखला में भारतीय क्षेत्ररक्षकों ने छह कैच छोड़े थे। और उसी साल इंगलैंड में १० कैच फिसल गये थे। ऐसे में एडिलेड टेस्ट में खराब फील्डिंग पर भी गंभीर चर्चा होनी चाहिए। वरना खराब बल्लेबाजी में सुधार के बाद भी शायद स्थितियां जैसे की तैसे रह जायेगी। जब रवि शास्त्री और विराट कोहली की जोड़ी कोच और कप्तान के तौर पर बनी तो वो जैसा चाहते थे वैसा ही हुआ। बल्कि कोच के तौर पर विराट कोहली ने ही रवि शास्त्री की वकालत की। उनके नाम पर अड़े रहे। वरना अनिल कुंबले के नाम पर भी चर्चा थी। गेंदबाजी कोच से लेकर फील्डिंग कोच हर कोई मनमाफिक मिला। ऐसा भी नहीं है कि मौजूदा टीम में उम्रदराज खिलाडिय़ों की भरमार हो। फिर हाथ से कैच क्यों फिसल रहे हैं। टीम इंडिया के फील्डिंग कोच क्या कर रहे हैं? रवि शास्त्री बतौर हेड कोच इस परेशानी पर क्यों फोकस नहीं कर रहे हैं? कैचेस विन द मैचेस की कहावत भारतीय टीम के खिलाड़ी क्यों भूलते जा रहे हैं? आखिर क्यों कुछ समय पहले जिस टीम की फील्डिंग की तारीफ होने लगी थी कि बिल्कुल बचकानी फील्डिंग कर रही है? इस तरह के सवाल टीम इंडिया के सामने हैं। डर इस बात का है कि खराब बल्लेबाजी का मुद्दा इन सवालों को कहीं पीछे न ढकेल दे।