नई दिल्ली। चालू खरीफ मार्केटिंग सीजन में मोटे अनाज की खरीद का लक्ष्य 13.70 लाख टन निर्धारित किया गया है। जबकि पिछले साल मोटे अनाज की कुल खरीद 6.30 लाख टन हुई थी। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि कम लागत और सीमित प्राकृतिक संसाधनों के सहारे किसान मोटे अनाज उगाकर मोटी कमाई कर सकते हैं। इतना ही नहीं पोषक तत्वों वाले अनाजों की प्रोसेसिंग के क्षेत्र में कई नए स्टार्टप उतर चुके हैं, उन्हें बाजार का पर्याप्त समर्थन मिल रहा है। आगामी 2023 को इंटरनेशनल मिलेट्स वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है।
PM Modi ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में किया था जिक्र
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पिछले महीने रेडियो पर ‘मन की बात’ अपने कार्यक्रम में अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष 2023 का विस्तार से जिक्र किया। उन्होंने मोटे अनाज के प्रति लोगों में बढ़ती उपयोगिता के बारे में बताया कि बाजार में इनसे तैयार खाद्य उत्पादों की मांग में लगातार वृद्धि हो रही है।
किसानों के लिए बड़ा मौका
किसानों के लिए यह शुभ लक्षण है। इस वर्ग की फसलों में लभगग एक दर्जन से अधिक अनाज शामिल हैं। इनकी खेती के लिए कम उपजाऊ जमीन भी काम आ जाती है। कम सिंचाई और सीमित फर्टिलाइजर से भी इन फसलों की खेती में अच्छी पैदावार ली जा सकती है। इस वर्ग की फसलों पर जलवायु परिवर्तन के कुप्रभावों का बहुत सीमित असर पड़ता है।
दलहनी फसलों को भी प्रोत्साहन
हाल ही में सरकार ने फैसला किया था कि त्योहारी सीजन से पूर्व वह दालों की महंगाई पर काबू पाने की कोशिशों के तहत राज्यों को 15 लाख टन चना रियायती दर पर बेचेगी। प्रति किलोग्राम चने पर आठ रुपये की रियायत दी जाएगी। सरकार के इस प्रयास से खजाने पर कुल 1200 करोड़ रुपये का बोझ आएगा। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश अपनी कल्याणकारी योजनाओं के लिए सस्ती दरों पर चने की खरीद कर सकेंगे। योजना का लाभ उठाने के लिए ‘पहले आओ-पहले पाओ’ के आधार पर राज्यों को आवेदन करना करना होगा।
दलहनी फसलों की खरीद का दायरा भी बढ़ाया
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता वाली आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की बुधवार को हुई बैठक में अरहर, उड़द और मसूर की दालों की सरकारी खरीद की मौजूदा अधिकतम सीमा को 25 प्रतिशत से बढ़ाकर 40 प्रतिशत कर दिया गया। यानी इन दालों की अनुमानित पैदावार का 40 प्रतिशत तक सरकार खरीदेगी। इससे किसानों को उनकी उपज का घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य प्राप्त होगा, वहीं खुले बाजार में कीमतें कम नहीं होगी।
चना दाल और बेसन की कीमत पर काबू पाने में मिलेगी मदद
सरकार का यह फैसला काफी कारगर साबित हो सकता है। दरअसल, त्योहारी सीजन में चने की दाल और चना बेसन की मांग में भारी इजाफा होता है, जिससे कीमतें आसमान छूने लगती हैं। इन पर काबू पाने में मदद मिलेगी। साथ ही गरीबों को उनके राशन कार्ड पर दालें बांटी जा सकती हैं, जबकि मिड डे मील और आंगनबाड़ी में दालों का वितरण किया जा सकता है। इसके लिए 15 लाख टन चना आवंटित किया गया है। छूट पर चने का यह वितरण अगले 12 महीने तक अथवा निर्धारित 15 लाख टन का स्टाक खत्म होने तक जारी रहेगा।
चने की रिकार्ड खरीद से तैयार हो गया बड़ा स्टाक
दलहनी फसलों की पैदावार बढ़ाने की कोशिशों के तहत पिछले तीन वर्षों में चना दाल का सबसे अधिक उत्पादन हुआ है। वर्ष 2019 से लेकर वर्ष 2021 के दौरान रबी सीजन में चना की रिकार्ड खरीद की गई है। इसकी वजह से सरकार ने कृषि मंत्रालय के मूल्य समर्थन स्कीम (पीएसएस) और उपभोक्ता मामले मंत्रालय के मूल्य स्थिरीकरण फंड (पीएसएफ) के तहत 30.55 लाख टन चना की खरीद की गई थी, जिससे चना का बड़ा स्टाक तैयार हो गया है। आगामी रबी सीजन में भी चना की अधिक पैदावार को लेकर सरकार आशान्वित है।