ब्रिटेनमें कोरोना वायरसका नया रूप सामने आनेसे न केवल ब्रिटेन, बल्कि विश्वके अनेक देशोंमें काफी चिन्ता बढ़ गयी है, क्योंकि यह नया वायरस ७० प्रतिशत अधिक घातक है। ब्रिटेनके स्वास्थ्यमंत्रीने रविवारको स्वीकार किया कि लन्दन और दक्षिण-पूर्वी इंग्लैण्डमें लगा लाकडाउन महीनोंतक आगे बढ़ सकता है। नया वायरस नियंत्रणसे बाहर हो गया है। प्रधान मंत्री बोरिस जानसनने नागरिकोंसे क्रिसमस प्लान निरस्त करनेको कहा है, क्योंकि नया वायरस तेजीसे फैल रहा है। यह वायरस ब्रिटेनके प्राय: हर हिस्सेमें है। यह नया वायरस आस्ट्रेलिया और यूरोपमें भी आ गया है। विभिन्न देशोंने अपने यहां अन्तरराष्ट्रीय उड़ानोंपर रोक लगा दी है। इसके साथ ही अनेक कदम उठाये जा रहे हैं। ब्रिटेनकी ताजा स्थितिको देखते हुए भारत सरकार सतर्क हो गयी है। स्वास्थ्य मंत्रालय भी सक्रिय हो गया है। सोमवारको संयुक्त निगरानी समूहकी बैठकमें गहन मंत्रणा की गयी और एहतियाती कदम उठाये जानेपर विचार हुआ। स्वास्थ्यमंत्री हर्षवर्धनने कहा कि भारतमें लोगोंको घबरानेकी जरूरत नहीं है। सरकार इस नये खतरेके वायरसको लेकर अलर्ट है। उन्होंने यह भी आश्वास्त किया कि सरकार हर बातके लिए पूरी तरह सजग है। जरूरतके अनुसार पूर्वकी भांति सभी कदम उठाये जायंगे। पैनिककी कोई जरूरत नहीं है। स्वास्थ्यमंत्री हर्षवर्धनका यह भी कहना है कि भारतमें कोरोनाका बुरा दौर अब समाप्तिकी ओर है। टीकाकरणके लिए सभी व्यवस्थाएं ब्लाकसे लेकर जिलेके स्तरतक कर ली गयी हैं। नये वर्षमें जनवरी माहमें इसकी शुरुआत हो सकती है। टीकेकी प्रभावशीलता और सुरक्षाके साथ कोई समझौता नहीं किया जायगा। वैसे भी अन्य देशोंकी तुलनामें भारतकी स्थिति काफी अच्छी है। ठीक होनेवालोंका प्रतिशत ९५.८० है और मृत्यु दर १.४५ प्रतिशत है। कोरोनाके खिलाफ लड़ाईमें भारत निरन्तर बेहतर स्थितिकी ओर अग्रसर है। इसके बावजूद जनताको सावधानी और सतर्कताके मानकपर पूरी तरह खरा उतरना होगा, क्योंकि खतरा अभी समाप्त नहीं हुआ है। नये वायरसका संक्रमण दुनियाके कई देशोंमें शुरू हो गया है इसलिए भारतको भी सख्त कदम उठाने होंगे जिससे कि भारतमें उसके प्रवेशको पूरी तरह रोका जा सके। अन्तरराष्टï्रीय उड़ानोंपर भी सरकारको नजर रखनी होगी। यदि आवश्यकता पड़े तो इसपर रोक भी लगायी जाय। कई देशोंमें अन्तरराष्टï्रीय उड़ानोंपर रोक लगा दी गयी है। भारतमें पहली बार कोरोनाका प्रवेश इन्हीं विभागोंसे आनेवाले यात्रियोंसे हुआ था। इसलिए सरकारको इस विषयपर गम्भीरतासे सोचने और जरूरी निर्णय करनेकी आवश्यकता है।
नेपालमें सियासी संकट
नेपालमें प्रधान मंत्री केपी शर्मा ओली और पूर्व प्रधान मंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंडके बीच चल रहे सत्ता संघर्षके दौरान रविवारको अप्रत्याशित तरीकेसे संसद भंग कर दी गयी। प्रधान मंत्री ओलीने असंतुष्टïों और विपक्षी दलोंको चौंकाते हुए प्रतिनिधि सभाको भंग करनेकी सिफारिश की जिसे राष्टï्रपति विद्या देवी भण्डारीने तत्काल मंजूरी दे दी। इसीके साथ नेपालमें मध्यावधि चुनावका मार्ग प्रशस्त हो गया। देशमें अब अगले साल ३० अप्रैलसे १० मईके बीच मध्यावधि चुनाव कराये जायंगे। ओली सरकारके इस असंवैधानिक फैसलेसे नेपालमें सियासी संकट गहरा गया है। चीनसे बढ़ती नजदीकी और भारत विरोधी स्वरको लेकर ओली जिस रास्तेपर आगे बढ़ रहे थे उसका यही परिणाम होना था। भारतसे सम्बन्ध खराब करनेकी दिशामें ओली इतना आगे बढ़ गये कि उन्हींकी पार्टीमें उनका विरोध मुखर हो गया जो अन्तत: उन्हें ले डूबा। ओलीका संसद भंग करनेकी सिफारिश निश्चित रूपसे असंवैधानिक और विवादास्पद कदम है। नेपाली संविधानमें बहुमत हासिल करनेके बाद कार्यकाल पूरा होनेसे पहले संसद भंग करनेका प्रावधान ही नहीं है। सिर्फ सरकारके अल्पमत या प्रतिनिधि सभाके त्रिशंकु होनेपर ही इसे भंग किया जा सकता है, जबकि हालात अभी ऐसे नहीं थे। नेपालमें तेजीसे बदल रहे घटनाक्रमपर भारतकी पैनी नजर बनी हुई है। नेपालमें राजनीतिक अस्थिरता भारतके लिए अच्छी नहीं है। ओलीकी राजनीति हमेशा भारतविरोधी रही है इसलिए भविष्यके घटनाक्रम भारतके लिए महत्वपूर्ण होंगे। भारतका पूरा प्रयास रहेगा कि वहां चीनकी दखलंदाजी न बढ़े। भारत और नेपालकी धार्मिक और सांस्कृतिक जड़ें काफी गहरी हैं। भारत नेपालका परम्परागत और विश्वसनीय मित्र राष्टï्र है। बावजूद इसके ओलीने चीनके साथ अपने सम्बन्ध प्रगाढ़ किये और भारतकी सुरक्षा चिन्ताओंकी अनदेखी की जो उनपर भारी पड़ी। अब परिस्थितियां बदल रही हैं। नेपालमें चीनकी कुटिल चालकी धार कुंद करनेके लिए भारतको सतर्क दृष्टि रखनी होगी।