सम्पादकीय

मोदी-बाइडेन वार्ता


अमेरिकाके राष्ट्रपति पदका दायित्व सम्भालनेके बाद जो बाइडेन और भारतके प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीके बीच सोमवारको टेलीफोनसे हुई पहली वार्ता अत्यन्त ही महत्वपूर्ण रही। इसका अन्तरराष्ट्रीय सन्दर्भमें विशेष मायने है। साथ ही यह भारत-अमेरिकी सम्बन्धोंके भावी स्वरूपको भी रेखांकित करेगी। वैसे दोनों देशोंके बीच द्विपक्षीय सम्बन्ध पहलेसे ही अच्छे हैं। बाइडेनके कार्यकालमें इन रिश्तोंको और ऊंचाई मिलनेकी सम्भावना है। प्रधान मंत्री मोदीने ट्वीट कर कहा है कि हमने क्षेत्रीय सहयोग और साझा प्राथमिकताओंपर चर्चा करनेके साथ दोनों मित्र राष्ट्रोंके बीच रणनीतिक साझेदारीको और मजबूत बनानेपर सहमति जतायी है। हम जलवायु परिवर्तनके खिलाफ सहयोग और बढ़ानेपर भी राजी हुए हैं। मैं और राष्टï्रपति जो बाइडेन दुनियामें नियम-कानूनपर आधारित अन्तरराष्ट्रीय व्यवस्थाके पक्षधर हैं। हम हिन्द प्रशान्त क्षेत्रमें शान्ति और स्थिरताको बढ़ावा देनेके लिए अपनी रणनीतिक साझेदारीको और मजबूत बनायेंगे। प्रधान मंत्री मोदीके साथ महत्वपूर्ण वार्ताके बाद ह्वïाइट हाउसने एक आधिकारिक बयान जारी कर वार्ताकी प्रमुख बातोंका भी उल्लेख किया है। सभी बिन्दु वर्तमान अन्तरराष्ट्रीय स्थितिके सन्दर्भमें अत्यन्त ही उपयोगी और प्रासंगिक हैं। इनमें कोविड-१९ महामारीके खिलाफ जंगसे लेकर वैश्विक अर्थव्यवस्था, आतंकवाद, लोकतांत्रिक संस्थाओंकी रक्षा और वैश्विक चुनौतियोंसे निबटनेमें प्रभावी सहभागिता जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे भी हैं। इस वार्ताके माध्यमसे चीन सहित उन अन्य देशोंको भी कड़ा सन्देश दिया गया है, जो अन्तरराष्टï्रीय नियमोंका उल्लंघन करनेसे बाज नहीं आते हैं। हिन्द प्रशान्त क्षेत्रमें चीनके बढ़ते हस्तक्षेपपर प्रहार किया गया है, क्योंकि चीनके कारण ही वहां शान्ति और स्थिरताको खतरा उत्पन्न हो गया है। इसी प्रकार म्यांमारमें कानूनके शासन और लोकतांत्रिक प्रक्रियाको बरकरार रखनेपर भी जोर दिया गया है। दोनों देशोंके नेताओंने अपने लोगोंकी बेहतरीके लिए मिलकर काम करनेपर सहमति जतायी है। नि:सन्देह आज पूरा विश्व अनेक विषम चुनौतियोंका सामना कर रहा है जिनका एकजुट होकर ही सामना किया जा सकता है। इसके लिए वैश्विक एकजुटता जरूरी है। चीनके राष्टï्रपति शी जिनपिंगसे अभी बाइडेनकी वार्ता नहीं हुई है लेकिन उनके बारेमें बाइडेनकी यह टिप्पणी विशेष रूपसे कटाक्ष है कि जिनपिंग लोकतांत्रिक सोचमें पले-बढ़े नहीं हैं। बाइडेन अपने कार्यकालमें चीनके प्रति विशेष रूपसे आक्रामक रहेंगे जिसका संकेत उन्होंने अपनी विदेश नीतिके सन्दर्भमें भी किया है।

प्राणघातक जीवाश्म ईंधन

पूरे विश्वमें पर्यावरण प्रदूषण मानव जीवनके लिए गम्भीर खतरा बना हुआ है। जीवाश्म ईंधनसे हुए प्रदूषणके अध्ययनमें इसकी भयावहता और इससे होनेवाली मौतोंका जो आंकड़ा प्रस्तुत किया गया है वह विचलित करनेवाला है। हार्वर्ड विश्वविद्यालय, यूनिवर्सिटी आफ बर्मिंघम तथा यूनिवर्सिटी कालेज लंदनके एक अध्ययनमें दावा किया गया है कि दुनियाभरमें ८० लाख लोगोंकी मौतका कारण प्राणघातक जीवाश्म ईंधन है। जीवाश्म ईंधनसे सर्वाधिक मौतें चीन और भारतमें हुई है। अकेले भारतमें हुई सालाना करीब २५ लाख मौतें गम्भीर चिन्ताका विषय हैं जिनके लिए जीवाश्म ईंधन विशेषकर डीजल और कोयलेके जलनेसे पैदा प्रदूषण जिम्मेदार है। अध्ययनमें इस प्रदूषणसे भारतमें ३०.७ प्रतिशत मौतें होनेका दावा किया गया है जो करीब २४.५८ लाखके करीब है। सबसे ज्यादा ४.७१ लाखसे अधिक मौतें उत्तर प्रदेश, बिहारमें २.८८ लाखसे अधिक, हरियाणामें एक लाखसे अधिक, झारखण्डमें ९६ हजार और उत्तराखण्डमें १६,५५३ मौतें हुई हैं। मौतोंका यह आंकड़ा नीति-निर्माताओंके लिए जीवाश्म ईंधन त्यागने और स्वच्छ ईंधनका इस्तेमाल बढ़ानेका संकेत है। वायु प्रदूषण विश्वकी सबसे जटिल समस्या है। विश्वकी लगभग ९५ प्रतिशत आबादी जहरीली हवाकी शिकार है। इससे स्वास्थ्य सम्बन्धी बीमारियां भी बहुत होती हैं जो प्राणघातक साबित होती हैं। भारतमें वायु प्रदूषणकी स्थिति काफी बदतर है फिर भी इसके रोकथामके लिए अपेक्षित प्रभावी कदमका नहीं उठाया जाना चिन्तित करनेवाला है। प्रकृतिका अंधाधुन्ध दोहन प्रदूषणका एक प्रमुख कारण है। इसपर रोक लगानेकी आवश्यकता है। मानव जीवनकी सुरक्षाके लिए वातावरणमें आक्सीजनकी प्रचुर मात्रामें उपलब्धता बहुत जरूरी है। छोटे-छोटे उपायोंसे भी पर्यावरणकी रक्षा सम्भव है। व्यावसायिक वृक्षोंके साथ औषधियुक्त और फलदार वृक्ष लगाना समयकी मांग है जिससे वायुमें घुले कार्बन डाई आक्साइडकी मात्रा कम की जा सके और आक्सीजनका अधिकसे अधिक उत्सर्जन हो सके। पर्यावरण शुद्ध और स्वास्थ्यवर्धक बनानेका गुरुतर दायित्व समाजके सभी वर्गोंपर है। इसके लिए लोगोंमें जागरूकता जरूरी है।