सम्पादकीय

अमेरिका है हमारा कर्जदार


विष्णुगुप्त 

अभी हमारे बीच राष्ट्र गौरवका अद्भुत क्षण उपस्थित हुआ। हालांकि गौरवके क्षणपर देशमें विस्तृत चर्चा नहीं हुई। राजनीति खामोश रही। आम जनताको उस गौरवसे जुड़ी खबरसे वचिंत रखा गया। जबकि इसपर विस्तृत चर्चा अपेक्षित थी। राजनीतिमें इस खबरपर खामोशी गंभीर चिंताका विषय है। देशमें छोटे-छोटे नकरात्मक विषयोंपर भी, जिससे न तो देशकी उन्नति जुड़ी होती है, न देश-समाजका कल्याण जुडा हुआ होता है, फिर भी उसपर गंभीर चर्चा होती है, राजनीति भी उफान लेती है, जिसकी गूंज आम जनताके कानोंतक पहुंचायी जाती है। दरअसल हम वामपंथी कुदृष्टिका लम्बे समयसे शिकार है। वामपंथी कुदृष्टि  देशभक्तिको गैर-जरूरी ही नहीं, बल्कि सांप्रदायिकताकी नजर देखती है। राष्ट्रकी गौरव, उन्नति और प्रेरणाके प्रतीककी यह खबर अमेरिकासे जुडी हुई है। उस अमेरिकासे जो दुनियाका चौधरी है, जिसके धनपर न जाने कितने गरीब और विकासशील देश पलते हैं, जिसके सामरिक शक्तिसे न जाने कितने देश सुरक्षित रहते हैं। अमेरिका आज भारतका कर्जदार है। पहली दृष्टिमें राष्ट्रकी समृद्धिको प्रमाणित करनेवाली इस खबरपर विश्वास करना मुश्किल लगता है। परन्तु यह खबर पूरी तरहसे सही है। भारतका अमेरिकापर कोई एक-दो करोड़का नहीं, बल्कि करीब १६ लाख करोड़का कर्ज है। भारत कभी अमेरिकाकी आर्थिक विध्वंसके समयमें मददगार साबित हुआ था। बराक ओबामाके समयमें जब अमेरिकाका आर्थिक विध्वंस हुआ था तब भारतने ही अमेरिकाकी अर्थव्यवस्थाको मजबूती प्रदान की थी। इसी कारण अमेरिकाके तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा और भारतीय प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीकी दोस्ती काफी चर्चित हुई थी, ओबामा भारतके अच्छे दोस्त साबित हुए थे। ओबामाने दोस्तीकी जो मिसाल कायम की थी, भारतके साथ दोस्तीकी जो आधारशिला रखी थी, उसपर डोनाल्ड ट्रम्प भी चले और अब अमेरिकाके वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन भी चल रहे हैं। यह भारतकी बढ़ती शक्ति और गौरवका एक अन्य प्रमाण भी है।

राष्ट्रके मूल्यांकनका आधार संपूर्णतामें होता है। भारत जैसे राष्ट्रके मूल्याकंनका आधार कोई एक कोण नहीं, बल्कि चार कोण होने चाहिए। पहला प्राचीनकाल, दूसरा अतीत, तीसरा वर्तमान और चौथा भविष्य काल। प्राचीन हमारा समृद्ध रहा है, प्राचीन कालसे इतिहास हमारा समृद्धिके प्रतीक है। हम दुनियाके लिए विश्व गुरू थे। ज्ञान-विज्ञानके क्षेत्रमें हमारा कोई तोड़ नहीं था। हमारा गुरुकुल दुनियाके लिए प्रेरणास्रोत था। एक गुरुकुलमें दस-दस हजार छात्र एक साथ बैठकर शिक्षा ग्रहण करते थे। भारतको सोनेकी चिडिय़ा कहा जाता था। भारतमें दूधकी नदियां बहती थीं। फिर अतीत नकरात्मक, पिछड़ेपनका प्रतीक क्यों बना। सोनेकी चिडिय़ा कैसे दफन हुई। इन प्रश्नोंके उत्तर आसान है। हम आक्रमणकारियोंका आसान शिकार हो गये। हम आयतित संस्कृत और जिहादी मानसिकताका शिकार हो गये। विदेशी आक्रमणकारी आतातायी एवं विकृत थे। विदेशी आक्रमणकारियोंको हमारी समृद्धि एवं गौरव गाथा स्वीकार नहीं था। इसी कारण नालंदा और तक्षशिला जैसे हमारे गौरव प्रतीकोंको जला दिया गया। ज्ञान-विज्ञानकी गुरुकुल पाठशालाका विध्वंस कर दिया गया। इसके बाद अंग्रेजी शासनकालमें भी भारत विध्वंसकी कोई कसर नहीं छोड़ी गयी। अग्रेजोंने हमारे उद्योग-धंधों, खनिज संपदाओंका दोहन किया। अपनी शिक्षा प्रणाली थोपनेकी भरपूर कोशिश की थी। परिणामत: हम दुनियाके सामने लगातार पिछड़ते चले गये। विक्षिप्त, भ्रष्ट और निकम्मी राजनीतिसे भी हम त्रस्त रहे हैं। देशको लूटनेवाले तत्वोंकी सरकार बनती रही। हमारी विरासत विध्वंसका शिकार होती रही। देशके स्वाभिमानपर चोटपर चोट पहुंचती रही। इसीका प्रमाण है कि हम ब्रिटेनके हाथों सोना गिरवी रखने जैसे अपमान भी झेले हैं। जब हमारी अर्थव्यवस्था विध्वंस हुई थी, विदेशी कर्ज लौटानेका संकट था। कोई देश हमें विदेशी मुद्रा देनेके लिए तैयार नहीं था तब भारत सोना गिरवी रखनेके लिए बाध्य हुआ। दुनियाके सामने हमारी स्थिति सपेरेवाले देशके रूपमें थी। हम शक्तिशाली देशोंके सामने अपमान झेलनेके लिए भी विवश थे।

आजका वर्तमान हमारा गौरवशाली है। हमने चीनको औकात दिखायी। चीन अपनी सेना वापस करनेके लिए बाध्य हुआ। पाकिस्तानको उसकी औकात दिखायी। अपनी अर्थव्यवस्था मजबूत की, उत्पादन बढ़ाया। भारत कभी सिर्फ हथियार ही खरीदता था परन्तु आज भारत हथियार निर्यात कर रहा है। कोरोना कालमें हमने अपनी अर्थव्यवस्थाको मजबूत रखा, अपने नागरिकोंको मुश्किल समयमें सहारा दिया। हमने दुनियाके सामने दो-दो वैक्सीन बनाकर चत्मकारको सच कर दिखाया है। हमने गरीबसे लेकर विकसित देशोंको भी कोरोना वैक्सीन आपूर्ति की। भारतने यह साबित कर दिया है कि विश्वको महामारी या संकटसे बाहर निकालनेकी शक्ति भी रखता है। बड़ी बात हमारी सामरिक शक्ति और कूटनीति की है। अमेरिका ही नहीं, बल्कि दुनियाकी हर शक्तिशाली देश भारतके साथ दोस्ती करना चाहता है। ऐसा इसलिए संभव हुआ है कि देशकी सत्तापर देशभक्तिकी शक्तिका उदय हुआ है और दुनियाके सामने हमारी देशभक्ति प्रेरणाका स्रोत बन गयी है। ऐसेमें शक्तिशाली और सर्वश्रेष्ठ भारतको प्रणाम है।