सम्पादकीय

ममताकी बदलती रणनीति


ए. कुमार 

तृणमूल कार्यकर्ताओं और समर्थकोंके एक वर्गकी आक्रामकता देखी जा सकती है। दो राय नहीं कि ममताको चोट लगी। उन्होंने रणनीतिके तहत लोगोंकी सहानुभूति पाने तथा अपने कार्यकर्ताओंको भाजपाके खिलाफ आक्रामक करनेके लिए इसका उपयोग भी किया है। बयान दे दिया कि उनपर चार-पांच लोगोंने हमला किया। वहांसे कोलकाता अस्पताल जाते, अन्दर बिस्तरपर सिर और पैरोंपर पट्टियां-प्लास्टरके साथ बीमार अवस्थामें लेटे हुए, डाक्टरों द्वारा देखभाल किये जाते और फिर ह्वीलचेयरपर बाहर निकलती तस्वीरें अपने-आप जारी नहीं हुईं। इसके साथ उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकोंकी अपीलवाला अपना एक वीडियो संदेश भी जारी किया। अस्पतालसे बाहर होनेके पहले उन्होंने बयान दिया कि उन्हें चोट लगी है, लेकिन चुनाव अभियानमें अपना सारा कार्यक्रम पूरा करेंगी। ह्वïीलचेयरपर उन्होंने चुनाव प्रचार आरम्भ भी कर दिया। वहीं, आयोगने ममताके सुरक्षा निदेशक, स्थानीय पुलिस अधीक्षकको निलंबित तथा जिलाधिकारी सहजिला चुनाव अधिकारीका तबादला अवश्य किया है, किन्तु उसके कारण अलग हैं। आयोगने माना है कि उनकी सुरक्षा जिम्मेदारी संभाल रहे अधिकारियोंको गैर-बुलेटप्रूफ या बख्तरबंद विहीन गाड़ीका इस्तेमाल तथा सुरक्षाको खतरा पहुंचानेवाले व्यवहार उन्हें नहीं करने देना चाहिए था। चुनाव आयोगके पर्यवेक्षकोंकी रिपोर्टमें किसी तरहके हमलेको नकारा गया है। इसके पूर्व पश्चिम बंगाल पुलिसकी रिपोर्ट भी यही कह रहा है। टीवी चैनलोंने उनके रोड शोसे लेकर दुर्घटनाग्रस्त होनेतकके वीडियोके एक-एक अंशको दिखाया और विश्लेषित किया है। उसमें दिख रहा है कि चोट लगनेके तुरंत बाद वह गाड़ीकी अगली सीटपर पालथी लगाकर बैठी हैं। जैसे ही मीडिया आती है उनका पैर नीचे हो जाता है। इसके पहले गाड़ीके धीरे-धीरे आगे बढऩे, भीड़के उनके निकट आनेकी कोशिशें, उसमें ममताका दरवाजा खोलकर एक पैर दरवाजा और एक अन्दर रखकर खड़ा होना, दो पिलरोंका सामने आ जाना। यह सारे दृश्य लोगोंने देखे हैं। गाड़ी चाहे जितनी धीमी गतिमें हो दरवाजेपर खड़ा होना हमेशा जोखिमभरा होता है। इसमें दुर्घटनाकी संभावना पूरी तरह मौजूद रहती है। किसी वीडियोमें हमलाका छोटा अंश भी नजर नहीं आया है। स्थानीय लोग बार-बार बोल रहे हैं कि उनपर किसी तरहका हमला नहीं हुआ। वह बता रहे हैं कि सामने पिलर आ गये जिनसे दरवाजा टकराया या टकरानेवाला था कि अचानक बंद हुआ और उसमें उनको चोट लग गयी। किन्तु ममताके नेतृत्ववाली तृणमूल कांग्रेसने एक स्वरमें इसे भाजपाका हमला करार देना शुरू कर दिया।

प्रधान मंत्रीके ब्रिगेड मैदानमें दिये गये भाषणको उद्धृत करके साबित करनेकी कोशिश की गयी कि उनपर हमलेकी योजना बड़े स्तरपर बनी थी। प्रधान मंत्रीने उसमें व्यंग्यत्मक लहजेमें दीदीकी स्कूटी नंदीग्राम पहुंचने तथा नंदीग्राममें ही उसे दुर्घटना ग्रस्त हो जानेकी नियति बताया था। कल्पना भी नहीं की जा सकती कि प्रधान मंत्रीके स्तरपर हमलेकी साजिश रची जायगी। पश्चिम बंगालकी विरोधी पार्टियोंने भी ममताके आरोपोंको नकार दिया। जिस तरह तृणमूल कांग्रेसने चुनाव आयोगको कटघरेमें खड़ा किया उसका भी सन्देश नकारात्मक गया है। चुनाव आयोगने कठोर शब्दोंमें न केवल प्रतिवाद किया, बल्कि तृणमूलके रवैयेकी आलोचना भी की। ममताके घायल होनेकी खबर आनेके तुरन्त बाद चुनाव आयोगने प्रदेश पुलिससे रिपोर्ट मांगी। तृणमूलका यह आरोप गलत साबित हुआ कि ममताके कार्यक्रमके समय वहां पर्याप्त मात्रामें पुलिसकर्मी मौजूद नहीं थे। वहां जिला पुलिस अधीक्षक और पुलिस महानिरीक्षक जैसे अधिकारी बिना पुलिसकर्मियोंके उपस्थित नहीं रहे होंगे। मुख्य मंत्रीके नाते वह भारी सुरक्षा घेरेमें चलती हैं। उन्हें जेड प्लसकी सुरक्षा प्राप्त है। साथ ही पुलिस प्रशासनके लिए मुख्य मंत्रीकी कोई भी यात्रा प्रदेशके लिए सर्वप्रमुख सुरक्षा चुनौती होती है। इसमें हमला हो भी जाय तो हमलावर पकड़े जायंगे। इस प्रकार ममता बनर्जीपर हमलेकी बात किसीके गले नहीं उतरी।

प्रश्न है कि आखिर ममताने ऐसा क्यों किया होगा। आज पूरे बंगालकी तरह नंदीग्रामकी लड़ाई भी एकतरफा नजर नहीं आ रही। जब शुभेंदु अधिकारीके भाजपामें जानेके बाद उन्होंने नंदीग्रामसे लडऩेकी घोषणाकी तो ऐसा लगा कि चुनाव उनकी तरफ एकपक्षीय होगा। करीब ३४ प्रतिशत मुस्लिम मतदाता उनके लिए एकमुश्त मतदान करेंगे। किंतु धीरे-धीरे साफ हुआ कि शुभेंदु वहां बिल्कुल कमजोर उम्मीदवार नहीं है। नंदीग्राम संघर्षमें वह अगुवा और ममताके साथी थे। पूर्वी मेदिनीपुर जिलासे भी आते हैं जिसमें नंदीग्राम पड़ता है। स्थानीय लोगोंपर उनकी पकड़ गहरी है। ममता सरकारमें तीन मंत्रालय संभालनेवाले शुभेन्दु छोटे कदके व्यक्ति नहीं हो सकते। इसी तरह संपूर्ण पश्चिम बंगालमें भी तृणमूल कांग्रेसको विजयकी राह आसान नहीं दिख रही। ममताने लोकसभा चुनावमें भाजपाकी वैसी विजयकी सपनोंमें भी कल्पना नहीं की थी। जिस तरह उनकी पार्टीसे बड़े-बड़े नेता भाजपाके साथ चले गये उसका असर पूरे चुनावपर है। दूसरी ओर कांग्रेस, वामदल और आईएसएफ गठबंधन भी उनके लिए सिरदर्द बन गया है। माकपाने नीतिके तहत युवा उम्मीदवारोंको प्रमुखता दिया है। कुछ सीटोंपर लड़ाई त्रिकोणीय हो गयी है। २८ फरवरीको ब्रिगेड मैदान रैलीमें जितनी संख्यामें लोग आये उसकी उम्मीद कांग्रेस और वामदलोंने भी नहीं की थी। इसमें मुस्लिम समुदायकी उपस्थिति अच्छी खासी थी। ममता और तृणमूलके रणनीतिकारोंकी चिन्ता इससे भी बढ़ी है। इस गठबंधनकी रणनीति है कि विधानसभामें किसी दलको बहुमत न आये और उन्हें कमसे कम इतनी सीटें मिलें जिससे भविष्यकी सरकार बनानेमें उनकी भूमिका हो सके। यह मोर्चा भाजपाका वोट कम ही काटेगा। ज्यादा ममताके हिस्सेका वोट इसके खाते जायगा। शुभेंदु अधिकारीने ममतासे अलग होनेके बाद स्वयंको बेहतर प्रशासक, विकासके प्रति समर्पित होनेके साथ बड़े हिन्दू चेहरेके रूपमें स्थापित करनेकी रणनीति अपनाया है। वह बंगलादेशी घुसपैठियों, रोहिंग्या, जिहादी और दंगाई मुस्लिम तत्वोंका रिश्तेदार बताकर ममतापर हमला कर रहे हैं। ममता भाजपाके दबावमें पहलेसे ही स्वयंको निष्ठावान हिंदू साबित करनेकी कोशिश कर रहीं हैं। नंदीग्राममें भी डर पैदा हुआ है कि यदि भाजपाका यह प्रचार लोगोंतक पहुंच गया कि ममता ३४ प्रतिशत मुस्लिम वोटके कारण यहां आयी हैं तो हिंदू वोटोंका ध्रुवीकरण उनके खिलाफ हो सकता है। इसका असर प्रदेशके अन्य जगहों भी हो सकता है। इसलिए उन्होंने नंदीग्राममें मंचसे चंडी पाठ किया। यह कहा कि मैं ब्राह्मïण हूं, प्रतिदिन चंडी पाठ करके घरसे निकलती हूं, कोई मुझे हिंदुत्व न सिखाये। अस्पतालसे बाहर आनेके बाद ह्वीलचेयरके साथ अपनी हर सभामें वह हिंदू और हिंदुत्वकी व्याख्या करती हैं, भाजपाको नकली हिंदूवादी साबित करते हुए स्वयंको असली हिंदूवादी घोषित कर रहीं हैं। इस तरह चंडीपाठसे चोटतककी उनकी राजनीति और रणनीति आसानीसे समझमें आ जाती है।