रांची

क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट में कोई बदलाव नहीं किया गया : आईएमए


क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट में कोई बदलाव नहीं किया गया : आईएमए
रांची। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के प्रदेश अध्यक्ष शम्भू प्रसाद ने कहा कि क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट केंद्र सरकार की ओर से 18 मई 2018 को पारित हुआ। प्रत्येक राज्य को अपने संसाधन एवं परिस्थितियों के आधार पर बदलाव का अधिकार दिया गया। झारखंड में व्यवस्थागत तथा स्थानगत परिस्थितियों के अनुरूप कोई बदलाव नहीं किया गया एवं इस एक्ट को समस्त रूप से पारित किया गया। सोमवार को प्रेसवार्ता में उन्होंने कहा कि पूर्व में भी इस संबंध में कई पत्राचार विभिन्न स्तरों पर किया जा चुका है। इसके अनुपालन में उत्पन्न होने वाली कठिनायों पर विस्तृत विचार विमर्श के बाद कई बिन्दुओं पर सरकार से विशेष निवेदन है। इसके प्रावधानों का अक्षरतः अनुपालन एकल क्लीनिकों, डॉक्टर दम्पति द्वारा चलाए जा रहे छोटे अस्पतालों, नर्सिंग होम के लिए कठिन ही नहीं असंभव है। अतः पूर्व कि भाति हम पुनः यह मांग रखते हैं कि हरियाणा सरकार द्वारा 50 शैय्या तक के अस्पतालों को दिए जाने वाले छूट झारखंड में भी लागू किया जाए। बड़े अस्पतालों को भी इसके पूर्ण अहर्ताओं के अनुपालन के लिए पांच वर्ष की शिथिलता अवधि दी जाए। पारा मेडिकल कर्मियों की भारी कमी है, अतः पूर्व कि भाती प्राइवेट क्लिनिक, नर्सिंग होम एवं अस्पतालों द्वारा निर्गत प्रमाण पत्र को इनकी योग्यता प्रमाण पत्र के रूप में स्वीकार किया जाए।  निजी स्वास्थ संस्थाओं के मानक का निर्धारण समतुल्य सरकारी संस्थाओं के अनुरूप किया जाए। क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट के विषंगतियों का प्रतिकात्मक चित्रण एकल क्लिनिक, छोटे अस्पताल के सामने क्लिनिक छोटे अस्पताल के सामने के सड़क पर एक दुर्घटना होती हैं। इसमें एक मोटरसाईकल सवार को गंभीर चोटें आती हैं, उसे तक्काल छोटे अस्पताल में लाया जाता है। सामान्य परिस्थितियों में उचित और तर्कसंगत कार्यवाही यह होती की उसे त्वरित त्तत्कालीन प्राथमिक उपचार देकर किसी बड़े अस्पताल में रेफेर किया जाता, लेकिन इस नए क्लीनिकल एस्टाब्लिसटमेंट एक्ट केतहत यह एक गलत एवं आपराधिक मामला बनेगा जिसके अंतर्गत मरीज को एस्टेबल नहीं होने तक जो की वैसे अस्पताल में संभव नहीं होगा। उसे रेफर करना आपराधिक कर्तव्य बनेगा जबकि एस्टेबल होने की कोई निश्चित मापदंड बना पाना भी संभव नहीं हैं और नहीं तो हरेक गंभीर मरीज का उपचार छोटे से छोटे स्वास्थ इकाई में संभव हैं। उन्होंने कहा कि हमारी मांग है कि मेडिकल कॉलेज के विशेषज्ञों तथा डॉक्टरों की सबसे बड़ी प्रतिनिधि संस्था आईएमए के साथ इसके तकनिकी वारीकिया एवं वास्तविक परिस्थितियों पर विमर्श करते हुए इसमें अन्य आवश्यक संशोधन भी किया जाए, ताकि शुलभ चिकत्सा सेवा समाज के अंतिम व्यक्ति तक प्रभावी रूप से पहुंच सके।