अशोक ‘प्रवृद्ध’
मार्गशीर्ष शुक्ल पक्षकी एकादशीको मोक्षदा एकादशी कहा जाता है। इसी दिन द्वापर युगमें भगवान श्रीकृष्णने अर्जुनको गीताका उपदेश दिया था। इसी कारण मोक्षदा एकादशीके दिनको गीता जयंतीके नामसे भी जाना जाता है। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्णके मुखसे गीताका जन्म कुरुक्षेत्रमें हुआ था। भगवानने युद्धसे विचलित अर्जुनको उपदेश दिये वह श्रीमद्भगवद गीताके नामसे जाना जाता है। यह महाभारतके भीष्मपर्वका अंग है। गीतामें १८ अध्याय और ७२० श्लोक हैं। श्रीमद्भगवद्गीताके १८ अध्यायोंमेंसे पहले छह अध्यायोंमें कर्मयोग, फिर अगले छह अध्यायोंमें ज्ञानयोग और अंतिम छह अध्यायोंमें भक्तियोगका उपदेश है। गीता जयंती श्रीमद्भगवद्गीताका प्रतीकात्मक जन्म दिवस है। यह मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशीपर मनाया जाता है। कुरुक्षेत्रमें महाभारतके युद्धक्षेत्रके दौरान भगवान कृष्णने अर्जुनको भगवत गीताका ज्ञान दिया था। गीताका उपदेश अत्यन्त पुरातन योग है। भगवान कहते हैं इसे मैंने सबसे पहले सूर्यसे कहा था। सूर्य ज्ञानका प्रतीक है अत: श्री भगवान्के वचनोंका तात्पर्य है कि पृथ्वी उत्पत्तिसे पहले भी अनेक स्वरूप अनुसंधान करनेवाले भक्तोंको यह ज्ञान दे चुका हूं। यह ईश्वरीय वाणी है जिसमें सम्पूर्ण जीवनका सार है एवं आधार है। जन्म-मरण, आदि-अंत, आत्मा-परमात्मा, प्रकृति आदिसे सम्बन्धित सभीके प्रश्नोंके उत्तर सहज ढंगसे श्री भगवान्ने धर्म संवादके माध्यमसे दिये हैं। गीताकी गणना प्रस्थानत्रयीमें की जाती है, जिसमें उपनिषद् और ब्रह्मïसूत्र भी संमिलित हैं। अतएव भारतीय परंपराके अनुसार गीताका स्थान वही है जो उपनिषद् और ब्रह्मïसूत्रोंका है। गीता माहात्म्य और पौराणिक ग्रन्थोंमें उपनिषदोंको गौ और गीताको उसका दुग्ध कहा गया है। मान्यता है कि उपनिषदोंकी जो अध्यात्म विद्या थी, उसको गीता सर्वांशमें स्वीकार करती है। संसारके स्वरूपके संबंधमें अश्वत्थ विद्या, अनादि अजन्मा ब्रह्मïके विषयमें अव्ययपुरुष विद्या, परा प्रकृति या जीवके विषयमें अक्षरपुरुष विद्या और अपरा प्रकृति या भौतिक जगतके विषयमें क्षरपुरुष विद्या आदि उपनिषदोंकी अनेक विद्याएं गीतामें हैं। उसे ही पुष्पिकाके शब्दोंमें ब्रह्मïविद्या कहा गया है। इस प्रकार वेदोंके ब्रह्मïवाद और उपनिषदोंके अध्यात्म, इन दोनोंकी विशिष्ट सामग्री गीतामें संनिविष्ट है। श्रीमद्भगवद् गीता विश्वमें एकमात्र ऐसा ग्रन्थ है जिसकी जयंती मनायी जाती है। युद्धके समय अपने परिवारको सामने देख मोहमें फंसे अर्जुनको मार्ग दिखानेके लिए भगवान श्रीकृष्णने अर्जुनको गीता ज्ञान दिया था। ब्रह्मïपुराणके अनुसार अत्यधिक महत्व रखनेवाली मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशीके दिन द्वापर युगमें भगवान श्रीकृष्णके द्वारा अर्जुनको श्रीमद्भगवद्गीताका उपदेश दिये जानेके कारण यह तिथि गीता जयंतीके नामसे भी प्रसिद्ध है। यह एकादशी मोहका क्षय करनेवाली होनेके कारण इसका नाम मोक्षदा रखा गया है। इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण मार्गशीर्षमें आनेवाली इस मोक्षदा एकादशीके कारण ही कहते हैं मैं महीनोंमें मार्गशीर्षका महीना हूं। इसके पीछे मूल भाव यह है कि मोक्षदा एकादशीके दिन मानवताको नयी दिशा देनेवाली गीताका उपदेश हुआ था। भगवदगीताके पठन-पाठन श्रवण एवं मनन-चिंतनसे जीवनमें श्रेष्ठताके भाव आते हैं। गीताका चिंतन अज्ञानताको हटाकर आत्मज्ञानकी ओर प्रवृत्त करता है।