अवधेश कुमार
जनसंख्या नियंत्रण कानूनकी मांग करनेवाले ज्यादातर लोगोंका तर्क था कि चीनकी एक बच्चेकी नीतिकी तर्जपर हमारे यहां भी कानून बने। इन लोगोंको वर्तमान नीति जारी करते समय चीन द्वारा दिये गये अपने जनगणनाके आंकड़ोंके साथ नीति बदलनेके लिए बताये गये कारणोंपर अवश्य गौर करना चाहिए। हालांकि जो लोग चीन और संपूर्ण दुनियामें जनसंख्याको लेकर बदलती प्रवृत्तिपर नजर रख रहे थे उनके लिए इसमें आश्चर्यकी कोई बात नहीं है। एक समय जनसंख्या वृद्धि समस्या थी लेकिन आज चीन सहित विकसित दुनियाके ज्यादातर देश जनसंख्या वृद्धिकी घटती दर, युवाओंकी घटती तथा बुजुर्गोंकी बढ़ती संख्यासे चिंतित हैं और अलग-अलग तरीकेसे जनसंख्या बढ़ानेकी कोशिश कर रहे हैं। सातवीं राष्ट्रीय जनगणनाके अनुसार चीनकी जनसंख्या १.४११७८ अरब हो गयी है जो २०१० की तुलनामें ५.८ प्रतिशत यानी ७.२ करोड़ ज्यादा है। इनमें हांगकांग और मकाउकी जनसंख्या शामिल नहीं है। इसके अनुसार चीनकी आबादीमें २०१९ की लगभग १.४ अरबकी तुलना में ०.५३ प्रतिशत वृद्धि हुई है। सामान्य तौरपर देखनेसे १.४१ अरबकी संख्या काफी बड़ी है और चीनका सबसे ज्यादा आबादीवाले देशका दर्जा कायम है, लेकिन १९५० के दशकके बादसे यह जनसंख्या वृद्धिकी सबसे धीमी दर है। वहां २०२० में महिलाओंने औसतन १.३ बच्चोंको जन्म दिया है। यही दर कायम रहा तो जनसंख्यामें युवाओंकी संख्या कम होगी, बुजुर्गोंकी बढ़ेगी तथा एक समय जनसंख्या स्थिर होकर फिर नीचे गिरने लगेगी। चीनमें ६० वर्षसे ज्यादा उम्रवालोंकी संख्या बढ़कर २६.४ करोड़ हो गयी है जो पिछले वर्षसे १८.७ प्रतिशत ज्यादा है। चीनके एनबीएस यानी नेशनल ब्यूरो आफ स्टेटिस्टिक्सने कहा है कि जनसंख्या औसत आयु बढऩेसे दीर्घकालिक संतुलित विकासपर दबाव बढ़ेगा। इस समय चीनमें कामकाजी आबादी या १६ से ५९ आयुवर्गके लोग ८८ करोड़ यानी करीब ६३। तीन प्रतिशत हैं। यह एक दशक पहले ७०.१ प्रतिशत थी। यही नहीं ६५ वर्ष या उससे ऊपरके उम्रवालोंकी संख्या ८.९ प्रतिशतसे बढ़कर १३.५ प्रतिशत हो गयी है। आबादीका यह अनुपात चीन ही नहीं किसी देशके लिए चिंताका विषय होगा। संयुक्त राष्ट्रकी एक रिपोर्टके अनुसार २०५० तक चीनकी लगभग ४४ करोड़ आबादी ६० की उम्रमें होगी। संयुक्त राष्ट्र द्वारा जून २०१९ में जारी एक रिपोर्ट कहती है कि चीनमें आबादीमें कमी आयगी और भारत २०२७ तक दुनियाकी सबसे ज्यादा आबादीवाला देश हो जायगा।
चीन पहलेसे इसे लेकर सतर्क हो गया था और उसने २०१३ में ढील दी और २०१५ में एक बच्चेकी नीति ही खत्म कर दी। लेकिन २०१३ में इसके लिए शर्त तय कर दी गयी थी। दंपतिमेंसे कोई एक अपने मां-बापकी एकमात्र संतान हो, तभी वह दूसरे बच्चेको जन्म दे सकते हैं। दूसरे बच्चेकी अनुमतिके लिए आवेदन करना पड़ रहा था। इसे भी खत्म किया गया लेकिन जनसंख्या बढ़ानेमें अपेक्षित सफलता नहीं मिली। जनसंख्या वद्धिको रोकनेके लिए चीनने १९७९ में एक बच्चेकी नीति लागू की थी। इसके तहत ज्यादातर शहरी पति-पत्नीको एक बच्चा और ज्यादातर ग्रामीणको दो बच्चे जन्म देनेका अधिकार दिया गया। पहली संतान लड़की होनेपर दूसरे बच्चेको जन्म देनेकी स्वीकृति दी गयी थी। चीनका कहना है कि एक बच्चेकी नीति लागू होनेके बादसे वह करीब ४० करोड़ बच्चेके जन्मको रोक पाया तो एक समय जनसंख्या नियंत्रण उसके लिए लाभकारी था, परन्तु अब यह बड़ी समस्या बन गयी है। वास्तवमें ज्यादा युवाओंका मतलब काम करनेके ज्यादा हाथ और ज्यादा बुजुर्ग अर्थात देशपर ज्यादा बोझ। चीनकी यह चिंता स्वाभाविक है कि यदि काम करनेके आयुवर्गके लोगोंकी पर्याप्त सख्या नहीं रही तो फिर देशकी हर स्तरपर प्रगतिके सोपानसे पीछे चला जायगा। आज बढ़ती बुजुर्गोंकी आबादीसे अनेक देश मुक्ति चाहते हैं और इसके लिए कई तरहकी नीतियां अपना रहे हैं। पूरे यूरोपमें जन्मदरमें लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। कई देशोंमें प्रति महिला जन्मदर उस सामान्य २.१ प्रतिशतसे काफी नीचे आ गयी है जो मौजूदा जनसंख्याको ही बनाये रखनेके लिए जरूरी है। उदाहरणके लिए डेनमार्कमें जन्म दर १.७ पर पहुंच गयी है और वहां इसे बढ़ानेके लिए कुछ सालोंसे विभिन्न अभियान चल रहे हैं।
सरकारने विज्ञापन अभियानके जरिये पति-पत्नीको एक दिनकी छुट्टी लेनेको भी प्रोत्साहित किया। इटलीकी सरकार तीसरा बच्चा पैदा करनेवाले दंपतीको कृषि योग्य जमीन देनेकी घोषणा कर चुकी है। २०१७ के आंकड़ोंके अनुसार जापानकी जनसंख्या १२.६८ करोड़ थी। अनुमान है कि घटती जन्मदरके कारण २०५० तक देशकी जनसंख्या दस करोड़से नीचे आ जायगी। वहां ज्यादा बच्चे पैदा करनेके लिए कई तरहके प्रोत्साहन दिये गये हैं। भारतकी ओर आयें तो २०११ की जनगणनाके अनुसार २५ वर्षतककी आयुवाले युवा कुल जनसंख्याके ५० प्रतिशततक ३५ वर्षतकवाले ६५ प्रतिशत थी। इन आंकड़ोंसे साबित होता है कि भारत एक युवा देश है। भारतकी औसत आयु भी कई देशोंसे कम है। इसका सीधा अर्थ है कि दुनियाकी विकसित महाशक्तियां जहां ढलान और बुजुर्गियतकी ओर हैं वहीं भारत युवा हो रहा है। भारतको भविष्यकी महाशक्ति माननेवाली अंतरराष्ट्रीय संस्थाओंका तर्क यही रहा है कि इसकी युवा आबादी २०३५ तक चीनसे ज्यादा रहेगी और यह विकासमें उसे पीछे छोड़ देगा। लेकिन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा २०१८ में जारी रिपोर्टके अनुसार भारतमें साल २०५० तक बुजुर्गोंकी संख्या आजकी तुलनामें तीन गुना अधिक हो जायगी। उस जनगणनाके अनुसार करीब दस करोड़ लोग ६० वर्षसे ज्यादा उम्रके थे। हर वर्ष इसमें करीब तीन प्रतिशतकी वृद्धि हो रही है। इसके अनुसार ऐसे लोगोंकी संख्या वर्तमान ८.९ प्रतिशतसे बढ़कर २०५० में १९.४ प्रतिशत यानी करीब ३० करोड़ हो जायगी। उस समयतक ८० सालसे अधिक उम्रके व्यक्तियोंकी संख्या भी ०.९ प्रतिशतसे बढ़कर २.८ प्रतिशत हो जायगी। जाहिर है, जो प्रश्न इस समय चीन और दुनियाके अनेक देशोंके सामने है वह भारतके सामने भी आनेवाला है। उस दिशामें अभीसे सचेत और सक्रिय होनेकी आवश्यकता है। जनसंख्या नियंत्रण कानूनकी मांग करनेवालोंको यह पहलू अवश्य ध्यानमें रखना चाहिए। यदि समाजका एक तबका बच्चे पैदा करनेपर नियंत्रण नहीं रख रहा है तो उसका निदान अलग तरीकेसे तलाशना होगा।