सम्पादकीय

प्रवासी श्रमिकोंकी सुधि


सर्वोच्च न्यायालयने मंगलवारको प्रवासी मजदूरोंके हितमें बड़ा आदेश देते हुए राज्योंको निर्देश दिया है कि ३१ जुलाईतक ‘एक देश एक राशन कार्ड’ योजनाको लागू करें। साथ ही केन्द्र सरकारको भी निर्देश दिया है कि वह राज्योंको अतिरिक्त अनाज आवण्टित करे। सभी राज्योंको प्रवासियोंको सूखा राशन वितरणकी योजना लानेके साथ ही इन श्रमिकोंके लिए सामुदायिक रसोईकी व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए जो महामारीके रहनेतक जारी रहे। न्यायमूर्ति अशोक भूषण एवं न्यायमूर्ति एम.आर. शाहकी पीठने कहा है कि केन्द्र सरकार और राज्य सरकारें असंघटित क्षेत्रके मजदूरों सहित सभी प्रवासी श्रमिकोंके पंजीकरणका कार्य ३१ जुलाई, २०२१ तक अवश्य पूरा कर लें। राज्य और संघशासित राज्य क्षेत्र सभी ठेकेदारोंको यथाशीघ्र पंजीकृत करें तथा श्रमिकोंका भी पंजीकरण सुनिश्चित करें। इसके साथ ही सभी राज्य श्रमिकोंके लिए नि:शुल्क राशन बांटनेकी योजना बनायें। केन्द्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालयकी ओरसे असंघटित कामगारोंका डेटा तैयार करनेमें हो रही देरीपर सर्वोच्च न्यायालयने नाराजगी व्यक्त करते हुए यहांतक कह दिया कि इस लापरवाहीको माफ नहीं किया जा सकता है। शीर्ष न्यायालयने कोरोना महामारीके दौरमें लाकडाउनके कारण प्रवासी श्रमिकोंको हो रही समस्याओंपर स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई प्रारम्भ की। विगत २४ मईको सुनवाईके दौरान केन्द्र सरकारके प्रति नाराजगी जताते हुए श्रम पंजीकरण योजनाके बारेमें सरकारसे जवाब मांगा था। पिछले वर्ष २०२० में कोरोना लाकडाउनके दौरान शीर्ष न्यायालयने सभी प्रवासी श्रमिकोंका पंजीकरण करनेका फैसला सुनाया था और प्रवासी श्रमिकोंके पंजीकरणमें तेजी लानेका निर्देश दिया था। पीठने यह भी निर्देश दिया था कि सरकारके प्रतिनिधि प्रवासी श्रमिकोंसे सम्पर्क कर उनका पंजीकरण करें। पंजीकरणका कार्य पूरा होनेपर ही सरकार प्रवासी कामगारोंको लाभ पहुंचा सकती है। वस्तुत: कोरोना कालमें सबसे अधिक प्रभावित होनेवाले लोगोंमें प्रवासी श्रमिकोंकी संख्या सबसे अधिक है। उनके समक्ष आजीविकाका संकट उत्पन्न हो गया और श्रमिक अपने घरोंकी ओर लौटने लगे। इन श्रमिमोंकी कारुणिक स्थितिको देखकर सर्वोच्च न्यायालयने जो आदेश और निर्देश दिया है वह कामगारोंके हितमें है। इन आदेशों और निर्देशोंका अनुपालन अत्यन्त आवश्यक है जिससे कि प्रभावित श्रमिकोंका भरण-पोषण हो सके। मानवीय संवेदनाको ध्यानमें रखते हुए शीर्ष न्यायालयका दिया गया आदेश राहतकारी और स्वागतयोग्य है।

बड़ी साजिश विफल

जम्मूमें भारतीय वायु सेना स्टेशन परिसरके तकनीकी क्षेत्रमें रविवारको ड्रोनके जरिये किये गये विस्फोटके २४ घण्टेके भीतर जम्मूके ही कालूचक सैन्य स्टेशनपर ड्रोन हमलेकी बड़ी साजिशको सेनाने विफल कर दिया। हमलेके लिए अलग-अलग आये दो ड्रोनको सतर्क जवानोंने फायरिंग कर खदेड़ दिया। सैनिकोंकी सतर्कता और सक्रियतासे एक बड़ा खतरा टल गया। घटनाके बाद हाइवेके साथ ही अन्य इलाकोंमें गश्त बढ़ानेके साथ ही सैन्य ठिकानों समेत प्रमुख स्थानों और अन्तरराष्टï्रीय सीमा एवं वास्तविक नियंत्रण रेखापर सुरक्षा और कड़ी कर दी गयी है। दरअसल जम्मू-कश्मीरमें तेजीसे बदलते सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्यसे पाकिस्तान अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठा है, क्योंकि कश्मीरका मुद्दा ही अबतक पाकिस्तानमें सक्रिय राजनीतिका केन्द्र रहा है जिसपर पूर्ण ग्रहण लगता साफ दिख रहा है। घाटीमें शान्तिबहालीके साथ विकासके प्रति दृढ़ संकल्पित प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीके सख्त तेवर और काररवाईने पाकिस्तानकी कस-बल ढीली कर दी है। दूसरी ओर आतंकी वित्तपोषणपर नजर रखनेवाली अन्तरराष्टï्रीय संस्था फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) में एक बार फिर मुंहकी खानेके बाद पाकिस्तानकी छटपटाहट चरमपर है। पाकिस्तानका एफएटीएफका ग्रे-लिस्टमें बने रहना भारतकी ओरसे पेश किये गये ठोस सबूत प्रमुख कारण हैं। साथ ही कश्मीरके राजनीतिक दलोंके साथ केन्द्र सरकारकी सौहार्दपूर्ण वातारणमें हुई वार्ता और राजनीतिक कवायदकी सुगबुगाहटसे पाकिस्तान बौखलाया हुआ है। कश्मीरमें करवट लेते हालातसे उसके पांवके नीचेकी जमीन दरकती नजर आ रही है। ऐसी स्थितिमें कश्मीरको पुन: अशान्तिके दलदलमें ढकेलनेके लिए वह किसी भी स्तरतक जा सकता है। ड्रोन हमला इसी साजिशका एक हिस्सा है। इस हमले और बादकी घटनाओंको देखते हुए सरकार सैन्य प्रतिष्ठïानोंपर एंटी ड्रोन तकनीककी तैनातीका शीघ्र निर्णय ले सकती है जिसपर पहलेसे ही विचार चल रहा था, लेकिन अब जम्मूकी घटनाके बाद इसपर तत्काल फैसला लेना जरूरी हो गया है। कश्मीरमें राजनीतिक प्रक्रियाको प्रभावित करनेके लिए एक बार फिर आतंकी गतिविधियां तेज करनेकी कोशिश हो सकती है। इससे निबटनेके लिए सतर्कता और सक्रियताके साथ ही निगरानी तंत्रको और मजबूत करनेकी जरूरत है।