सम्पादकीय

अनिश्चिततामें छात्रोंका भविष्य


डा. श्रीनाथ सहाय  

पिछले साल कोरोनाने जब देशमें दस्तक दी, तब सबसे ज्यादा दुविधा और चिन्ताकी स्थितिमें वह छात्र थे जिनके इस साल दसवीं और बारहवींकी परीक्षाएं थीं। छात्र एक सालसे लगातार पढ़ाईमें जुटे थे, लेकिन यह मालूम नहीं था कि पेपर हो पायंगे या नहीं। इस बीच कोरोनाकी दूसरी लहरने जो असर दिखाया उससे देशमें ऐसा माहौल बना कि परीक्षाएं असंभव-सी लगने लगी। छात्रों और अभिभावकोंकी चिताओंका देखते हुए पिछले दिनों प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदीकी अध्यक्षतामें हुई बैठकके बाद १२वींकी बोर्ड परीक्षाओंका रद करनेका अहम फैसला लिया गया। एक लम्बी अनिश्चिततामें फंसे छात्रोंके जीवनका अति महत्वपूर्ण अध्याय इस तरह अब परिणामकी प्रक्रियामें कुछ जटिलताभरे प्रश्नोंका उत्तर पा सकता है, फिर भी बच्चोंके भविष्यका यह उतार-चढ़ाव यकीनन मानसिक दबावका सबब बना रहेगा। केंद्र सरकारने सीबीएसई एवं आईसीएसई परीक्षाओंकी औपचारिकता को एक तरहसे निष्प्रभावी बना दिया, लेकिन अगला प्रश्न मूल्यांकन पद्धतिकी रचनाका है। इसीके साथ राज्योंके शिक्षा बोर्ड किस तरह चलते हैं या इसीका अनुपालन करते हैं, यह भी देखना होगा।

कुछ राज्य शिक्षा बोर्ड परीक्षाके अभियानमें उतरनेका संकेत दे चुके हैं, इसलिए राष्टï्रीय सहमतिसे अब एक जैसी परीक्षा मूल्यांकन पद्धति अमलमें लायी जानी चाहिए, ताकि हर बोर्ड और हर राज्यके छात्र राष्टï्रीय स्तरपर, भविष्यके लिए न्यायोचित और एक समान उड़ान भर सकें। हिमाचलमें इसकी पूरी संभावना है कि करीब डेढ़ लाख छात्र बिना परीक्षा दिये अगले मुकामतक पहुंच जायंगे। इससे पहले दसवीं कक्षाके लिए भी सीबीएसईके साथ हिमाचल स्कूल शिक्षा बोर्ड चला था, लिहाजा अब करियरकी भाग-दौड़में छात्रोंको बिना परीक्षा दिये अपने भविष्य के दीये जलाने पड़ेंगे। सीबीएसई द्वारा परीक्षाएं रद करनेके ऐलानके बाद आईसीएसई और अन्य राज्योंने भी अपने यहां बोर्ड परीक्षाएं रद करनेकी घोषणा कर दी। असलमें परीक्षाएं जरूरी हैं, लेकिन सेहत और जीवन रक्षा सर्वोपरि है। लेकिन देखना यह होगा कि कालेज परीक्षाओंके बारेमें अगला कदम क्या लिया जाता है। पिछले सत्रसे कोरोना महामारीमें फंसी शिक्षा अभी मुक्त नहीं हुई है, फिर भी छात्रोंकी एक सीढ़ीको निश्चित रूपसे रास्ता मिला होगा।

वैश्विक महामारी कोरोनाने जबसे भारतको लाकडाउनमें बंद किया, उसके बादसे शिक्षा व्यवस्था अभीतक पटरीपर नहीं लौटी। हालांकि, आनलाइन माध्यमसे शिक्षाको आगे बढ़ानेका काम जारी है। लेकिन अब भी बहुतसे ऐसे छात्र हैं, जिनके पास बुनियादी संसाधनकी कमी है। जहां एक ओर सीबीएसई और अन्य बोर्ड दसवींके विद्यार्थियोंको प्रमोट और पास करनेका फैसला कर लिया गया था। अब वहीं बारहवींके छात्रोंके भविष्यकी असमंजसताको खत्म कर दिया गया है। नि:संदेह यदि परीक्षाएं होतीं तो केन्द्र और राज्य सरकार इस जिम्मेदारीका निर्वहन शायद ही कर पाती। कोरोना कालके दौरान आनलाइन शिक्षा प्रणालीके आसरे सारा देश शिक्षाके अर्थ ढूंढ़ रहा है। यह स्वयंमें विकास है जो आगे चलकर वर्तमान जरूरतसे कहीं आगे निकलकर एक नयी परिपाटीके रूपमें स्वीकार होगा। अतीतमें पढ़ाईके तरीकों और स्कूल प्रबंधनकी कसौटियोंमें शिक्षाका निजीकरण जिस व्यापकतासे हुआ, क्या अब ऑनलाइन पढ़ाई इस चक्रको बदल देगी। कोरोना कालने न शिक्षाके नये पैगंबर छोड़े और न ही पैबंद बरकरार रहे और अब बिना औपचारिक परीक्षा आ रहे परिणामोंने छात्र समुदायके आसपास ऐसी खुली हवाएं पहुंचा दी हैं, जो भविष्यकी शिक्षापर अपना प्रभाव डालेंगी। देखना यह होगा कि आनलाइन शिक्षाके क्षितिजपर शिक्षा विभाग किस तरह खुदको रेखांकित करता है। देशके वर्तमान ढांचेके परिप्रेक्ष्यमें शिक्षा विभागको इस तैयारीको मुकम्मल करते हुए, आनलाइन पढ़ाईके कक्षमें सरकारी स्कूल और शिक्षकोंको इस नवाचारका वास्तवमें गुरु बनाना होगा। यह अवसर है कि पाठ्यक्रमकी शैलीमें शिक्षाके वृतांत सीधे छात्रोंको प्रेरित-प्रोत्साहित एवं संवादको आगे बढ़ायें। घरमें बैठे छात्रोंके मुगालते किसी अदृश्य संसारमें भटक न जायं, यह सबसे बड़ी चुनौती है। शिक्षा विभागको छोटी कक्षाओंके अभिभावकों खास तौरपर माताओंके लिए आनलाइन पढ़ाईके स्पष्टï दिशा-निर्देश एवं प्रशिक्षण टूल किट तैयार करनी होगी। इसके अतिरिक्त स्कूल एवं शिक्षा बोर्ड भी इस कालअवधिमें, खुदको आनलाइन अकादमीके विकल्पमें संस्थागत परिवर्तन लाकर, अतिरिक्त क्लासें चला सकता है। फिलहाल परीक्षाके भंवरसे कुछ तिनके हटे हैं बाकी मूल्यांकनकी पद्धतिसे ही पता चलेगा कि छात्र जीवनकी यह करवटें किस तरह हल होंगी।

सभी जगह इन नंबरोंका महत्व होता है। इस फैसलेसे अच्छे अंक लानेकी उम्मीद कर रहे मेधावी छात्र-छात्राओंको निराश होना पड़ेगा। लेकिन अच्छी बात यह है कि छात्रोंका एक साल खराब होनेसे बच जायेगा। साथ ही यह भी कि अगला सत्र शुरू करनेमें दिक्कतका सामना नहीं करना पड़ेगा। साथ ही स्कूल-कालेजोंका वातावरण जल्दीसे जल्दी सामान्य हो, यह भी उम्मीद रखनी चाहिए। लाइन करायी जाती तो अभिभावकोंकी चिंता वाजिब थी। डर था कि कहीं उनके घरके बड़े-बुजुर्ग संक्रमित न हो जायें। लेकिन इस समाधानका एक नकारात्मक पहलू यह भी है कि जो बच्चे टापर होनेके लिए सालभर कड़ी मेहनत करते रहे, उन्हें इस फैसलेसे निराशा जरूर हुई होगी। दरअसल, आगे उच्च शिक्षामें बारहवींकी परीक्षाके ऊंचे स्कोरकी दरकार होती है। सभी जगह इन नंबरोंका महत्व होता है। इस फैसलेसे अच्छे अंक लानेकी उम्मीद कर रहे मेधावी छात्र-छात्राओंको निराश होना पड़ेगा। लेकिन अच्छी बात यह है कि छात्रोंका एक साल खराब होनेसे बच जायेगा। साथ ही यह भी कि अगला सत्र शुरू करनेमें दिक्कतका सामना नहीं करना पड़ेगा। साथ ही स्कूल-कालेजोंका वातावरण जल्दीसे जल्दी सामान्य हो, यह भी उम्मीद रखनी चाहिए। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि सरकारका परीक्षाएं रद करानेका फैसला देशकालके हिसाबसे सही है। आखिरकार युवा हमारे देशका भविष्य हैं और भविष्यको सुरक्षित रखना हम सबकी जिम्मेदारी है।