सम्पादकीय

चीनके बदले सुर


भारत-चीन सम्बन्धोंके सन्दर्भमें चीनी विदेशमंत्री वांग यी का ताजा बयान कुछ अलग ही है, जिसमें भारतके प्रति उनके सुर भी बदल गये हैं। इसपर सहज विश्वास करना तो कठिन है लेकिन इसके निहितार्थको भी समझना जरूरी है। भारत और चीनके बीच पूर्वी लद्दाख प्रकरणमें आयी कटुता अभी समाप्त नहीं हुई है। सीमापर दोनों देशोंकी सेनाओंकी वापसीपर बनी सहमतिके बाद अब चीनका रुख बदल गया है। बदले रुखका जीवन कितना लम्बा होगा, यह अनिश्चित है लेकिन यदि चीनकी मंशा साफ और सौहार्दपूर्ण है तो अस्थायी तौरपर कुछ सीमातक भरोसा करनेपर सोचा जा सकता है। भारत-चीन सम्बन्धोंकी मौजूदा स्थितिपर अपने वार्षिक संवाददाता सम्मेलनमें चीनी विदेशमंत्री वांग यीने कहा है कि चीन और भारतको सीमा मुद्देके समाधानके लिए एक-दूसरेको नुकसान पहुंचाना और आपसमें सन्देह करना छोड़ देना चाहिए और द्विपक्षीय सहयोगका विस्तार कर अनुकूल माहौल बनाना चाहिए। उन्होंने दोनों देशोंके बीच सीमा विवादका भी उल्लेख किया और कहा कि दोनों राष्टï्र मित्र और साझेदार हैं। आपसी विवादोंका निबटारा करें। सीमा विवाद इतिहासकी देन है। यह भारत-चीन सम्बन्धके लिए पूरी तरहसे जिम्मेदार नहीं है। वांग यीने दोनों देशोंके बीच दस दौरकी सैन्य स्तरकी वार्ताके बाद पूर्वी लद्दाखमें पैंगोंग झीलके उत्तरी और दक्षिणी तटोंसे सैनिकोंके हालमें ही पीछे हटनेके विषयपर कुछ भी नहीं कहा। इसके पीछे उनकी क्या सोच है, यह भी स्पष्टï नहीं है, जो सन्देहोंको जन्म दे सकता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि भारतीय परराष्टï्रमंत्री एस. जयशंकरके साथ फोनपर ७५ मिनटतक हुई वार्ताके बाद ही चीनी विदेशमंत्रीका यह बयान सामने आया है। इसके अतिरिक्त शुक्रवारको भारतीय राजदूत विक्रम मिस्त्रीने भी चीनके उपविदेशमंत्री लुओ झाओहुईसे मुलाकात की थी और उन्होंने पूर्वी लद्दाखके सभी क्षेत्रोंसे सैनिकोंकी वापसी प्रक्रिया पूरी करनेकी अपील की थी। वांग यीने यह भी कहा है कि कई मुद्दोंपर हमारे रुख समान हैं या करीबी हैं, इसलिए चीन और भारत एक-दूसरेके मित्र और साझेदार हैं, न कि खतरा और प्रतिद्वन्द्वी। वस्तुत: चीनके रवैयेमें आया यह अप्रत्याशित बदलाव अकारण नहीं है। चीन दबावमें आ गया है। भारतीय सेनाके शौर्य और पराक्रमके साथ भारतकी वैश्विक साख और आर्थिक स्थितिसे चीन भी अच्छी तरहसे अवगत है। उसने यह समझ लिया है कि भारतसे कटुता बढ़ाना और पंगा लेना चीनके हितमें  नहीं है। भारत एक मजबूत शक्ति है। उसके साथ सहयोगका रास्ता ही उचित है। इसलिए सभी विवादोंका निबटारा भी होना चाहिए।

सस्ती दवाओंसे राहत

केन्द्र सरकारकी जन औषधि योजना स्वास्थ्य क्षेत्रमें आम आदमीके हितमें उठाया गया महत्वपूर्ण कदम है। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीका रविवारको शिलांगमें ७५००वें औषधि केन्द्र राष्टï्रको समर्पित करना इस बातका प्रमाण है कि पूर्वोत्तरमें भी जन-स्वास्थ्य केन्द्रोंका विकास तेजीसे हो रहा है। इस अवसरपर स्वास्थ्य योजनाओंके लक्ष्यको रेखांकित करते हुए प्रधान मंत्रीने कहा कि सरकारने किफायती दवाएं, स्वास्थ्य सेवा और चिकित्सा उपकरणोंकी कीमत कम करने जैसे कई कदम उठाये हैं। इससे गरीब और जरूरतमंद लोगोंको सालाना ५० हजार करोड़ रुपयेतककी बचत हो रही है जो इसकी सार्थकताको प्रमाणित करती है। प्रधान मंत्रीका यह विचार भी प्रासंगिक है कि स्वास्थ्य सिर्फ बीमारी और इलाजतक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे सामाजिक और आर्थिक ताने-बानेको प्रभावित करता है। इससे निजात पानेके लिए जरूरी दवाओं, हार्टस्टेंट और घुटनोंकी सर्जरीसे जुड़े उपकरणोंकी कीमतोंको कई गुना कम कर दिया गया है जिससे जरूरतमंदोंको हर साल १२ हजार करोड़ रुपयेकी बचत हो रही है। आयुष्मान योजनाके तहत ५० करोड़से ज्यादा गरीब परिवारोंको पांच लाखतकका मुफ्त इलाजका प्रावधान जरूरतमंदोंके प्रति सरकारकी संवेदनशीलताको दर्शाता है। केन्द्रकी स्वास्थ्य योजनाएं जहां एक ओर गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारोंके लिए मददगार साबित हो रही है वहीं दूसरी ओर सेवा और रोजगारका माध्यम भी बन रही है। सरकारकी असहायोंके स्वास्थ्यके प्रति चिन्ता उचित है और इसके निराकरणकी दिशामें उठाया गया कदम स्वागतयोग्य है, लेकिन इतना ही काफी नहीं है। इसमें अभी और सुधारकी जरूरत है। अक्सर देखा जाता है कि जन-स्वास्थ्य केन्द्रोंपर दवाओंका अभाव रहता है। समयसे दवा नहीं मिल पाती जो उचित नहीं है। स्वास्थ्य केन्द्रोंपर दवाओंकी उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए।