सम्पादकीय

चीनको स्पष्ट संदेश


तजाकिस्तानके दुशाम्बेमें आयोजित संघाई सहयोग संघटन (एससीओ) की विदेश मंत्रिस्तरीय बैठकसे अलग परराष्ट्रमंत्री एस.जयशंकर की चीनके विदेश मंत्री वांग यी से हुई मुलाकात और एक घण्टेतक हुई वार्ता भारत-चीनकी मौजूदा सम्बन्धोंके सन्दर्भमें काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। यह बैठक पूर्वी लद्दाखमें वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) से सम्बन्धित लम्बित मुद्दोंपर केन्द्रित रही। जयशंकर ने दो टूक कहा है कि भारतको यथास्थितिमें एकतरफा बदलाव कदापि स्वीकार्य नहीं है। चीनको भारतका यह स्पष्ट जवाब है, जो शतप्रतिशत उचित है। एलएसीपर जारी तनावमें कमी लानेकी दिशामें जो भी प्रयास हो रहे हैं उसमें भारतका पक्ष बिल्कुल स्पष्ट  है। जयशंकरने यह भी कहा है कि आपसी सम्बन्धोंके विकासके लिए सीमावर्ती क्षेत्रोंमें पूर्ण शांति बहाली और समरसताको बरकरार रखना आवश्यक है। इस वार्ताके दौरान वरिष्ठï सैन्य कमाण्डरोंकी शीघ्र बैठक बुलानेपर बनी सहमति अच्छी उपलब्धि है, जिससे कि स्वीकार्य समाधानकी दिशामें कुछ कदम आगे बढ़ सके। लम्बित मुद्दोंको वार्ताके माध्यमसे सुलझानेका प्रयास श्रेयस्कर है, बशर्ते चीन अपनी हठधर्मिताको छोड़कर वास्तविकताकी धरातलपर निष्पक्ष दृष्टिकोणके साथ आगे बढ़े। परराष्ट्र मंत्रालयने यह भी कहा है कि दोनों पक्ष जमीनी स्तरपर स्थिरता सुनिश्चित करना जारी रखेंगे और कोई भी पक्ष एक तरफा काररवाई नहीं करेगा, जिससे कि तनावमें वृद्धि हो। इसपर दोनों पक्ष सहमत हैं क्योंकि मौजूदा स्थितिको लम्बा खींचना भी किसी पक्षके हितमें नहीं है। यह सम्बन्धोंको नकरात्मक रूपसे प्रभावित कर रहा है। सीमावर्ती क्षेत्रमें शांति बनाये रखना १९८८ से सम्बन्धोंके विकास की नींव रहा है। यह भी देखना होगा कि दोनों देशोंके सैन्य कमाण्डरोंकी शीघ्र होने वाली बैठकमें चीनका रवैया कितना सकारात्मक रहता है क्योंकि बातचीतके लिए सहमति बनना एक विषय है और वार्ताके सकारात्मक परिणाम दूसरा विषय है। ऐसी किसी भी वार्ताका कोई अर्थ नहीं रह जाता है जिसका स्वीकार्य परिणाम सामने नहीं आये। चीन ऐसा देश है जिसपर सहजतासे भरोसा नहीं किया जा सकता है। चीनके प्रति पूरे विश्वमें नफरतकी भावना विकसित हुई है, इसका उस पर कितना प्रभाव पड़ा है, यह भी देखना होगा। यदि चीन इस भावनाको बदलनेकी इच्छा रखता है तो उसे अनिवार्यता सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना होगा।

नारी साहसकी जीत

स्त्री और पुरुष ईश्वरकी कृति है। उनमें भेदभाव अनुचित ही नहीं बल्कि संविधानकी मूल भावनाके विपरित है। दुर्भाग्यका विषय है कि आजादीके ७४ साल बाद भी महिलाओंको समानताकी लड़ाई लडऩी पड़ रही है, जबकि वे पुरुषोंसे कंधासे कंधा मिलाकर दक्षताके साथ हर क्षेत्रमें अपना परचम लहरा रही हैं। उनके अदम्य साहसका ही परिणाम है कि उन्हें सेनामें बाराबरीका हक मिल पाया है, हालांकि इसके लिए उन्हें लम्बी लड़ाई लडऩी पड़ी लेकिन अन्तत:  विजय श्री उन्हीं को मिली। भारतीय सेनामें महिला अधिकारियोंको स्थायी कमीशन दिये जानेके संशोधित मानकोंके बाद १४७ और महिला अधिकारियोंको स्थायी कमीशन देनेका फैसला किया गया है। सर्वोच्च न्यायालयके स्थायी कमीशन देनेके फैसले के बाद अबतक ४२४ महिला अधिकारियोंको स्थायी कमीशनके लिए चुना गया है। इनमें से ३३ ने मिड करियर कोर्स भी पूराकर सेनामें अपनी बड़ी भूमिका का रास्ता भी साफ कर लिया है। अब तक ६१५ महिला अधिकारियोंके मामलेमें विचार किया गया है जिनमें से ४२४ को स्थायी कमीशन दे दिया गया है। सर्वोच्च न्यायालयने स्थायी कमीशन दिये जानेके आंकलनको भेदभाव पूर्ण बताया था जिसके बाद विशेष बोर्ड बनाया गया और विचार कर महिला अधिकारियोंको भी स्थायी कमीशन देनेका निर्णय किया गया। सेनामें यह बदलाव वर्षोंसे महिलाओंको मिलने वाले अवसरसे वंचित रखनेकी गलतियोंको ठीक करनेके लिए जरूरी था। इससे सेनामें महिलाओंकी भागीदारी बढ़ेगी और सेनामें लैंगिक समानता बढ़ेगी तथा महिला अधिकारी भी पुरुष अधिकारियोंकी तरह चुनौतीपूर्ण भूमिकामें शामिल हो सकेंगी। स्थायी कमीशन पाने वाली सभी महिला अधिकारियोंको विशेष प्रशिक्षण पाठ्यक्रमको पूरा करना होगा। उससे उनकी दक्षताका विस्तार होगा और वे भी पुरुषोंके समान चुनौतीपूर्ण कार्यको अंजाम दे सकेंगी। सेनामें बराबरीका हकके लिए महिला अधिकारियोंने जिस साहसका परिचय दिया है, वह उनके कदको और ऊपर उठानेमें सहायक होगा। उनके जज्बेको शत-शत नमन।