सम्पादकीय

चुनौतियोंके बीच सुधार


कोरोना महामारीके दौरान देशकी अर्थव्यवस्थापर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है लेकिन यह राहतकी बात है कि अप्रैल महीनेमें आठ बुनियादी उद्योगोंके उत्पादमें ५० प्रतिशतसे अधिककी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। पिछले वर्षकी समान अवधिकी तुलनामें ५६.१ प्रतिशतकी वृद्धिका विशेष महत्व है जिसका अर्थव्यवस्थापर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। यह वृद्धि प्राकृतिक गैस उत्पादन बढऩे, रिफाइनरी उत्पाद, इस्पात और बिजली क्षेत्रके बेहतर प्रदर्शनका सुखद परिणाम है। सोमवारको भारत सरकारकी ओरसे जारी आंकड़ोंके अनुसार अप्रैल २०२१ में यह उच्च वृद्धि दर काफी हदतक अप्रैल २०२० में निम्र तुलनात्मक आधार प्रभावके कारण हासिल हुई है। दूसरी ओर इसके पूर्व अप्रैल २०२० में कोयला, कच्चा तेल, उवर्रक, इस्पात, सीमेण्ट और बिजलीके आठ बुनियादी उद्योगोंके उत्पादनमें ३७.९ प्रतिशतकी गिरावट आयी थी। इस दृष्टिïसे आठ बुनियादी उद्योगोंने कोरोनाकी दूसरी लहरके दौरान उत्साहजनक प्रदर्शन किया है। इससे यह भी उम्मीद जगी है कि आनेवाले वर्षमें इस क्षेत्रका और अच्छा प्रदर्शन होगा। प्रमुख अर्थशास्त्री अदित नायरका मानना है कि उम्मीदके अनुरूप राष्टï्रव्यापी लाकडाउनके कारण निम्र तुलनात्मक आधारसे बुनियादी उद्योगोंकी वृद्धिमें तेजी आयी। यह बात अलग है कि दूसरी लहरने देशकी अर्थव्यवस्थाके समक्ष कई नयी चुनौतियां भी खड़ी कर दी हैं जिसका अर्थव्यवस्थापर अवश्य ही प्रभाव पड़ेगा। वैसे पिछले वित्तवर्षकी अन्तिम तिमाही (जनवरी-मार्च २०२०) के दौरान १६ प्रतिशतकी विकास दरने स्थितिको सम्भालनेकी कोशिश अवश्य की है। इसके बावजूद पूरे वित्तवर्षके लिए अर्थव्यवस्थामें ७.३ प्रतिशतकी गिरावटका अनुमान लगाया गया है। इसीके कारण मार्च २०२१ में अर्थव्यवस्थाका आकार घटकर १३५ लाख करोड़ रह गया है। यह चिन्ताका विषय भी है। यह पिछले चार दशकोंसे भी अधिककी अवधिमें सबसे कमजोर विकास दर है। इसके पूर्व १९७९-८० में भारतीय अर्थव्यवस्थामें ५.२ प्रतिशतकी गिरावट दर्ज की गयी थी। सरकार और आर्थिक विशेषज्ञोंने जो अनुमान लगाया था उससे बेहतर आंकड़े हैं। देशके मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमणियमको इस बातका भरोसा है कि दूसरी लहर ढलानपर है, इसलिए अर्थव्यवस्थामें तेजी आनेके संकेत दिख रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि टीकाकरण देशके आर्थिक स्वास्थ्यके लिए आवश्यक है। स्थिति सामान्य होते ही हालात सुधरने लगेंगे और अर्थव्यवस्थाको भी गति मिलेगी। जो भी हो, सुधारके अच्छे संकेतोंके बावजूद रोजगार बढ़ानेपर विशेष ध्यान देने होंगे, क्योंकि बेरोजगारीकी दरमें निरन्तर वृद्धि हो रही है और इससे क्रय शक्ति घट रही है, जो अर्थव्यवस्थाके लिए शुभ संकेत नहीं है।

कोरोना टीकेका मूल्य

केन्द्रकी कोरोना टीका नीतिसे असंतुष्टï सर्वोच्च न्यायालयने सोमवारको सरकारको सवालोंके कटघरेमें खड़ा कर दिया, जो उचित और सारगर्भित है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रोंके बीच डिजिटल असमानताको रेखांकित करते हुए शीर्ष न्यायालयने टीकेकी खरीद नीति, कीमतोंमें अन्तर और टीकाकरणके लिए कोविन एपपर पंजीयनकी अनिवार्यताके मुद्देपर कई गम्भीर सवाल खड़े किये। नीति-निर्माताओंपर तल्ख टिप्पणी करते हुए शीर्ष न्यायालयने कोरोना टीकोंके मूल्य राज्योंमें अलग-अलग होनेपर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि सरकार टीका खरीदे और सुनिश्चित करे कि पूरे देशमें यह एक समान कीमतपर उपलब्ध हो। न्यायमूर्ति डी.वाई. चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति एल.एन. राव और न्यायमूर्ति एस.आर. भटकी पीठने कहा कि नीति-निर्माताओंको जमीनी हालातसे वाकिफ होना चाहिए और उसीके अनुसार नीतियां भी बनानी चाहिए। देशका संविधान कहता है कि भारत राज्योंका संघ है, ऐसेमें हमें संघीय शासनका पालन करना चाहिए। राज्योंसे कम्पनी चुनने और एक-दूसरेसे प्रतिस्पर्धाका सुझाव न्यायसंगत नहीं है। केन्द्रको टीकोंकी खरीद और वितरण करना चाहिए ताकि दोहरी मूल्य नीतिका समाधान किया जा सके। कोविन पोर्टलपर ग्रामीणोंके पंजीकरणपर भी शीर्ष अदालतने सवाल खड़ा किया, क्योंकि ग्रामीण इलाकोंमें हालात अलग हैं। डिजिटलसे वंचित आबादी सरकारके लिए बड़ी चुनौती है, जिनसे पार पाना आसान नहीं होगा। कोरोनाकी अभूतपूर्व भयावह स्थितिसे निबटनेके लिए नीतिमें लचीलापन होना चाहिए। देशमें बड़ी संख्यामें लोग ऐसे हैं जिनके पास स्मार्टफोन नहीं है और न ही इण्टरनेट सुविधा है। ऐसेमें यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या यह प्रक्रिया व्यावहारिक है। सरकारको टीकेकी उपलब्धता, वितरण और मूल्योंमें एकरूपताके लिए नीति-निर्धारणपर पुनर्विचार करनेकी जरूरत है। टीकेका मूल्य पूरे देशमें एक समान होना चाहिए, इसीमें टीका अभियानकी सफलता निहित है।