सम्पादकीय

जनसंख्या वृद्धिसे बढ़ती मुश्किलें


हृदयनारायण दीक्षित

भौतिक संसाधन सीमित हैं। जनसंख्या वृद्धि असीमित। लोगोंके आवासके लिए भी भविष्यमें जगह कम पड़ सकती है। अजेय और समृद्ध भारत सबकी अभिलाषा है। इस कार्यमें भारी जनसंख्या वृद्धि बड़ी बाधा है।         

जनसंख्या वृद्धिके चलते नगरोंकी सीमा बढ़ रही है। सरकारें अस्पताल बनाती हैं, चिकित्सक नियुक्त करती हैं। न्यायपालिका न्यायालय केन्द्र बनाती है। तमाम तरहकी जनसुविधाओंके केन्द्र खोले जाते हैं, लेकिन कम पड़ जाते हैं। किसी नगर या महानगरमें एक सड़क बनती है। सड़कके किनारे रहनेवाले लोग प्रसन्न होते हैं कि अब सड़क बन गयी है। सुविधाएं बढ़ेगीं। लेकिन जनसंख्या वृद्धिसे तीन चार साल बाद सड़क बेकार हो जाती है। सरकार दूसरा फैसला लेती है। फ्लाई ओवर बनाती है, फ्लाई ओवर बनता है तो लगता है कि अब भीड़ नियंत्रित रहेगी। इसी तरह अस्पतालोंमें भीड़ है। कचहरीमें भीड़ है। हम जहां कहीं जा रहे हैं वहां भीड़ है। यह भीड़ बहुत अराजक ढंगसे बढ़ रही है। सरकारी संसाधन जनसंख्या वृद्धिके अनुपातमें नहीं बढ़ रहे हैं। बढ़ाये जा भी नहीं सकते। भारतके सामने भारी जनसंख्याके लिए चुनौती है। इसपर चर्चा बहुत होती है लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्तिकी कमीके कारण ठोस काररवाई नहीं होती। राजनेताओंका एक वर्ग इसे साम्प्रदायिक तूल देता है। बढ़ती जनसंख्याके परिणामोंपर सार्थक चर्चा नहीं होती। उत्तर प्रदेश देशका सबसे बड़ी जनसंख्यावाला राज्य है। मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथकी सरकारने जनसंख्या नियंत्रणके लिए राजनीतिक साहस दिखाया है। आज वह इसकी नीति जारी करेंगे। यह स्वागतयोग्य है।

जनसंख्या वृद्धिको रोकना बड़ी चुनौती है। वैसे सभी सरकारोंके सामने सामान्य सुविधाएं जुटानेकी चुनौती रही है। चिकित्सा, शिक्षा, स्वास्थ्य, समाज जीवनकी अन्य महत्वपूर्ण सेवाओंकी चुनौती है। सड़कें बढ़ रही हैं लेकिन भारी जनसंख्याके लिए कम पड़ रही हैं। परिवहन सेवाएं बढ़ रही हैं। बसोंकी संख्या बढ़ रही है। रेलोंकी संख्या बढ़ रही है। रेलोंमें डिब्बोंकी संख्या बढ़ रही है लेकिन आम जनताके लिए सारी संसाधन शक्ति कम पड़ रही है। आम जनता व्यथित है। जरूरी सुविधाएं कम पड़ रही हैं। हम सब जानते हैं कि इसका मूल कारण जनसंख्या वृद्धि है। जनसंख्यापर नियंत्रण एक राष्ट्रीय चुनौती भी है। इस प्रश्नपर राजनीतिक कार्यकर्ताओंकी सजगता भी जरूरी है। वह अपने दलके साथ राजनीतिक दृष्टिसे प्रतिबद्ध रहते हुए राष्ट्रजीवनको सुखमय, आनंदमय बनानेका काम कर सकते हैं। हम किसी भी दलमें हों, हम कोई भी कामको करते हों जनसंख्या बढ़ेगी तो वह काम गड़बड़ायेगा। राष्ट्रीय विकासमें बाधा पड़ेगी। जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम आपत्काल (१९७५-७७) में भी चलाया गया था लेकिन इस राष्ट्रीय कार्यक्रममें जबर्दस्ती थी। बाजारें बन्द हो गयी थीं। ग्रामीण गाड़ी देखते ही भाग जाते थे कि इस गाड़ीमें नसबंदीके लिए पकडऩेवाले तहसीलदार अथवा पुलिसवाले आये होंगे। बच्चोंकी भी नसबंदी थी। सब तरफ आतंक था। गांवमें रातें खाली थीं, विरोध करनेवाले लोगोंको मारपीट कर जेल भेज दिया जाता था। सन् १९७७ में आपातकाल हटा। उस समय अखबारोंमें इसकी जबर्दस्तीपर बहुत कुछ लिखा जा रहा था। आपातकालके समय जनसंख्या नियंत्रणके राष्ट्रीय कार्यक्रमको जोर जबर्दस्तीकी नसबंदीसे बदनाम किया गया। फिर जनताने फैसला सुनाया। वह सरकार अस्तित्वमें नहीं आयी। उससे वातावरण बिगड़ा। बादमें किसी भी राजनीतिक दलकी हिम्मत नहीं हुई कि इस विषयको छेडऩेका काम करे। यह बड़ी गलती थी। उसके कारण जनसंख्या नियंत्रणके वैज्ञानिक उपायों, ठोस उपायोंकी बदनामी हुई। समाज जीवनमें जनसंख्या नियंत्रणकी चर्चा फिर नहीं चली। जनसंख्या नियंत्रण अपरिहार्य आवश्यकता है। इसकी गंभीरता हम सब जानते हैं। इसके कई पहलुओंपर कई तरहके अध्ययन हुए हैं। उनमेंसे एक अध्ययन यह भी है कि समृद्ध क्षेत्रोंमें प्रजनन दर कम होती है। जहां शिक्षा है जहां संसाधन है, जहां संरक्षक अपने परिवारको बहुत ठीकसे चला रहे हैं। उनके घरमें समृद्धि है। पर्याप्त संसाधन है, वहां प्रजनन दर कम होती है।

संप्रति जनसंख्या तेज रफ्तार बढ़ रही है। लेकिन उसी तेज रफ्तारसे हमारे आर्थिक संसाधन नहीं बढ़ रहे हैं। बढ़ाये नहीं जा सकते। आर्थिक संसाधन बढ़ाये जानेकी दिशामें पिछले छह-सात वर्षसे काफी काम हुआ है। आर्थिकके साथ-साथ अन्य साधन भी बढ़ाये जानेपर पूरी सजगताके साथ सरकारें काम करती हैं। नरेन्द्र मोदीके नेतृत्वमें भारतमें ऐसे कामोंका सिलसिला बहुत प्रत्यक्ष दिखाई पड़ता है। आर्थिक मोर्चेपर, गरीबीके मोर्चेपर और बिजलीके मोर्चेपर ऐतिहासिक काम हुए हैं। अन्य कई मोर्चोंपर भी ऐतिहासिक काम हुए हैं। लेकिन घूम-फिरकर फिरसे चर्चा आ जाती है जनसंख्या वृद्धि की। जनसंख्या वृद्धिकी तेज रफ्तारके सामने बढ़ते संसाधन कम पड़ रहे हैं।

भारी जनसंख्याके कारण गरीबी है, अभाव है। जीवनकी गुणवत्ता घटी है। इस गंभीर विषयपर साकारात्मक लोकमत बनाये जाने की भी आवश्यकता है। जनसंख्या वृद्धि देशके लिए हानिकारक है। इसपर समाजसेवी संस्थाओंको भी आगे आना होगा। सभी राजनीतिक दलोंको मतभेद भुलाकर जनसंख्या नियंत्रणके लिए एक साथ काम करना चाहिए। विपक्षको भी सोचना चाहिए कि यह राष्ट्रीय मुद्दा है। राष्ट्रीय आवश्यकता और राष्ट्रीय अपरिहार्यता है। राष्ट्रीय महत्वके प्रश्नोंपर राजनीति नहीं होनी चाहिए। इसे साम्प्रदायिक रंग देना गलत है। विपक्षको भी समवेत होकर इस दिशामें एक साथ आगे बढऩा चाहिए। जनसंख्या वृद्धि तेज रफ्तार है। कहा नहीं जा सकता कि जनसंख्या कितनी हो गयी। २०११ के बाद अभी ताजी जनसंख्याके आकड़े नहीं हैं। सन् २०११ के आकड़ोंसे लेकर अबतक हम बहुत आगे बढ़ गये होंगे। कह सकते हैं कि जितनी देरमें यह आलेख लिखा गया उतनी देरमें ही जनसंख्या बहुत बढ़ गयी होगी। जनसंख्या वृद्धि राष्ट्रीय चुनौती है। इसके लिए हतोत्साहन और प्रोत्साहन दोनों जरूरी हैं। जनसंख्या वृद्धिपर संयम रखनेवालोंको प्रोत्साहनसे लाभ होगा। बात हतोसाहनके उपायों भी लाभकारी होंगे। मतभिन्नताके बावजूद राष्ट्रीय प्रश्नोंपर सबकी सहमति अपरिहार्य है। साम्प्रदायिकताकी बातें गलत हैं। जनसंख्या वृद्धिका सम्बंध व्यक्तिसे है। संप्रदायसे नहीं। इस विषयमें व्यक्ति ही इकाई है। जाति वर्ग नहीं। संविधान निर्माताओंने उद्देशिकाको हमारे लिए गीत मंत्रकी तरह रचा है। मार्गदर्शी भी बनाया है। वह प्रारम्भ होती है हम भारतके लोग वाक्यसे।  भारतमें लोग हैं। भारत जाति, संप्रदाय, पंथ, रिलीजनका जोड़ नहीं है। राष्ट्रसे भिन्न सारी अस्मिताएं छोटी हैं। स्थानीय हैं। ऐसी विभाजनकारी अस्मिताएं विदा हो रही हैं। भारतको हर तरहसे संपन्न गरीबीविहीन राष्ट्र बनानेसे कोई नहीं रोक सकता है।