सम्पादकीय

अंतरिक्षमें आर्थिक संभावनाएं


अभिजीत मुखोपाध्याय   

स्पेस सेक्टरको दो हिस्सों-अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीममें बांट कर देखा जा सकता है। अपस्ट्रीम भागमें मुख्य रूपसे मैनुफैक्चरिंग गतिविधियां, जैसे- सैटेलाइट बनाना, प्रक्षेपण वाहनका निर्माण, संबंधित कल-पूर्जे तैयार करना, उपतंत्रोंका निर्माण आदि आते हैं। डाउनस्ट्रीम हिस्सेमें सेवाओंको गिना जाता है, मसलन सैटेलाइट टीवी, दूरसंचार, रिमोट सेंसिंग, जीपीएस, इमेजरी आदि। अभी मुख्य रूपसे डाउनस्ट्रीमके हिस्सेपर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, लेकिन प्रक्षेपण आदि भी नजरमें हैं। इसकी वजह यह है कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संघटन (इसरो) के पास मैनुफैक्चरिंगको प्राथमिकता देनेके लिए पर्याप्त बजट उपलब्ध नहीं है। यदि मुद्रास्फीतिको ध्यानमें रखें तो बजट और आवंटनमें कमीके रुझान हैं। सरकारकी नीति है कि सैटेलाइट दूरसंचार, रिमोट सेंसिंग आदि सेवा क्षेत्रमें निजी क्षेत्रकी भागीदारी और निवेशको प्रोत्साहित किया जाय और वे इसरोके साथ मिलकर वैश्विक बाजारमें भारतकी हिस्सेदारीमें वृद्धि करें।

ऐसे प्रयासोंसे इसरोके पास जो धन आयेगा, उससे निर्माण और प्रक्षेपणमें भी स्थिति मजबूत करनेकी स्थिति बनेगी। हमारे देशमें स्पेस उद्योगमें जो स्टार्टअप आये हैं या आ रहे हैं, उन्हें ऐसी गतिविधियोंमें उल्लेखनीय क्षमता हासिल करनेमें समय लगेगा। इसलिए इस मामलेमें इसरोकी बढ़त बहुत अधिक है। लेकिन उपभोक्ता सेवाओं, जो बहुत उच्चस्तरीय हैं और उनकी मांग बढ़ती जा रही है, में नीतिगत पहल और निजी क्षेत्रकी भागीदारीके अच्छे परिणाम निकल सकते हैं। एक संभावना उन साजो-सामानकी आपूर्तिमें हैं, जो धरतीपर प्रक्षेपण और सैटेलाइट मॉनीटरिंग, डाटा विश्लेषण आदिसे जुड़े हैं, जैसे- नेटवर्क, नियंत्रण कक्ष, डिश, टर्मिनल, डिजिटल रेडियो, नेविगेशन आदिके हार्डवेयर। बहुत संभावना है कि इनमें निजी क्षेत्रके आनेसे बाजारमें जगह बनानेमें मदद मिलेगी। फिलहाल ४४७ अरब डालरके आसपासका स्पेस उद्योगका बाजार है, लेकिन इस क्षेत्रके हमारी स्टार्टअप कंपनियोंका निवेश २०-२२ मिलियन डालरका ही है। लेकिन इस आंकड़ेसे निराशाजनक निष्कर्ष निकालनेकी हड़बड़ी नहीं करनी चाहिए।

अभी तो इस महामारीके दौरमें इन कंपनियोंका विस्तार शुरू हुआ है। आनेवाले समयमें निश्चित रूपसे निवेशमें वृद्धि होगी। वैश्विक बाजारमें भारतकी भागीदारी बढ़ानेके प्रयासमें सरकारको कुछ कानूनों प्रावधानों तथा नियामक बनानेके आयामोंपर भी ध्यान देना होगा। अभीतक स्पेस सेक्टर निजी क्षेत्रके लिए इसलिए नहीं खुला था क्योंकि इसका सीधा संबंध राष्ट्रीय सुरक्षासे जुड़ा हुआ था। इसरोके सैटेलाइटों और अन्य सेवाओंका इस्तेमाल तो रक्षा क्षेत्र द्वारा भी किया जाता है। भू-राजनीतिक परिस्थितियोंको देखते हुए ऐसा करना जरूरी भी है। इस मामलेको व्यावसायिक विस्तारकी पहलसे कैसे अलग किया जायेगा, इसपर विचार होना चाहिए। यह एक कानूनी सवाल है।

साल २०१७ में सरकारने अंतरिक्ष गतिविधियोंपर एक विधेयकका प्रारूप प्रस्तुत किया था। उसे अभीतक संसदमें नहीं लाया गया है। अब इसे कानूनी रूप दे दिया जाना चाहिए क्योंकि स्पेस सेक्टरको खोला जा रहा है। राष्ट्रीय सुरक्षाके अलावा यह बात भी रेखांकित की जानी चाहिए कि व्यापार बढऩेके साथ अन्य क्षेत्रोंकी तरह इसमें भी विवाद होंगे। उनके निबटारेके लिए कानूनी आधार होना चाहिए। अन्य क्षेत्रोंमें नियामक या प्राधिकरण भी बने हुए हैं, जो उनकी गतिविधियोंपर निगरानी रखते हैं तथा समय-समयपर दिशा-निर्देश जारी करते रहते हैं। ऐसी ठोस व्यवस्थाकी आवश्यकता अंतरिक्ष क्षेत्रमें भी होगी। यह करना मुश्किल नहीं है क्योंकि सरकारने कुछ अहम हिस्सोंको छोड़कर रक्षा क्षेत्रमें भी निजी और विदेशी निवेशको आमंत्रित किया है। उसके नियमों और रूप-रेखासे स्पेस सेक्टरके लिए भी व्यवस्था की जा सकती है। भारत अंतरिक्ष सुरक्षाके क्षेत्रमें भी सक्रिय है। स्पेस कारोबारमें उस पहलूको भी ध्यानमें रखा जाना चाहिए।

निश्चित रूपसे सरकारकी पहलसे संभावनाओंके द्वारा खुलेंगे और तकनीक एवं निवेशका विस्तार होगा। इसके साथ, रोजगारके मौके भी बनेंगे। लेकिन अनेक विश्लेषकोंकी तरह मेरा भी मानना है कि वैश्विक बाजारमें दस प्रतिशत हिस्सेदारीका लक्ष्य महत्वाकांक्षी है। विभिन्न आकलनोंके हिसाबसे देखें तो अभी यह हिस्सेदारी दो.तीन फीसदी है। यह भी देखना है कि क्या हम इस क्षेत्रमें स्टार्टअपपर ही निर्भर होंगे या बाहरसे कुछ स्थापित बड़ी कंपनियां भी भारत आयेंगी। एक संभावना यह भी है कि कुछ बड़े भारतीय उद्योग स्पेस इंडस्ट्रीमें निवेश करें। आखिरकार बाजारमें प्रतिस्पद्र्धा होगी और परस्पर सहयोगके अवसर बनेंगे, उसमें विदेशी अंतरिक्ष कंपनियोंकी उपस्थिति निश्चित ही रहेगी। यदि सरकारकी कोशिशें और निजी क्षेत्रकी उद्यमिता कारगर रही, तो संचारके अत्याधुनिक तकनीकोंकी उपलब्धता और उपभोगको भी बढ़ावा मिलेगा, जो भविष्यकी अर्थव्यवस्थाके महत्वपूर्ण आधार होंगे। इसके अलावाए विभिन्न प्रकारके उपकरणोंके निर्माण और संबंधित गतिविधियोंका बाजार भी विस्तृत होगा। इन अनुभवोंका लाभ स्पेस सेक्टरके साथ अन्य कुछ क्षेत्रोंको भी मिलेगा। नये तरहके रोजगारके अवसर भी पैदा होंगे। लेकिन हमें कुछ इन्तजार करना होगा।