सम्पादकीय

जमीनी हकीकतसे अलग है चीनका दावा


संजय राय

चीनकी सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी आफ चाइनाके राष्ट्रपति शी जिनपिंगने अपनी पार्टीके स्थापनाके सौ साल पूरे होनेके अवसरपर बीते एक जुलाईको सैन्य शक्तिका प्रदर्शन करके पूरे विश्वको एक संदेश दिया। भारत सहित अपने लगभग सभी पड़ोसी देशोंको आंख दिखा रहे चीनका संदेश था कि आजका चीन पहले जैसा नहीं है और दुनियाका कोई भी देश उसे आंख दिखानेकी जुर्रत न करे। इस अवसरपर चीनकी राजधानी पेइचिंगके थियानमेन चौकपर आयोजित किये गये भव्य सैन्य परेड कार्यक्रममें चीनके विभिन्न भागोंसे पहुंचे लाखों लोगों और कम्युनिस्ट पार्टीके सदस्योंको पार्टी महासचिव और चीनके राष्ट्रपति जिनपिंगने संबोधित करते हुए  ताइवान और अमेरिका समेत अपने दुश्मन देशोंको चेतावनी दी। याद रहे थियानमेन चौक वही जगह है, जहां ३२ साल पहले जून १९८९ में लोकतंत्रकी मांग कर रहे निहत्थे नागरिकोंपर चीनने टैंक चलवा दिये थे। इस घटनामें दस हजारसे अधिक लोगोंकी मौत हुई थी। जिनपिंगने कहा कि किसीको भी चीनकी क्षेत्रीय एकजुटता और संप्रभुताकी रक्षा करनेके लिए चीनी लोगोंकी मजबूत इच्छाशक्ति, इरादे और बेजोड़ ताकतको कम करके नहीं आंकना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा हम किसी भी ऐसी विदेशी ताकतको यह अनुमति नहीं देंगे कि वह हमें आंख दिखाये। उन्होंने कहा कि यदि कोई विदेशी ताकत ऐसा करनेका प्रयास करती है तो उसे चीनके १.४ अरब लोगोंकी फौलादी ताकतसे निबटना होगा। इस दौरान जिनपिंगने जो कपड़े पहन रखे थे उसपर भी लोगोंका ध्यान गया। उन्होंने माओ त्से तुंगकी तरह कपड़ा पहना हुआ था, जो इस बातका संकेत दे रहा था कि चीन अपनी साम्यवादी व्यवस्थाके साथ ही महाशक्ति बननेका संकल्प पूरा करेगा। उन्होंने कहा कि हमने किसीको नहीं दबाया है, न ही आंख दिखाई है और न ही किसी अन्य देशके नागरिकको अपनी अधीन करनेका प्रयास किया है और आगे भी ऐसा नहीं करनेवाले हैं। शी जिनपिंगने कहा कि चीन अपनी सेनाको विश्वस्तरीय बनायेगा। गौरतलब है कि जिनपिंग सेंट्रल मिलिट्री कमीशनके चेयरमैन भी हैं जो सेनाओंका नियंत्रण देखती है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि जिनपिंग माओके बाद चीनके सबसे ताकतवर नेताके रूपमें उभरे हैं। उनके नेतृत्वने चीनने चौतरफा आर्थिक प्रगति की है और सैन्य शक्तिमें भी काफी विस्तार हुआ है।

यदि भारतसे चीनकी सैन्य शक्तिकी तुलना करें तो अनुमान लगाया जाता है कि चीनकी सेना भारतकी अपेक्षा तीन गुना अधिक मजबूत है। लंबे समयसे आरोप लगते रहे हैं कि चीनने अपने असली रक्षा बजटको दुनियासे हमेशा छिपाकर रखा है। लगभग साढ़े पांच महीने पहले रक्षा मामलोंकी वेबसाइट ‘मिलिट्री डायरेक्टÓ ने एक अध्ययन प्रकाशित किया था। इस अध्ययनके अनुसार दुनियामें सबसे ताकतवर सेना चीनकी है, जबकि भारत चौथे स्थानपर है। अध्ययनमें दावा किया गया है कि बजट, सक्रिय एवं असक्रिय सैन्यकर्मियोंकी संख्या, वायु, समुद्री, जमीनी तथा परमाणु संसाधन, औसत वेतन और उपकरणोंकी संख्या समेत विभिन्न तथ्योंपर विचार करनेके बाद ‘सेनाकी ताकत सूचकांकÓ तैयार किया गया। हालांकि इस रिपोर्टके हवालेसे देखें तो दुनियाकी चौथी सबसे ताकतवर सेनाने पहले नंबरवाली सेनाको पूर्वी लद्दाखमें आगे बढऩेसे रोक दिया। चीन अपनी सेनाको पुरानी स्थितिमें ले जानेके लिए सहमत हुआ है और उसकी प्रक्रिया चल रही है। अध्ययनमें कहा गया है कि सेनापर भारी-भरकम पैसा खर्च करनेवाला अमेरिका ७४ अंकोंके साथ दूसरे स्थानपर है। इसके बाद ६९ अंकोंके साथ रूस तीसरे और ६१ अंकोंके साथ भारत चौथे तथा ५८ अंकोंके साथ फ्रांस पांचवें नंबरपर है। ब्रिटेन ४३ अंकोंके साथ नौवें स्थानपर है। चीन सौमेंसे ८२ अंकोंके साथ सबसे ऊपर है। अध्ययनके अनुसार बजट, सैनिकों और वायु एवं नौसैन्य क्षमता जैसी चीजोंपर आधारित इन अंकोंसे पता चलता है कि किसी काल्पनिक संघर्षमें विजेताके तौरपर चीन शीर्षपर आयेगा।

वेबसाइट के अनुसार अमेरिका दुनियामें सेनापर सबसे अधिक ७३२ अरब डालर खर्च करता है। इसके बाद चीन दूसरे नंबरपर है और वह २६१ अरब डालर तथा भारत ७१ अरब डालर खर्च करता है। अध्ययनमें कहा गया है कि यदि कोई लड़ाई होती है तो समुद्री लड़ाईमें चीन जीतेगा, वायु क्षेत्रमें अमेरिका और जमीनी लड़ाईमें रूस जीतेगा। इस अध्ययन और चीनके सैन्य शक्ति प्रदर्शनकी पृष्ठभूमिमें जिनपिंगके बयानको जमीनी हकीकतसे तुलना करके देखें यह बिलकुल साफ हो जाता है कि उन्होंने जो कुछ भी कहा है वह सफेद झूठ है। हांगकांग, उइगर मुस्लिम, लद्दाख और ताइवानको लेकर चीनकी नीतियोंको पूरी दुनियामें आलोचना हो रही है। लद्दाखको लेकर चीन और भारतके बीच लंबे समयसे गतिरोध चल रहा है। कुछ वर्ष पहले चीनने भूटानकी सीमासे सटे इलाके गलवानमें भी भारतको आंख दिखानेकी जुर्रत की थी। १९६२ में चीनने भारतपर हमला किया था। उस समय पंडित जवाहरलाल नेहरू प्रधान मंत्री थे और हिंदी-चीनी भाई-भाईका नारा अपने परवानपर था। भारतको गफलतमें डालकर चीनने धोखेमें हमला किया था और हमारी जमीनके एक बड़े हिस्सेपर कब्जा कर लिया था। भारतकी आजादीके महज चंद वर्षों बाद ही १९५१ में स्वतंत्र देश तिब्बतको अपने कब्जेमें किया। इतना ही नहीं, वह पूरे अरुणाचल प्रदेशको दक्षिण तिब्बत बताकर अपने देशके हिस्सेके रूपमें दावा करता है। वास्तविकता यह है चीन अघोषित रूपसे पूर्वोत्तर भारतके उन सभी राज्योंको अपना हिस्सा मानता है, जहां मंगोल नस्लके लोग निवास करते हैं। भारतके किये गये तमाम वादोंके बावजूद चीन लद्दाखमें अपनी सेनाकी संख्यामें लगातार वृद्धि कर रहा है, जबकि सहमति बन जानेके बाद भारतने इस इलाकेके कई अहम ठिकानोंसे अपनी सेनाको पीछे हटा लिया है। अब चीन कह रहा है भारतको जो मिला है उससे ही संतोष करना चाहिए। चीन दक्षिण चीन सागरके पूरे इलाकेको अपना बताकर जहां अपने कई पड़ोसियोंको धमका रहा है, वहीं समुद्रके रास्ते इस इलाकेसे होनेवाले वैश्विक व्यापारको अपने नियंत्रणमें लेनेका कुत्सित ख्वाब पाले हुए है। वह दक्षिण चीन सागरमें नकली टापू बनाकर सैन्य अड्डे बना चुका है, जिससे कि पूरे इलाकेको अपना बता सके और पड़ोसी देशोंकी दावेदारीको समाप्त कर सके। वह ताइवानको अपने देशपर पूरी तरह कब्जा करनेके इरादेसे लगातार धमकी दे रहा है और हांगकांगमें लोकतंत्र समर्थक ताकतोंका दमन कर रहा है। चीनके १४ पड़ोसी देश हैं। भारतके एकमात्र दुश्मन देश पाकिस्तानको छोड़कर ऐसा कोई भी पड़ोसी नहीं है, जिसके साथ उसका सीमा विवाद न हो।

यही आजके चीनकी जमीनी सचाई है। आजके समयकी सबसे कड़वी हकीकत कोरोना वैश्विक महामारीको लेकर चीन सवालोंके घेरेमें है। अमेरिका खुलेआम आरोप लगा रहा है कि चीनने कोरोनाको वुहानकी प्रयोगशालामें जैविक हथियारके रूपमें विकसित किया है और उसने जानबूझकर इसे पूरे विश्वमें फैलाया है। विश्व स्वास्थ्य संघटन अब इस आरोपकी नये सिरेसे जांच कर रहा है, क्योंकि पहली जांचको चीनने प्रभावित करनेका प्रयास किया था। उक्त तथ्योंके आलोकमें देखा जाय तो चीनका दोहरा चेहरा पूरे विश्वके सामने खुलकर आ चुका है। कोरोना वायरसके प्रसारमें चीनकी संदिग्ध भूमिका, उसका सैन्य शक्ति प्रदर्शन और शी जिनपिंगके बयानने पूरे विश्वके लिए गम्भीरतासे सोचनेका अवसर दिया है। यह चीनके इरादोंपर हर तरहसे लगाम लगानेका समय है, क्योंकि उसे मानव जीवनकी कोई परवाह नहीं है। दुनियाकी महाशक्ति बननेकी दौड़में चीनने सार्वभौम मानवीय मूल्योंको पूरी तरह दरकिनार कर दिया है।