Latest News नयी दिल्ली पटना बिहार राष्ट्रीय

जातिगत जनगणना नहीं बल्कि इन मुद्दों को केंद्र में रखकर जनता के बीच जाएगी BJP


पटना। बिहार में भारतीय जनता पार्टी अपनी चाल बदलने जा रही है। प्रदेश में जाति की राजनीति का मुद्दा हमेशा से केंद्र में रहा है। परंतु भाजपा ने अब इससे किनारा करने का फैसला लिया है। उसका कहना है कि वह प्रदेश में अब जनहित के मुद्दों को धार देगी, जाति और जमात की बात नहीं करेगी।

बता दें कि बीते 14 महीने से प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में जन सुराज पदयात्रा निकाल रहे प्रशांत किशोर भी इसे लेकर मुखर रहे हैं। वह अपनी सभाओं में जाति के नाम पर वोट नहीं देने की अपील करते रहे हैं।

इधर, राज्य सरकार की ओर से कराए गए जाति आधारित सर्वे के आंकड़े जारी होने के बाद यह मुद्दा और भी तेजी से उठा था।

नीतीश सरकार का कहना है कि वह जाति आधारित गणना के आधार पर अपनी योजनाएं बनाएगी, ताकि सही वर्ग तक उसका लाभ पहुंच सके।

वहीं, दूसरी ओर विपक्षी दलों ने इसे लेकर नीतीश सरकार पर जमकर निशाना साधा था। इसके आंकड़ों में गड़बड़ी के आरोप भी लगाए गए हैं। अब एक बार फिर यह मुद्दा सियासी बयानबाजी के केंद्र में आ गया है।

भाजपा कोर ग्रुप की बैठक में चर्चा

बहरहाल, भाजपा की प्रदेश के कोर ग्रुप की बैठक में इसे लेकर चर्चा उस ढंग से नहीं हुई, जिसकी राज्य के नेताओं को आशा थी। रविवार शाम को यह बैठक सिर्फ भेंट-मुलाकात तक ही सीमित रही।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 20 लोगों से ही मिले। इस थोड़े से समय में उन्होंने बिहार भाजपा के नेताओं को बड़ी बात समझा दी। यहां महज चार बिंदुओं पर चर्चा हुई।

इसका सार बस इतना रहा कि किसी जाति-जमात का विरोध किए बिना भाजपा को पूर्व निर्धारित चुनावी रणनीति पर आगे बढ़ना है। बात मात्र जनहित की होगी और उसका सुफल तीन राज्यों (मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान) के चुनाव परिणाम की तरह बिहार में भी मिलेगा।

शाह अपने इस भरोसे का आधार जनता के बीच विराधियों की विश्वसनीयता का कम होना और उनका आपसी मनमुटाव बताए हैं।

शाह से मिलने वालों में प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी, विधानमंडल दल के नेता विजय सिन्हा, विधान परिषद में विपक्ष के नेता हरि सहनी, पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी, मिथिलेश तिवारी सहित चारों प्रदेश महामंत्री आदि रहे।

4 सीख दे गए शाह

  • पहली : जाति आधारित गणना हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में कोई बड़ा मुद्दा नहीं बन पाई है। जनता को इसमें गड़बड़ी की आशंका दिखाई दी है। इसलिए परेशान होने की जरूरत नहीं है।
  • दूसरी : मुसलमानों का वोट यदि नहीं भी मिलता है तो भी यादवों के कुछ वोट मिलने की आशा रखी जाए। वोटिंग पैटर्न में यादवों को मुसलमानों के समान नहीं मानना है।
  • तीसरी : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पहले की तरह जन-अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर रहे हैं। नेतृत्व को लेकर विपक्ष में अनबन की आशंका है। यह भाजपा के पक्ष में जाएगा। विधानसभा में महिला और मांझी पर नीतीश की टिप्पणी को सभी ने अप्रिय और मात्र एक दुर्योग माना। क्योंकि इससे पहले का नीतीश का इस तरह की आपत्तिजनक बयानबाजी का कोई रिकॉर्ड नहीं है। इस दौरान नीतीश के स्वास्थ्य को लेकर भी चिंता जताई गई।
  • चौथी : चुनावी तैयारी पहले की तरह जारी रहेगी और अपेक्षा के अनुरूप समय-समय पर उसमें बदलाव होता रहेगा।

चुनौती : चुनावी जीत को कायम रखने की

शाह ने भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लगातार तीसरी चुनावी जीत के लिए बिहार विजय को सबसे अहम बताया है।

उन्होंने कठिन माने जाने वाले लोकसभा क्षेत्रों में ज्यादा प्रयास करने का निर्देश दिया है। यह भी समझाया है कि पिछली जीत में नीतीश कुमार राजग का हिस्सा थे।

अब जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा को साथ लेकर नीतीश की कमी को पूरा करने की कोशिश है। हालांकि, लोजपा के दो धड़ों (पशुपति कुमार पारस व चिराग) में सामंजस्य बड़ी चुनौती है।