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जाति आधारित राजनीति पर टिके राजनीतिक दलों को यूपी के चुनाव नतीजों ने सिखाया सबक


पटना,  विस्तार करना हर राजनीतिक दल का लक्ष्य होता है। हाल ही में संपन्न पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों ने बिहार के भी राजनीतिक दलों की महत्वाकांक्षा को हवा दी थी। जदयू (जनता दल यूनाइटेड), वीआइपी (विकासशील इंसान पार्टी) और लोजपा (रामविलास) भी अपनी किस्मत आजमाने निकली थी, लेकिन इनकी दाल उत्तर प्रदेश में नहीं गली। मणिपुर में जरूर जदयू को छह सीटें मिलीं, जिससे यह तय हो गया कि जदयू की जमीन उत्तर-पूर्वी राज्यों में तैयार हो रही है, लेकिन राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने के लिए अभी उसे और इंतजार करना पड़ेगा, क्योंकि इसके लिए चार राज्यों में उसे कम से कम छह प्रतिशत वोट चाहिए। परंतु अभी बिहार के अलावा इस राजनीतिक दल का मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में ही आधार है। यानी आंकड़े में एक की कमी है।

बिहार में ये सभी दल एक तरह से भाजपा के साथ ही हैं। जदयू और वीआइपी सत्ता में भागीदार हैं तो लोजपा (रामविलास) विरोध में होते हुए भी भाजपा विरोधी नहीं है। सभी की इच्छा उत्तर प्रदेश में भाजपा के साथ मिलकर लड़ने की थी, लेकिन बात नहीं बनी। जदयू ने बातचीत के लिए केंद्रीय मंत्री रामचंद्र प्रसाद सिंह (आरसीपी सिंह) को जिम्मेदारी सौंपी, लेकिन तीन दर्जन सीटों की मांग होने के कारण बैठकों में कोई नतीजा नहीं निकला और समय बढ़ता गया। ऐसे में राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने 51 सीटों पर लड़ने की घोषणा कर दी। हालांकि आरसीपी सिंह गठबंधन के हिमायती थे और उन्हें सात-आठ सीट मिलने की उम्मीद भी थी, परंतु तब तक राह अलग हो चुकी थी।