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पांच राज्यों में से चार में भाजपा की सफलता के बाद विपक्षी खेमे में हलचल


चुनाव वाले पांच राज्यों में से चार में भाजपा की सफलता के बाद विपक्षी खेमे में हलचल स्वाभाविक है। जहां पंजाब में शानदार जीत हासिल करने के बाद आम आदमी पार्टी राष्ट्रीय विकल्प बनने की तैयारी में है, वहीं कांग्रेस समेत अन्य दल फिर से विपक्षी एकता की संभावनाएं टटोल रहे हैं। ममता बनर्जी ने कांग्रेस की खत्म होती विश्वसनीयता का जिक्र करते हुए विपक्षी एकता की नए सिरे से पहल की है। नि:संदेह कांग्रेस की पांचों राज्यों में पराजय हुई है, लेकिन गोवा में चुनाव लड़ने गई तृणमूल कांग्रेस का भी तो खाता नहीं खुला।

मता की मानें तो उत्तर प्रदेश में सपा को ईवीएम में लूट करके हराया गया है। साफ है कि वह यह यह भूल गईं कि बंगाल में चुनावों के दौरान और फिर नतीजों के बाद कैसी भीषण हिंसा हुई थी? उन्हें यह भी याद नहीं रहा कि 2018 में बंगाल के पंचायत चुनावों के दौरान मतपेटियां किस तरह तालाबों में मिली थीं? पांच प्रांतों के चुनाव नतीजों से ममता का नाराज होना समझ आता है, लेकिन यह भी साफ है कि उनके नेतृत्व में विपक्षी एका के आसार नहीं। इसी तरह तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव की पहल भी परवान चढ़ती नहीं दिखती, क्योंकि वह भी ममता की तरह कांग्रेस को किनारे कर विपक्ष को एकजुट करना चाहते हैं।

ममता और चंद्रशेखर राव के रुख से कांग्रेस को चिंतित होना चाहिए, क्योंकि वह खुद एक क्षेत्रीय दल में तब्दील होती जा रही है। चिंता की बात यह भी है कि उसकी मानसिकता भी क्षेत्रीय दलों सरीखी होती जा रही है। वह राष्ट्रीय मुद्दों पर बात अवश्य करती है, लेकिन उसी संकीर्णता के साथ जैसे क्षेत्रीय दल करते हैं। पांच राज्यों में हार के बाद राहुल गांधी ने भले ही यह कहा हो कि वह सबक सीखेंगे और देशहित में काम करते रहेंगे, लेकिन इस तरह की बातें तो वह न जाने कब से करते आ रहे हैं। इसीलिए यह सवाल उठ रहा है कि आखिर वह कब सीखेंगे?

वास्तव में इस सवाल से पूरा गांधी परिवार दो-चार है, क्योंकि वह ऐसे व्यवहार कर रहा है, जैसे देश पर शासन करना उसका जन्मसिद्ध अधिकार है और एक के बाद एक चुनावों में जनता कांग्रेस को नकार कर गलती कर रही है। जैसे अन्य विपक्षी दलों का सारा जोर भाजपा और विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सत्ता से बाहर करने पर है, वैसे ही कांग्रेस का भी।