आनंद शुक्ल
देशमें हालके दिनोंमें भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के दो अधिकारियोंने खूब सुर्खियां बटोरी। यह दोनों अधिकारी अपनी किसी खास उपलब्धिकी वजहसे नहीं, बल्कि गलत आचरणके चलते चर्चामें रहे। पिछले दिनोंको छत्तीसगढ़के सूरजपुरके जिला कलेक्टर रणवीर शर्माने लॉकडाउनके दौरान बाहर घूम रहे युवक अमन मित्तलको थप्पड़ मारकर उसका मोबाइल फोन जमीनपर पटक दिया। घटनाका वीडियो वायरल होनेके बाद प्रदेशके मुख्य मंत्री भूपेश बघेलने हरियाणाके मूल निवासी २०१२ बैचके आईएएस अधिकारी रणवीर शर्माको तत्काल प्रभावसे कलेक्टरके पदसे हटाकर उन्हें मंत्रालयमें संयुक्त सचिवके पदपर भेज दिया। इतना ही नहीं, बल्कि मुख्य मंत्री बघेलने अधिकारियोंसे अमन मित्तलको नया मोबाइल फोन भी भेजवाया। मुख्य मंत्री भूपेश बघेलने इस घटनापर पहले ही खेद प्रकट कर दिया था। बादमें आईएएस रणवीर शर्माने भी माफी मांग ली। मामलेको संज्ञानमें लेकर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोगने रणवीर शर्मा और राज्यके मुख्य सचिव अमिताभ जैनको नोटिस भेज कर जवाब मांगा है। साथ ही आयोगने रणवीर शर्माके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने और आवश्यक अनुशासनात्मक काररवाई करनेको भी कहा है। आयोगका यह कदम सर्वथा उचित और सराहनीय है।
दूसरी घटना पिछले २६ अप्रैलको त्रिपुरा पश्चिमके जिला कलेक्टर शैलेश कुमार यादव द्वारा एक विवाह समारोहमें अपने लाव-लश्करके साथ पहुंचकर वहां तांडव मचानेके कारण मीडियाकी सुर्खियोंमें रही। उत्तर प्रदेशके अंबेडकर नगरके मूल निवासी जिला कलेक्टर शैलेश कुमार यादवने तो शिष्टाचार और पदकी मर्यादाकी सारी सीमाएं लांघ कर विवाह समारोहमें न सिर्फ पंडित एवं दूल्हा-दुल्हनको पीटकर भगाया, बल्कि भोजनके टेबलपर बैठकर खाना खा रहे बारातियोंको भी डंडेके बलपर खदेड़ कर विवाह कक्षसे बाहर कर दिया। परिजनोंने जब सरकारी आदेशकी प्रति कलेक्टरको दिखाना चाहा तो तैशमें आकर आदेशकी प्रति फाड़ कर कलेक्टरने उनके मुंहपर फेंक दिया। जाहिर है कि एक आईएएस अधिकारीके इस तरहके अनुचित आचरणको सभ्य और शिक्षित समाजमें स्वीकार नहीं किया जा सकता। घटनाका वीडियो वायरल होनेके बाद भाजपाके कई विधायकोंने त्रिपुराके मुख्यमंत्री विप्लव कुमार देबको चि_ी लिखकर कलेक्टरके खिलाफ काररवाई करनेकी मांग की। हालांकि मुख्य मंत्रीके आदेशपर दो वरिष्ठ आईएएस अधिकारियोंकी टीम मामलेकी जांच कर रही है। दरअसल छत्तीसगढ़के मुख्य मंत्रीने जिस तरहकी तत्परता दिखाते हुए कलेक्टर रणवीर शर्माको हटाकर मंत्रालयमें उनका तबादला कर दिया, इसी तरह त्रिपुराके मुख्य मंत्रीको भी ठोस और त्वरित काररवाई करनी चाहिए थी। यदि ऐसा किया गया होता तो निश्चित ही आईएएस बिरादरीमें अच्छा संदेश जाता। यद्यपि शासनके स्तरपर कहीं जांच बैठाकर तो कहीं तबादला करके इन दोनों मामलोंको शांत करनेका प्रयास तो कर दिया गया। लेकिन एक आईएएस अधिकारी जिसके ऊपर जिलेकी प्रशासनिक जिम्मेदारी होती है, वह हिंसक और बेकाबू क्यों हो रहा है। इसकी तहमें जाकर इसे समझनेकी जरूरत है। कहीं कामके अत्यधिक बोझके कारण तो ऐसा नहीं हो रहा है अथवा प्रशासनिक सेवामें चयनके बाद मसूरीमें दिये गये उनके प्रशिक्षणमें कोई कमी रह गयी। इस बातको ठीकसे समझकर इसका समाधान करना होगा, ताकि भविष्यमें इस तरहकी घटनाएं न हों और आईएएस अधिकारी अपना हिंसक स्वभाव बदलकर आगेसे मर्यादित आचरण कर सकें।
संदेह नहीं कि जब एक आईएएस अधिकारी किसी जिलेमें कलेक्टर बनकर जाता है तो वह उस जिलेका सर्वाधिक शक्तिशाली और अधिकार संपन्न अधिकारी होता है। जिलेके सभी विभाग उसके मातहत काम करते हैं। कई अपर जिलाधिकारी और उपजिलाधिकारी उसके सहयोगी होते हैं। जन-साधारणकी समस्याओंको सुनकर उन्हें न्याय दिलाना जिलाधिकारीका कर्तव्य है। विकासकी रूप रेखा तैयार करना, जनपदका सर्वांगीण विकास करना भी जिलाधिकारीका दायित्व है। चूंकि कानून-व्यवस्थाकी विशेष जिम्मेदारी जिला कलेक्टरकी होती है, इसलिए पुलिस विभागको भी उसके दिशा-निर्देशका पालन करना होता है। जिला कलेक्टरकी असीमित शक्तिका इस बातसे अनुमान लगाया जा सकता है कि जिलाधिकारी यदि कानून-व्यवस्थाका हवाला देकर यदि किसी अति विशिष्ट व्यक्तिके जनपदमें आगमनको रोकना चाहे तो बड़ासे बड़ा ओहदेवाला व्यक्ति भी जिलेमें कदम नहीं रख सकता। उदाहरणार्थ कुछ वर्ष पूर्व भाजपाके वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी पटनामें चुनावी रैलीको संबोधित कर रहे थे। जैसे ही रातके दस बजे वहांके तत्कालीन जिलाधिकारी गौतम गोस्वामीने मंचपर आकर माइक पकड़ लिया। आडवाणीको अपना भाषण बंद करना पड़ा। स्वभाविक है कि इतने सारे अधिकार मिलनेपर व्यक्तिके अंदर थोड़ा घमंड तो आ ही जाता है। गौर करनेकी बात है कि एक आईएएस अधिकारीको उसकी शारीरिक शक्तिके चलते नहीं, बल्कि उसकी प्रशासनिक क्षमता और उसके द्वारा उठाये गये साहसिक और बुद्धिमत्ता पूर्ण कदमोंसे उसकी हनक और पहचान बनती है। कलेक्टर स्वयं कानूनका रखवाला होता है। जिलेमें कानूनका उल्लंघन न हो इसका ध्यान रखना कलेक्टरका कार्य है। ऐसेमें यदि कलेक्टर अपने पदकी मर्यादा और शिष्टाचारको भूलकर कानूनके विपरीत तांडव करने लगे तो ऐसे बिगड़ैल कलेक्टरको काबूमें करना जरूरी हो जाता है। सरकारको ऐसे बिगड़ैल अधिकारियोंको थोड़े समयके लिए दोबारा प्रशिक्षणके लिए मसूरी भेज देना चाहिए। इनके आचरणमें सुधार आनेके बाद भी इनकी नियुक्ति जिलेमें न करके मंत्रालयमें ही की जानी चाहिए।
मंत्रालयमें बैठकर जब काम करेंगे तब उन्हें अहसास होगा कि जिलाधिकारीका पद कितना महत्वपूर्ण होता है। यह भी आवश्यक है कि सरकारोंको जिलेमें किसी आईएएस अधिकारीकी तैनाती करनेसे पूर्व उसका चाल-चलन, जनताके साथ उसका व्यवहार और उसकी पहलेकी तैनातीकी जगहका रिकॉर्ड अवश्य जान लेना चाहिए। जो सौम्य हों, शिष्टाचार जानते हों और जिलाधिकारीके पदके दायित्वको ठीकसे समझते हों। ऐसे अधिकारियोंको जिलाधिकारीके पदपर नियुक्त करना चाहिए। देशमें तमाम ऐसे आईएएस अधिकारी हैं जो जिलाधिकारीके रूपमें कार्य करते हुए बहुत ही लोकप्रिय हैं। इसलिए थप्पड़ मारनेकी इन छिटपुट घटनाओंको अपवादके रूपमें ही देखना चाहिए। सरकारोंको भी तुनकमिजाज आईएएस अधिकारियोंकी जिलेमें तैनाती करनेसे बचना चाहिए। ताकि पदके रौबमें बेखौफ होकर अनुचित कार्य करनेवाले कुछ अधिकारियोंके कारण पूरी आईएएस बिरादरीको शर्मिंदगी न उठानी पड़े।