सम्पादकीय

चिकित्सा पद्धतिका गौरवशाली इतिहास


 प्रताप सिंह

विश्वभरमें मौतका कहर मचानेवाली कोरोना महामारीके भयंकर एवं डरावने माहौलमें कोरोना संक्रमणके चक्रव्यूहमें अपनी जानकी परवाह किये बिना बेखौफ होकर घुसनेका साहस यदि किसीने किया तो वह अग्रदूत हमारे डाक्टर हैं। कोरोनासे उपजी लाकडाउन जैसी बंदिशोंमें भी चिकित्साकर्मी कोरोना संक्रमित मरीजोंके इलाजमें मुस्तैद थे। आजके आधुनिक दौरमें कई बीमारियोंका पता लगानेवाले उपकरण एवं आधुनिक मशीनोंका आविष्कार हो चुका है। कई बीमारियोंसे निजात दिलानेवाली दवाइयां मेडिकल स्टोरोंमें उपलब्ध हैं। लेकिन चिकित्सा क्षेत्रमें भारतका गौरवशाली इतिहास सृष्टिके शुरुआतसे ही चला आ रहा है। हमारे पौराणिक साहित्यमें देवताओंके चिकित्सक अश्विनी कुमारोंका पर्याप्त जिक्र है। धार्मिक ग्रंथोंमें महर्षि शुक्राचार्य, सुषेण वैद्य तथा हर्षमित्र जैसे संजीवनी बूटीके पारंगत महान चिकित्सकोंका व्यापक वर्णन हुआ है। सदियोंसे भारतमें आयुर्वेद तथा शल्य चिकित्सा पद्धतिका समृद्ध इतिहास रहा है। भारतके लिए गौरवका विषय है कि ऑस्ट्रेलियामें मेलबॉर्नके रॉयल कॉलेज ऑफ सर्जन् तथा अमेरिकामें कोलंबिया इरविंग मेडिकल सेंटरमें भारतीय महर्षि सुश्रुतकी प्रतिमा लगायी गयी है। उन कॉलेजोंमें डाक्टरीकी पढ़ाई करनेवाले कई देशोंके छात्रोंको बताया जाता है कि महर्षि सुश्रुत फादर ऑफ सर्जरी थे। कई देश स्वीकार कर चुके हैं कि प्लास्टिक सर्जरीकी शुरुआत हजारों वर्ष पूर्व भारतमें हुई थी। सर्जरीके पितामह एवं शिक्षक महर्षि सुश्रुत द्वारा शल्य चिकित्सापर संस्कृत भाषामें रचित सबसे प्राचीनतम ग्रंथ सुश्रुत संहिताका अरबी भाषाकी किताब-ए-सुसुद्र नामक पुस्तकके रूपमें अनुवाद हो चुका है। सुश्रुत ही वह महान ऋषि थे, जिन्होंने प्रत्येक वनस्पतिमें औषधीय गुण होनेका खुलासा किया था। अपनी श्रेष्ठताको साबित कर चुका कई सिंद्धातोंपर आधारित चिकित्सा विज्ञान आयुर्वेद हमारे मनीषियों द्वारा विश्वके लिए अमूल्य उपहार है। कई देश आयुर्वेदमें वर्णित औषधियोंपर शोध करके इस चिकित्सा पद्धतिको उत्तम मानकर अपना रहे हैं। इस आयुर्वेदके विशारद महर्षि चरक भारतीय औषधि विज्ञानके मूल प्रवत्र्तक थे। आयुर्वेदका अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ चरक संहिता महर्षि चरककी रचना है। इसीलिए उन्हें फादर आफ  इंडियन मेडिसिन भी कहा जाता है। अश्व चिकित्सापर विश्वकी प्रथम पुस्तक शालिहोत्र संहिताके रचयिता आचार्य शालिहोत्र थे। भारतमें सदियों पूर्व तक्षशिला, नालंदा एवं विक्रमशिला जैसे विश्वविख्यात विश्वविद्यालयोंमें चिकित्सा अध्ययनकी उत्तम व्यवस्था थी। विश्वका प्रथम विश्वविद्यालय तक्षशिला चिकित्सा शास्त्रका सर्वोपरि केंद्र रहा था।

इसी तक्षशिला विश्वविद्यालयसे उच्चकोटिके आयुर्वेदाचार्य, बालरोग विशेषज्ञ तथा शल्यविद जीवक कौमारभच्चने चिकित्सा शास्त्रका सफलतापूर्वक अध्ययन करके स्नातककी उपाधि हासिल की थी। जीवनकी मूलभूत सुविधाओंके साथ शिक्षा देशके युवावेगके भविष्यकी बुनियाद तथा स्वास्थ्य सबसे बड़ी दौलत है। भारत अतीतसे शिक्षाके साथ चिकित्सा क्षेत्रमें भी आत्मनिर्भर था, परन्तु वर्तमानमें हमारा देश विश्व हेल्थकेयर इंडेक्समें पिछड़ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संघटनके तय मानक नियमों तथा विशाल आबादीके मद्देनजर देश चिकित्सकोंकी भारी कमीसे जूझ रहा है। ऐसा नहीं है कि दुनियाकी दूसरी सबसे बड़ी आबादीवाले देश भारतमें प्रतिभाओंकी कमी है या उच्च शिक्षण संस्थानों एवं मेडिकल कालेजोंकी दरकार है, लेकिन शिक्षा तंत्र एवं स्वास्थ्य सेवाओंपर निजी क्षेत्रका कब्जा होनेसे दोनों क्षेत्रोंका व्यवसाय बेहद महंगा साबित हो रहा है। आम लोग दोनों क्षेत्रोंकी सेवाएं लेनेमें असमर्थ हैं। जब अभिभावकोंको प्राइवेट स्कूलोंकी बढ़ती फीससे परेशान होकर शासनसे फरियाद लगानी पड़े या प्रशासनको ज्ञापन सौंपने पड़ें तो डाक्टरीकी करोड़ों रुपयेकी महंगी शिक्षा आम लोगोंके बच्चोंके लिए महज ख्वाब बनकर रह जायगी। इसलिए सरकारी स्कूलों एवं सरकारी अस्पतालोंकी दयनीय स्थितिको दुरुस्त करनेकी सख्त जरूरत है। देशकी उभरती प्रतिभाओंके भविष्यको कुचलनेवाली व्यवस्थाको विकलांग बनानेवाली नीतियोंपर जोरदार सियासी रायशुमारी होनी चाहिए।

मुफ्तखोरीकी योजनाएं, आरक्षण, जातिवाद तथा कई धार्मिक मुद्दे सियासी जमातोंके लिए वोटबैंकका आधार एवं मजबूरी बन चुके हैं। लेकिन कोरोना जैसे घातक संक्रामक रोगसे निबटनेके लिए चिकित्सा क्षेत्रमें विशेषज्ञ चिक्तिसक एवं गुणवत्तायुक्त विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सेवाओंकी जरूरत है। अत: समयकी मांग है कि मुफ्तखोरी एवं आरक्षणकी बैसाखियोंको हटाकर प्रतिभाओंकी योग्यताको प्राथमिकता देकर उचित मंच प्रदान किया जाय, ताकि देशको योग्य विशेषज्ञ चिक्तिसक एवं अफसरशाही उपलब्ध हो। फिलहाल महर्षि सुश्रुत, चरक, पतंजलि, जीवक, च्यवन, धनवंतरी, अग्निवेश तथा शालिहोत्र जैसे महान आचार्योंने अपने तपोबल, ज्ञान एवं शोधके अथक प्रयासोंसे भारतीय चिकित्सा व्यवस्थामें महत्वपूर्ण एवं प्रभावी योगदान दिया था। अंग्रेज हुकूमतकी पाश्चात्य मानसिकताने हमारे जिस चिकित्सा ज्ञानको उपेक्षित किया था, आज वही देश आयुर्वेद एवं भारतीय संस्कारोंकी महानताको समझकर अपनी जीवनशैलीमें अपना रहे हैं। लाजिमी है कि पुरातनसे भारतभूमिका गौरव अपने पुरखे ऋषि-मुनियोंके चिकित्सकीय ज्ञानकी परंपरा एवं विरासतको राष्ट्रीय स्तरपर पहचान दिलानेकी पैरवी होनी चाहिए।