सम्पादकीय

युग निर्माण


श्रीराम शर्मा

मनुष्यका मन कोरे कागज या फोटोग्राफीकी प्लेटकी तरह है, जो परिस्थितियां, घटनाएं एवं विचारणाएं सामने आती रहती हैं और मनोभूमि वैसी ही बन जाती है। व्यक्ति स्वभावत: न तो बुद्धिमान है और न मूर्ख, न भला है, न बुरा। वस्तुत: वह बहुत ही संवेदनशील प्राणी है। समीपवर्ती प्रभावको ग्रहण करता है और जैसा कुछ वातावरण मस्तिष्कके सामने छाया रहता है, उसी ढांचेमें ढलने लगता है। उसकी यह विशेषता परिस्थितियोंकी चपेटमें आकर कभी अध:पतनका कारण बनती है, कभी उत्थानका। व्यक्तित्वकी उत्कृष्टताके लिए सबसे बड़ी आवश्यकता उस विचारणाकी है, जो आदर्शवादितासे ओत-प्रोत होनेके साथ हमारी रुचि और श्रद्धाके साथ जुड़ जाय। यह प्रयोजन दो प्रकारसे पूरा हो सकता है। एक तो आदर्शवादी उच्च चरित्र महामानवोंका दीर्घकालिन सान्निध्य, दूसरा उनके विचारोंका स्वाध्याय। एक तो तत्वदर्शी महामानवोंका एक प्रकारसे सर्वनाश हो चला है। श्रेष्ठताका लबादा ओढ़े कुटिल, दिग्भ्रांत लोग ही श्रद्धाकी वेदी हथियाये बैठे हैं। उनके सान्निध्यमें व्यक्ति कोई दिशा पाना तो दूर, उल्टा भटक जाता है। जो उपयुक्त हैं वह समाजकी वर्तमान परिस्थितियोंको सुधारनेके लिए इतनी तत्परता एवं व्यस्तताके साथ लगे हुए हैं कि सुविधापूर्वक लंबा सतसंग दे सकना उनके लिए भी संभव नहीं। इसलिए जिन सौभाग्यशालियोंको महापुरुषोंका सान्निध्य जब कभी मिल जाय, तब उतनेमें ही संतोष कर लेना पड़ेगा। स्वाध्यायके माध्यमसे मस्तिष्कके सम्मुख वह वातावरण देरतक आच्छादित रखा जा सकता है, जो हमें प्रखर और उत्कृष्ट जीवन जी सकनेके लिए उपयुक्त प्रकाश दे सके। स्वाध्यायमें बौद्धिक भूख और आध्यात्मिक आवश्यकताकी पूर्तिके लिए हमें पेटको रोटी और तनको कपड़ा जुटानेसे भी अधिक तत्परताके साथ प्रयत्नशील होना चाहिए। क्योंकि चारों ओरकी परिस्थितियां जो निष्कर्ष निकालती हैं, उनमें हमें निकृष्ट मान्यताएं और गतिविधियां अपनानेका ही प्रोत्साहन मिलता है। यदि दुष्प्रभावकी काट न की गयी तो सामान्य मनोबलका व्यक्ति दुर्बुद्धि अपनाने और दुष्कर्म करनेमें ही लाभ देखने लगेगा। इसी प्रकार मनमें चारों ओरके वातावरणका प्रभाव पड़ते रहनेसे, जो मलीनता जमती है उसके परिष्कारका एकमात्र उपाय स्वाध्याय ही रह जाता है। जीवित या मृत महामानवोंके विचारों, चरित्रोंका प्रभाव जब चाहे तब, जितनी देरतक चाहें उतनी देरतक उनके सान्निध्यका लाभ ले सकते हैं। सृष्टिके आदिकालसे लेकर चले आ रहे सनातन धर्म सिद्धांतोंके आधुनिक बुद्धिवाद और विज्ञानवादके साथ जोड़कर वर्तमान परिस्थितियोंके उपयुक्त ऐसे समाधान प्रस्तुत किये हैं।