सम्पादकीय

कृषि क्षेत्रमें सामाजिक सुरक्षाकी योजना


रत्नेश कुमार गौतम
द्वितीय गोल मेज सम्मेलनमें भावी भारतीय संवैधानिक व्यवस्थाके व्यावसायिक पक्षपर चर्चाके दौरान गांधी जीने कहा कि कार्मिक, जो अधिकांशत: निम्न वर्गसे आते थे तथा उस समय कथित उच्च वर्ग एवं राज्यकी कृपापर जीवित रहते थे और इनकी परिस्थितियोंको समान करनेके लिए विधायिकाका प्रथम अधिनियम जो लाया जाय वह इन लोगोंको जमीन प्रदान करनेके लिए होना चाहिए, इसका मूल्य यूरोपियनों सहित धनिक वर्गसे आना चाहिए। सामाजिक सुरक्षाके संबंधमें स्वतंत्र भारतके शुरुआती अधिनियमितियोंमेंसे एक १९४८ का ईएसआई अधिनियम था। ईएसआई अधिनियमकी धारा १ (५) इस अधिनियम द्वारा किसी भी ऐसे प्रतिष्ठानों या प्रतिष्ठानोंके वर्गको सामाजिक सुरक्षाके प्रावधानोंके विस्तारके लिए अधिकृत करती है, जो औद्योगिक, वाणिज्यिक या कृषि या अन्यसे संबंधित हो सकता है। स्वतंत्रताके समय भारतके नीति निर्माताओं और स्वप्नदृष्टाओंकी मंशा बहुत स्पष्ट थी। उन्होंने कल्पना की थी कि मजदूरों, किसानों, कृषि श्रमिकों, औद्योगिक श्रमिकोंके कल्याण और सामाजिक सुरक्षाको प्राथमिकताको सुनिश्चित किया जाना चाहिए। पिछले ७० वर्षोंके दौरान किसानों और कृषि श्रमिकोंको सामाजिक सुरक्षा प्रदान करनेके इस दृष्टिकोणको हम कुछ हदतक खो चुके हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संघटन (आईएलओ) सामाजिक सुरक्षाको उस सुरक्षाके रूपमें परिभाषित करता है, जो एक व्यक्तिको स्वास्थ्य देखभालतक पहुंच सुनिश्चित करने और आय सुरक्षाकी गारंटी देनेके लिए व्यक्तियों, परिवारोंको विशेष रूपसे बुढ़ापे, बेरोजगारी, बीमारी, नि:शक्त, कामकी चोट, मातृत्व या एक रोटी कमानेवालेकी हानिके समय, प्रदान करता है। भारतमें विभिन्न प्रकारके श्रमिकों या हमारी आबादीके विभिन्न वर्गोंको ऐसी सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करनेके लिए ६०० से अधिक सामाजिक सुरक्षा योजनाएं या कार्यक्रम हैं। लेकिन किसानों और कृषि श्रमिकोंको ऐसे लाभ प्रदान करनेके लिए बहुत कम योजनाएं हैं, विशेष रूपसे विकलांगता, रोजगारकी चोट, मृत्यु, स्वास्थ्य आदिसे संबंधित हितलाभ देनेवाले।
किसानों और कृषि श्रमिकोंको बीमारी, विकलांगता, रोजगारकी चोट और बेरोजगारीके समयमें सामाजिक सुरक्षा हितलाभोंकी बहुत आवश्यकता है। हालांकि खेतीके क्षेत्रमें नियोक्ता और कर्मचारीके बीचका अंतर बहुत कम है। कई बार किसान स्वयं नियोक्ता होता है और एक कृषि-कार्मिक भी होता है। यहांतक कि यदि मध्य-स्तरका किसान चार-पांच कृषि श्रमिकोंको कामपर लगाता है तो स्वयं या उसके परिवारके सदस्योंको अपने खेतोंमें अन्य कृषि श्रमिकोंके साथ काम करना पड़ता है। इसलिए किसानोंकी आवश्यकताओंके अनुरूप ईएसआई और ईपीएफ जैसी योजनाओंको शुरू करनेकी आवश्यकता है। ईएसआई अधिनियम और ईपीएफ अधिनियममें नियोक्ता और कर्मचारीके संबंधकी आवश्यकता होती है। लेकिन खेतीके क्षेत्रमें नियोक्ता और कर्मचारीका इतना स्पष्ट संबंध नहीं है। इसके अलावा ग्रामीण और कृषि श्रमिकोंके लिए कोई नियत रोजगारका आश्वासन नहीं है। ऐसे समयमें मनरेगा जैसी योजनाएं बचावमें आती हैं। मनरेगा ग्रामीण क्षेत्रोंमें प्रत्येक परिभाषित परिवारके कमसे कम एक सदस्यको सौ दिनका रोजगार, सुनिश्चित करता है। इस तरह इस मजदूरी सुरक्षा योजना द्वारा बेरोजगारीकी आकस्मिकताको थोड़ा सीमित किया गया है। वर्तमान महामारीकी स्थितिके दौरान चालू वित्त वर्षमें मनरेगाके तहत पूरे देशमें ७६८०० करोड़ रुपयेके भुगतान किये गये हैं, जिससे इस तरहके रोजगारमें २४३ फीसदीकी वृद्धि हुई है।
आम तौरपर सामाजिक सुरक्षा प्रणाली दुनियाभरमें नियोक्ताओं, कर्मचारियों और कुछ हदतक सरकारके योगदानसे वित्तपोषित होती है। भारतमें ईएसआई और ईपीएफ जैसी अधिकांश सफल योजनाएं नियोक्ताओं और कर्मचारियों द्वारा योगदानसे ही चलती हैं। जैसा कि व्यापक रूपसे माना जाता है कि भारतमें खेती क्षेत्रको बहुत सारी सब्सिडी दी जाती है। वर्तमानमें यह ऋणात्मक सब्सिडीमें है अर्थात्ï किसान भारतीय उपभोक्ताओंको खिलानेके लिए अपनी जेबसे भुगतान कर रहे हैं। यह एक ओईसीडी-आईसीआरआईईआर अध्ययनमें सामने आया, जिसे आधिकारिक तौरपर भारत सरकार द्वारा, एक आरोपका मुकाबला करनेके लिए कि यह बहुत अधिक सब्सिडी देता है, डब्ल्यूटीओमें इस्तेमाल किया गया था। यह एक मिथक है कि किसानोंको सब्सिडी दी जाती है। इसलिए यह हमारा कर्तव्य बनता है कि सरकार द्वारा पूरी तरहसे वित्तपोषित कृषि श्रमिकोंके लिए एक संपूर्ण सामाजिक सुरक्षा योजना होनी चाहिए।
भारतमें विभिन्न राज्योंमें कृषि क्षेत्रके लिए कुछ सामाजिक सुरक्षा योजनाएं हैं। गुजरात सरकारने आकस्मिक मृत्यु या स्थायी विकलांगताकी स्थितिमें पंजीकृत किसानोंको बीमा कवरेज प्रदान करनेके लिए २६ जनवरी, १९९६ से किसान दुर्घटना बीमा योजना लागू किया है। योजनाका मुख्य उद्देश्य पंजीकृत किसानके उत्तराधिकारीकी सहायता करना है, जिसमें पंजीकृत किसानके सभी बच्चों (पुत्र-पुत्री) और दुर्घटनाके कारण मृत्यु या विकलांगताके मामलेमें पंजीकृत किसानके पति-पत्नी शामिल हैं। महाराष्ट्र सरकार २४ नवंबर, २०१५ से एक योजना चला रही है, जिसका नाम पूर्व कैबिनेटमंत्री गोपीनाथ मुंडेके नामपर रखा गया है। यह योजना, राज्यके किसानोंके लिए है, जो आकस्मिक मृत्यु या जो दुर्घटनामें विकलांग हो गये हों। १०-७५ वर्षके आयु वर्गके किसान जिनके नाम ७/१२ भूमि अर्कपर पंजीकृत किये गये हैं, गोपीनाथ मुंडे योजनाका लाभ उठानेके लिए पात्र हैं। दुर्घटनाओंमें पशुओंके हमलों, नक्सली हमलों, हत्या, बिजलीके झटके आदिके कारण होनेवाली मृत्यु या विकलांगताको दो लाख रुपयेसे कवर किया गया है। आंशिक विकलांगताकी भरपाई एक लाख रुपयेसे की जाती है। केरल सरकारके पास भी कृषि श्रमिकोंके लिए एक सामाजिक सुरक्षा योजना है जो पेंशन और दुर्घटनासे संबंधित लाभ और बीमित व्यक्तिकी मृत्युके मामलेमें हितलाभ प्रदान करती है। इसी तरह उत्तर प्रदेश सरकार ऐसी किसान दुर्घटना बीमा योजनाएं चला रही है।
केंद्र सरकारने प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि खेतीहर किसानोंके लिए एक प्रत्यक्ष हस्तांतरण आय आश्वासन योजना लागू की है। इसके तहत ६००० रुपये प्रति वर्षकी राशि, किसानोंके बैंक खातोंमें सीधे दो हजार रुपयेकी तीन चौ-मासिक किस्तोंमें हस्तांतरित की जाती है। यह योजना, जो २४ फरवरी, २०१९ को शुरू की गयी थी। इसके अलावा सरकारने १२ सितम्बर, २०१९ को प्रधान मंत्री किसान मानधन योजना (पीएम केएमवाई) की शुरुआत की, जो कि वृद्धावस्थामें लघु और सीमांत किसानोंको पेंशनके रूपमें सामाजिक सुरक्षा प्रदान करनेकी दृष्टिसे है, जब उनके पास आजीविका और कामके साधन नहीं हैं या कोई बचत नहीं है। उनके खर्चोंकी देखभालके लिए। इस योजनाके तहत ६० वर्षकी आयु पूरी होनेपर, कुछ विशेष छूट मानदंडोंके अधीन, लघु और सीमांत किसानोंको ३०,००० रुपयेकी न्यूनतम निश्चित पेंशन प्रदान की जाती है। यह एक स्वैच्छिक और अंशदायी पेंशन योजना है, जिसकी प्रवेश पात्रता आयु १८ से ४० वर्ष है। किसानको प्रवेश आयुके आधारपर पेंशन फंडमें प्रति माह ५५ से २०० रुपयेका योगदान करना आवश्यक है। केंद्र सरकार भी पेंशन फंडमें समान राशिका योगदान करती है। पेंशन फंडका प्रबंधन एलआईसी द्वारा किया जा रहा है। संशोधित राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना, मौसम आधारित फसल बीमा योजना और राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना जैसे पूर्ववर्ती फसल बीमा योजनाओंको एकीकृत करके एवं बेहतर करते हुए, भारत सरकारने २०१६ मेंए प्रधान मंत्री बीमा योजना (पीएमएफबीआई) शुरू की। फरवरी २०२० में केंद्रीय मंत्रिमंडलने पीएमएफबीवाईको संशोधित करने की मंजूरी दी। यह योजना किसानोंके फसल बीमाके लिए है।
प्रधान मंत्री कृषि बीमा योजना, वन नेशन, वन स्कीम थीमके अनुरूप भारतमें कृषि बीमाके लिए सरकारकी प्रमुख योजना है। वार्षिक वाणिज्यिक-वार्षिक बागवानी फसलें, तिलहन और खाद्य फसलें (अनाज, बाजरा, और दलहन) इस योजनाके अंतर्गत आती हैं। प्रधान मंत्री फसल बीमा योजनाका उद्देश्य कृषि क्षेत्रमें उपजके सतत उत्पादनके लिए सहायता प्रदान करना है। अप्रत्याशित आपदाओंसे फसलोंको हुए नुकसानके कारण संकटमें पड़े किसानोंको वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। उद्देश्य है कि किसानोंकी आय स्थिर रहे और वह अपनी खेतीकी गतिविधियोंको जारी रख सकें। यह किसानोंको कुशल उपजवाली खेतीके लिए आधुनिक उपकरणों और कृषि प्रथाओंको उपयोग करनेके लिए बढ़ावा भी देता है। यह कृषि क्षेत्रमें ऋणका प्रवाह सुनिश्चित करता है, जो खाद्य सुरक्षा, फसल विविधीकरणमें योगदान देता है और उत्पादनके जोखिमसे किसानोंकी रक्षा करनेके अलावा कृषि क्षेत्रमें वृद्धि और प्रतिस्पर्धाको बढ़ाता है। कृषि क्षेत्रके सभी श्रमिकोंके साथ स्वयं किसानोंके लिए एक व्यापक सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम होगा। इस तरहके कार्यक्रममें आईएलओ द्वारा गणना की गयी सभी आकस्मिकताओंको शामिल किया जाना चाहिए, जो मृत्यु, विकलांगता, स्वास्थ्य और बेरोजगारी हैं। यह स्पष्ट रूपसे जिला मजिस्ट्रेट या कलेक्टरके कार्यालयसे अलग होना चाहिए। इसके लिए पूरा पैकेज प्रदान करना चाहिए जैसा कि ईएसआई योजना और भविष्य निधि योजना द्वारा औद्योगिक श्रमिकोंको प्रदान किया जाता है, ताकि कृषिकमें काम करनेवाले मजदूरोंके जीवनको असुरक्षित न होना पड़े। यह सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षाके बड़े लक्ष्यके लिए एक सही कारक होगा।