सम्पादकीय

जीवन-मरण


ओशो

जिंदगीमें कई बार हारका सामना करना पड़ता है। कुछ लोग हारसे टूट जाते हैं, कुछ फिरसे जुट जाते हैं और कुछ लोग हारको जीतकी ओर रखा एक कदम मानते हैं। परन्तु जब बात जीवन-मरणका हो तो उसे तो जीतना ही पड़ता है। दूसरा यह कि आपके सामने जबतक संकट खड़ा नहीं होगा तबतक आप जागृत भी नहीं हो सकते हैं। एक संन्यासीने सम्राट जनकको कहा कि मैं भरोसा नहीं कर सकता। क्योंकि हम तो झोपडीमें भी रहकर न हो सके। जनकने बिना उत्तर दिये दो सैनिकोंको आज्ञा दी- पकड़ लो इस संन्यासीको! संन्यासी बहुत घबड़ाया। उसने कहा, हद हो गयी! हम तो सोचते थे कि आप महा करुणावान और ज्ञानी हैं तो आप भी साधारण सम्राट ही निकले। परन्तु जनकने उनकी कुछ बात सुनी नहीं और कहा कि आज रात नगरमें संगीत होगा, रातभर जलसा रहेगा। तुम्हें एक काम करना है। यह दो सैनिक तुम्हारे दोनों तरफ तलवार लिये चलेंगे और तुम्हारे हाथमें एक पात्र होगा, तेलसे भरा, लबालब भरा। उसे सम्हाल कर तुम्हें सात चक्कर लगाने हैं और यदि एक बूंद भी तेलकी गिरी, यह तलवारें तुम्हारी गर्दनपर उसी वक्त उतर जायंगी। संन्यासी फंस गया, परन्तु चलो यह आदमी कमसे कम मौका दे रहा है एक सात दफे चक्कर लगानेका तो एक अवसर तो है कि शायद कोशिश कर लें। बड़ा मधुर संगीत था। बड़ा प्रगाढ़ आकर्षण था। लोग मंत्रमुग्ध बैठे थे। ऐसा सन्नाटा था, जैसा मंदिरोंमें होना चाहिए। अब तुम सोच ले सकते हो, गृहस्थ होता तो भी चल लेता। संन्यासी! जैसे भूखेके मनमें भोजनका आकर्षण होता है, भरे पेटके मनमें क्या आकर्षण होता है। आज जीवनमें पहला मौका मिला था जब देख लेता एक झलक और कोई अड़चन न थी, बिलकुल किनारेपर ही सब घटना घट रही थी। आवाज सुनाई पडऩे लगी कि उसने अपने आभूषण फेंक दिये हैं। सैनिक बात करने लगे, अरे, उसने कपड़े भी फेंक दिये! उसने सात चक्कर पूरे कर लिये, एक बूंद तेल न गिरी। सम्राटने उसे बुलाया, समझे। जिसके पास कुछ सम्भालनेको हो, सारी दुनिया चारों तरफ नाचती रहे, कोई अंतर नहीं पड़ता। तुझे अपना जीवन बचाना था। यह सैनिक बड़ी रसभरी चर्चा कर रहे थे। यह मेरे इशारे थे कि तुम रसभरी चर्चा करना, लुभाना और दोनों तरफसे बोल रहे थे और इन दोनोंके बीच तू फंसा था, फिर भी तूने ध्यान न छोड़ा, तूने ध्यान अपने पात्रपर रखा। भरा पात्र था, कुशलसे कुशल व्यक्ति भी मुश्किलमें पड़ जाता। बड़े सात लंबे चक्कर थे। एक बूंद तेल गिर जाती, गर्दन तेरी उतर जाती। जीवन तुझे बचाना था। जनकने कहा, इसी तरह कुछ मेरे पास है जिसे मुझे बचाना है और जब तुम्हारे पास कुछ बचानेको होता है तो वही तुम्हें बचाता है।