सम्पादकीय

सुनहरे भविष्यको अंधकारमय बनाता बालश्रम


डा. प्रितम भि. गेडाम

कोरोना महामारीने सम्पूर्ण विश्वको झकझोर कर रख दिया है, विश्वकी दूसरी सबसे ज्यादा आबादीवाले भारत जैसे विकासशील देशमें कोरोनाने देशकी अर्थव्यवस्था खराब कर दी। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि इस कोरोना महामारीने देशमें ३० हजारसे ज्यादा बच्चोंको अनाथ कर दिया है। सबसे ज्यादा नुकसान निम्न मध्यम वर्गके गरीब परिवारको हुआ और देशमें सबसे बड़ा वर्ग इन्हीं लोगोंका है, जो बड़ी मुश्किलसे दो वक्तकी रोजी-रोटी कमाकर तंग हालमें परिवारका भरण-पोषण करते हैं। कोरोना महामारीने काम-धंधे बंद करवा दिये और दूसरी ओर महंगी आसमानपर है ऐसेमें गरीबोंका जीवन जीना दूभर हो गया। कोरोनाके बाद स्थिति सामान्य होनेपर आर्थिक रूपसे पूरी तरह टूट चुके ऐसे गरीब परिवार अपने बच्चोंको आधारभूत शिक्षा देनेमें किस हदतक सक्षम होंगे यह कहना मुश्किल हैं, कुछ गरीब परिवार अब अपने बच्चोंको स्कूल भेजनेका खर्च शायद न उठा पायंगे। गरीबी, बेरोजगारी, तंगहाली, भुखमरी ही बाल श्रमिकोंकी संख्यामें इजाफा करनेकी मुख्य वजह होगी। नतीजतन अधिकतम बच्चोंको शोषणकारी और खतरनाक नौकरियोंमें काम करनेके लिए मजबूर किया जा सकता है। लैंगिक असमानताएं और अधिक तीव्र हो सकती हैं, लड़कियोंके शोषण, विशेषकर कृषि और घरेलू कार्योंमें। यह परिस्थिति और भी अन्य सामाजिक समस्याओं एवं अपराधको जन्म दे सकती है। बाल श्रम बच्चोंको मानसिक, शारीरिक, सामाजिक और नैतिक रूपसे नुकसान पहुंचाता है, यह उनकी स्कूली शिक्षामें हस्तक्षेप करता है, गुलाम बनना, परिवारोंसे अलग होना, गंभीर खतरों और बीमारियोंके संपर्कमें आना, साथ ही असहनीय दुव्र्यवहार शामिल है, जैसे कि बाल दासता, बाल तस्करी, ऋण बंधन, जबरन श्रम या अवैध गतिविधियां। बच्चोंसे मासूम बचपन छीनकर जिम्मेदारियोंका बोझ डालकर उनका सुनहरा भविष्य अंधकारमय किया जाता है। हालमें तमिलनाडु और पुडुचेरीके २४ जिलोंमें बाल श्रमके खिलाफ अभियान कोविड-१९ रिवर्सिंग द सिचुएशन ऑफ चाइल्ड लेबर शीर्षकसे रैपिड सर्वेके अध्ययनसे पता चला है कि मुख्य रूपसे कोरोना महामारी और स्कूलोंके बंद होनेके कारण, इस सर्वेक्षणमें शामिल ८१८ बच्चोंमेंसे कामकाजी बच्चोंके अनुपातमें २८.२ प्रतिशतसे ७९.६ प्रतिशतकी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और कमजोर समुदायोंमें बाल श्रम बढ़कर लगभग २८० प्रतिशत हो गया है। सर्वेक्षणके अनुसार ९४ प्रतिशतसे अधिक बच्चोंने कहा है कि घरपर आर्थिक संकट और परिवारके दबावने उन्हें काममें धकेल दिया है, उनके अधिकांश माता-पिताने अपनी नौकरी खो दी थी या महामारीके दौरान बहुत कम मजदूरी अर्जित की थी।

विश्व बैंकके अनुसार, भारतमें महामारीसे नौकरी छूटनेके कारण करोड़ों लोगोंके गरीबी रेखासे नीचे खिसकनेकी संभावना है। गरीबीका संबंध बाल श्रमसे है, पिछले शोधने संकेत दिया है कि गरीबीमें एक प्रतिशतकी वृद्धिसे बाल श्रममें लगभग ०.७ प्रतिशतकी वृद्धि होती है। अनिश्चित कालके लिए स्कूल बंद हैं, बिजली, कंप्युटर, स्मार्टफोन, इंटरनेट और प्रौद्योगिकीतक पहुंचकी कमीवाले बच्चे, विशेष रूपसे गरीब और ग्रामीण समुदायोंके बच्चे, स्कूल बंद होनेके दौरान ऑनलाइन शिक्षामें भाग लेनेमें असमर्थ साबित हो रहे हैं। रिपोर्टके अनुसार कई बच्चे स्कूल जानेके बजाय संकटके समयमें अपने परिवारका समर्थन करनेके लिए काम कर पैसा कमाना पसंद कर सकते हैं। वर्तमानमें १५२ मिलियन बच्चे बाल श्रममें लगे हुए हैं और उनमेंसे ७३ मिलियन बच्चे खनन या निर्माण जैसे खतरनाक क्षेत्रोंमें काम कर रहे हैं। कोरोना महामारीने न केवल स्थितिको काफी खराब कर दिया है, बल्कि यह बाल श्रमके खिलाफ लड़ाईमें वर्षोंकी उपलब्धियोंको चुनौती भी दे रहा है। बाल श्रममें ७० प्रतिशत बच्चे मुख्य रूपसे निर्वाह हेतु व्यावसायिक खेती और पशुपालनमें कृषिमें काम करते हैं। बाल श्रममें एक-तिहाई बच्चे शिक्षा व्यवस्थासे पूरी तरह बाहर हैं और इसमें भाग लेनेवाले भी खराब प्रदर्शन करते हैं। भारतने बाल अधिकारोंपर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलनकी पुष्टि की है, २०११ की जनगणनाके आंकड़ोंसे पता चलता है कि भारतमें अब भी १.१ करोड़ बाल मजदूर हैं। जिसमें ५६ लाख लड़के और ४५ लाख लड़कियां हैं। दुनियाके दस बच्चोंमेंसे लगभग एक बच्चा भारतसे है। उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश ऐसे राज्य हैं जो सबसे अधिक बाल श्रममें लगे हुए हैं। कृषिके अलावा सेव द चिल्ड्रन फाउंडेशनके सर्वेक्षणोंमें पाया गया है कि बाल श्रम व्यापक रूपसे कपड़ा उद्योग, ईंट भट्टों, तंबाकू और पटाखा उद्योगमें कार्यरत है। इनमेंसे प्रत्येक उद्योग खतरनाक जोखिमोंके साथ आता है और उनके स्वास्थ्यपर दीर्घकालिक प्रभाव डालता है। जनगणनाके आंकड़ोंके विश्लेषणसे पता चला है कि भारतमें ७-१४ वर्षकी आयुके लगभग १४ लाख बाल मजदूर पंजीकरण नहीं करा सकते हैं। इसका अर्थ है कि उक्त आयु वर्गके तीनमेंसे एक बाल श्रमिक निरक्षर है। इसी तरह देशमें बड़ी संख्यामें बच्चे कुपोषण और अधिकारोंके हननके शिकार हैं। अकेले भारतमें ही हर साल दस लाखसे ज्यादा बच्चे कुपोषणसे मर जाते हैं। भारतका बाल श्रम संशोधन (निषेध और विनियमन) अधिनियम, २०१६, १४ वर्षसे कम उम्रके किसी भी बच्चेको किसी भी प्रकारके काममें नियोजित करनेसे रोकता है। यहांतक कि १४-१८ वर्षकी आयुके किशोरोंको भी खतरनाक काम करनेकी अनुमति नहीं है। भारतीय संविधानके अनुसार ६ से १४ आयुके सभी बच्चोंके लिए नि:शुल्क प्रारंभिक शिक्षा अनिवार्य है जिसका उल्लेख संविधानके ८६वें संशोधन, २००२ के तहत भारतके संविधानके अनुच्छेद २१ में किया गया है।

श्रम एवं रोजगार मंत्रालय, भारत सरकारके श्रम अनुभागके तहत कोई भी व्यक्ति पेंसिल पोर्टल वेबसाइटपर बाल श्रमके संबंधमें ऑनलाइन शिकायत दर्ज करा सकता है। कुछ आवश्यक जानकारी भरकर जैसे, बाल श्रमिक बच्चेका विवरण राज्य और जिलेमें जहां बच्चेको रोजगार दिया जा रहा है और शिकायतकर्ताका विवरण यानी नाम, मोबाइल नंबर और ईमेल आईडी आदि। इस कोरोना महामारीमें भी आर्थिक रूपसे कमजोर परिवारोंके बच्चे चाय-नाश्ता, मास्क, सब्जियां, फल बेचने जैसे छोटे व्यवसायोंमें काम करते हुए हम अपने आस-पास आसानीसे देख सकते हैं। कोरोनाके बादकी स्थिति और बाल श्रमके खतरेसे निबटनेके लिए अभीसे नये उपायोंपर काम करना अत्यावश्यक है। जैसे, सामाजिक सुरक्षा, गरीब परिवारोंके लिए ऋणकी आसान पहुंच, वयस्कोंके लिए अच्छे कामको बढ़ावा, ग्रामीण क्षेत्रोंमें उद्योगको सुदृढ़ बनाना, रोजगारके नये रास्ते खोलना, शिक्षामें नयी नीति, बच्चोंको स्कूल वापस लानेके नये उपाय योजनाओंपर अमल करना, श्रम निरीक्षण, कानून प्रवर्तनके लिए अधिक संसाधन जैसी बातोंपर रणनीति तैयार करना शामिल हो। बच्चे देशका उज्ज्वल भविष्य हैं, उन्हें उनका अधिकार मिलना ही चाहिए।