पी.के. खुराना
सन् १९९१ में पीवी नरसिंह रावके प्रधान मंत्रित्व कालमें उदारवादकी शुरुआत की। उससे देशकी अर्थव्यवस्थामें कई बड़े परिवर्तन आये। कांग्रेसने पहली बार इंदिरा गांधीके समाजवादी गणराज्यकी परिकल्पनासे परे सोचा और वैश्विक कंपनियोंको भारतमें विदेशी निवेश आमंत्रित किया।
भविष्यमें तकनीक सिर्फ सपोर्ट सिस्टम न रहकर उद्योगोंकी दिशा निर्धारित करेगी। इसीसे भारतीय अर्थव्यवस्थाकी खासियतें बरकरार रह सकेंगी। इन्हीं खासियतोंके कारण हम २००८ में बचे थे और अब भी अपनी इन्हीं खासियतोंके सहारे उस गर्तमें जानेसे बच सकेंगे जिसमें अमेरिका जाता दिख रहा है। हमें याद रखना होगा कि तकनीक सिर्फ एक औजार है और इस औजारके सही उपयोगका निर्णय हमारे ही हाथमें है। तकनीकने फिलहाल जो समीकरण बदले हैं, उन्हें हम अपने फायदेमें प्रयोग करना सीख लें तो हमारी अर्थव्यवस्था और भी मजबूत होगी।
सन् १९९१ में कांग्रेसने पहली बार इंदिरा गांधीके समाजवादी गणराज्यकी परिकल्पनासे परे विश्व बैंक तथा विश्व मुद्रा कोष जैसी वैश्विक आर्थिक संस्थाओंके निर्देशन तथा दबावमें विदेशी कंपनियोंको भारतमें व्यापार करनेकी सुविधा बढ़ायी और बहुराष्ट्रीय कंपनियोंको और भी कई सुविधाएं दीं। अर्थव्यवस्थाके मामलेमें हम भारतीय वस्तुत: खुले बाजारकी पश्चिमी अवधारणासे प्रभावित हैं और लगभग हर भारतीय यह मानता है कि भारतवर्ष यदि कभी सुपर पॉवर बना तो वह इसी राहपर चलकर ही महाशक्ति बन सकता है। एक सीमातक यह सही भी है, परन्तु यह पूरा सच नहीं है। नयी तकनीक, रोजगारके नये द्वार खोल रही है। ओला और उबर जैसी टैक्सी कंपनियों तथा काल सेंटरों, बीपीओ, केपीओ आदिने बेरोजगार युवकोंकी एक बड़ी फौजको न केवल रोजगार दिया है, बल्कि उनकी आयका स्तर भी बढ़ाया है। समस्या यह है कि यदि हम बदलते समयके मुताबिक खुदको न ढालें तो नयी तकनीक रोजगार छीननेमें भी देर नहीं लगाती। बढ़ती आटोमेशनके कारण बहुतसे लोग बेरोजगार हो रहे हैं क्योंकि मशीनें आदमियोंसे बेहतर काम करती हैं, तेजीसे काम करती हैं और तनख्वाह या बोनस नहीं मांगतीं, दूसरोंका ध्यान नहीं बंटाती, कामचोरी नहीं करतीं और हड़ताल भी नहीं करतीं।
डिजिटल कैमरेके आविष्कारने विश्वकी सबसे बड़ी फोटो पेपर कंपनी कोडकको दीवालिया बना दिया। यह तो मात्र एक उदाहरण है, ऐसे उदाहरणोंकी लंबी सूची बन सकती है। आनेवाले पांच-दस वर्षोंमे पारम्परिक उद्योगोंको सबसे अधिक साफ्टवेयर प्रभावित करेगा। विश्वके सबसे बुद्धिमान ज्ञानियों, प्रोफेशनलों, विशेषज्ञोंको कम्प्यूटरने उम्मीदसे दस वर्ष पहले ही धराशायी कर दिया है। अमेरिकामें नये वकीलोंको काम नहीं मिल रहा है क्योंकि आईबीएम वाट्सन द्वारा आपको अच्छीसे अच्छी कानूनी सलाह सेकंडोंमें, वह भी ९० प्रतिशत सटीक मिल जाती है। परिणाम यह हुआ है कि धीरे-धीरे सिर्फ धुरंधर वकीलोंकी आवश्यकता रह गयी है और चुनिंदा विशेषज्ञोंको ही काम मिल रहा है। अगले दो-तीन वर्षोंमें लोगोंके उपयोगके लिए स्वचलित कार आयगी, इससे पारम्परिक कार उद्योगका विघटन प्रारंभ हो जायगा। आपको कार खरीदनेकी जरूरत ही नहीं होगी। आप फोनपर कार बुलायंगे, कार आपके सामने होगी, आपको गंतव्यतक पहुंचा देगी। आपको उसे पार्क करनेकी जहमत नहीं उठानी है, आप तो बस जितने किलोमीटर चलकर आये हैं, उसका भुगतान कर दीजिए। कारोंके मामलेमें यह बहुत उपयोगी होगा। हमारे बच्चोंको ड्राइविंग लाइसेंसकी जरूरत ही नहीं होगी, वह कभी कार खरीदनेवाले ही नहीं हैं। इससे शहरोंमें बदलाव दिखेगा, क्योंकि हमें ९० से ९५ प्रतिशत कम कारोंकी जरूरत रह जायगी। हम कार पार्किंगवाले स्थानोंपर पार्क विकसित कर सकेंगे। विश्वमें प्रतिवर्ष बीस लाखसे भी अधिक लोग सड़क दुर्घटनाके शिकार होते हैं। स्वचलित कारोंसे यह संख्या बहुत कम हो जायगी।
परिणामस्वरूप दुर्घटनाओंके बिना बीमा भी सस्ता हो जायगा, कार बीमा जैसे घटक तो गायब ही हो सकते हैं। एक और सच यह है कि अमेरिकामें चुनाव हुए तो दोनों ही प्रमुख उम्मीदवार देशकी अर्थव्यवस्थाको लेकर चुप रहे। वहां एचएसबीसीए बैंक आफ अमेरिका तथा गोल्डमैन सैक आदि बड़े बैंकोंने चेतावनी दी थी कि देशको एक और मंदीसे गुजरना पड़ सकता है क्योंकि गाल फुला-फुलाकर किये गये अर्थव्यवस्थामें सुधारके दावे पूरे नहीं हो पाये हैं। सारी दौलत कुछ ही परिवारोंके हाथमें इक_ी हो गयी है। अमेरिकामें भोज्य सामग्रीके निर्माणका अधिकांश काम सिर्फ चार बड़ी कंपनियोंतक सीमित हो गया है। स्वास्थ्य, रक्षा, बैंकिंग सभी क्षेत्रोंका हाल ऐसा ही है जहां कुछ परिवारोंकी मोनोपली चलती है। सभी क्षेत्रोंके व्यवसाय कुछ बड़े परिवारोंके हाथोंमें सीमित हो गये हैं। आम जनताके पास खर्च करनेके लिए धन नहीं बचा है, परिणाम यह है कि ज्यादातर बिक्री सिर्फ तब होती है जब सेल लगी हो और चीजोंपर डिस्काउंट चल रहा हो।
सन् २००८ की मंदीके बाद दौलत कुछ हाथोंमें इक_ी हो गयी, लेकिन उसका कहीं उपयुक्त निवेश न होनेके कारण ब्याजकी दरें घटीं तो आर्थिक संस्थाओंने कर्ज देनेमें कंजूसी शुरू कर दी। सरकारके पास इस स्थितिसे निबटनेके लिए कोई कारगर योजना नहीं है। लोग या तो बेरोजगार हैं या उन्हें उनकी काबिलियतसे कम वेतनपर काम करनेके लिए विवश होना पड़ रहा है। बेरोजगारीने लोगोंको हताश किया है और वे नशेके आदी होते जा रहे हैं। अमेरिकाके बहुतसे मॉल दीवालिया होनेकी कगारपर हैं। यह विश्वके सबसे शक्तिशाली और विकसित देशकी अर्थव्यवस्थाका हाल है। हम भारतीय आज अमेरिकी अर्थव्यवस्थाकी नकलमें लगे हैं। यहां भी अंबानी, अडानी और कुछ धनी परिवारोंने सारे व्यवसायपर कब्जा कर लिया है और यह क्रम लगातार जारी है। छोटे दुकानदारोंके सामने कई चुनौतियां हैं। निवेशकोंका धन उड़ानेवाली ऑनलाइन कंपनियां आम व्यापारीके लिए परेशानियां खड़ी कर रही हैं। अभी हम अमेरिकाकी चरम स्थितितक नहीं पहुंचे हैं। कुछ सालतक ग्राहक खुश होते रहेंगे क्योंकि उन्हें सामान सस्ता मिल रहा है, सुविधापूर्वक मिल रहा है, लेकिन धीरे-धीरे हाल यह हो जायगा कि आम आदमीके पास खरीददारीके लिए धन ही नहीं बचेगा।
गरीब-गुरबा और निम्न मध्यवर्गकी हालत और खराब हो जायगी। उच्च मध्यवर्ग अपने दिखावेपूर्ण जीवनस्तरके कारण सदैव परेशान रहेगा। उसका धन उपयोगी कामोंमें लगनेके बजाय दिखावेके कामोंपर ज्यादा खर्च होगा। समस्या यह है कि यह कोरी कल्पना नहीं है। यह एक भयानक सचाई है जो अगले कुछ वर्षोंमें हमारे सामने होगी। इस समस्यासे बचनेका एक ही तरीका है कि हम कुटीर उद्योगोंपर फिरसे ध्यान दें, उन्हें तकनीकका लाभ लेना सिखायें। दस्तकारोंको प्रोत्साहित करें, उनका सामान खरीदें और उसके निर्यातके लिए अधिकसे अधिक बाजार ढूंढ़े। यह सच है कि भविष्यमें तकनीक सिर्फ एक सपोर्ट-सिस्टम न रहकर उद्योगोंकी दिशा निर्धारित करेगी। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि कुटीर उद्योगोंकी विशेषताएं बरकरार रखते हुए उन्हें तकनीकका सहयोग देनेकी व्यवस्था करें। इसीसे भारतीय अर्थव्यवस्थाकी खासियतें बरकरार रह सकेंगी। इन्हीं खासियतोंके कारण हम २००८ में बचे थे और अब भी अपनी इन्हीं खासियतोंके सहारे उस गर्तमें जानेसे बच सकेंगे जिसमें अमेरिका जाता दिख रहा है। हमें याद रखना होगा कि तकनीक सिर्फ एक औजार है और इस औजारके सही उपयोगका निर्णय हमारे ही हाथमें है। तकनीकने फिलहाल जो समीकरण बदले हैं, उन्हें हम अपने फायदेमें प्रयोग करना सीख लें तो हमारी अर्थव्यवस्था और भी मजबूत होगी तथा बेरोजगारी भी नहीं बढ़ेगी।