सम्पादकीय

सेना वापसीमें तेजी


भारतके साथ सहमति बननेके बाद पूर्वी लद्दाखमें पैंगोंग झीलके निकटवर्ती क्षेत्रोंसे सेनाओंको हटानेके साथ ही झीलके दक्षिणी दिशामें रेजांग ला और रेचिन ला से भी चीनी सैनिकोंने पीछे हटनेकी प्रक्रिया शुरू कर दी है। इस इलाकेकी ऊंची पहाडिय़ोंमें भारतीय सेना रणनीतिक रूपसे बढ़त बनाये हुई थी। रेजांग ला और रेचिन ला से सेनाओंको हटानेका मामला भी दोनों देशोंके बीच हुए समझौतेका हिस्सा था। सेनाके सूत्रोंका कहना है कि झीलके अग्रिम स्थानोंसे सेनाओंके हटनेके बाद अब दूसरे क्षेत्रोंसे सेनाएं पीछे हट रही हैं। सेनाओंकी वापसीमें तेजी राहतकारी खबर है। यदि इसी गतिसे वापसी जारी रही तो दो-तीन दिनोंके अन्दर ही यह वापसी पूरी हो जायगी। इसके बाद ही भारत और चीनके वरिष्ठï सैन्य कमाण्डरोंके बीच दसवें दौरकी वार्ता होगी, जिसमें गश्त और टकराववाले अन्य स्थानोंपर विस्तारसे बातचीत होगी। इसका मुख्य उद्देश्य इन क्षेत्रोंमें भी सामान्य स्थितिको बहाल करना है। चीनके रक्षा मंत्रालयके प्रवक्ता और वरिष्ठï कर्नल वु कियानका कहना है कि सैनिकोंकी पूर्ण वापसीके लिए दोनों देश आपसी सहमतिका पूरा ध्यान रखेंगे। लगभग नौ माहके लम्बे गतिरोधके बाद दोनों देशोंकी सेनाओंने १० फरवरीसे पीछे हटनेकी प्रक्रिया शुरू कर दी थी। इस सम्बन्धमें रक्षामंत्री राजनाथ सिंहने संसदमें पूरी स्थितिको स्पष्टï किया था और देशको भी आश्वस्त किया था कि भारतकी भूमि सुरक्षित रहेगी। उन्होंने यह भी कहा था कि हम अपनी एक इंच जमीन भी नहीं देंगे। वस्तुत: चीनके चरित्रको देखते हुए उसपर भरोसा करना बहुत ही जोखिम और दुष्कर कार्य है। इसलिए भारतको पूरी सतर्कता बरतनेकी जरूरत है। १९६२ के युद्धके बाद पिछले ५९ वर्षोंके दौरान यह पहला अवसर था जब भारतने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर इतनी मजबूतीसे अपने पराक्रमका प्रदर्शन किया जिससे चीनके हौसले पस्त हो गये। इसके बावजूद रक्षामंत्रीने स्वयं संसदमें बताया कि लद्दाखके अन्दर ३८ हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्रपर चीनका अनधिकृत नियंत्रण है। इसके अतिरिक्त सामरिक दृष्टिïसे अत्यन्त महत्वपूर्ण देपसांगको भी चीनी सैन्य नियंत्रणसे मुक्त करानेकी जरूरत है। देपसांगपर भारतका कब्जा जरूरी है इसलिए इसे भी सैन्य कमाण्डर स्तरकी वार्ताका एक आवश्यक मुद्दा बनाया जाना चाहिए तभी पैंगोंग विवाद सुलझानेका वास्तविक अर्थ सामने आयगा।

मैत्रीको महत्व

श्रीलंकाने भारतकी मैत्रीको महत्व देते हुए पाकिस्तानके प्रधान मंत्री इमरान खानको बड़ा झटका दिया है। यह इमरान खानके लिए जहां सबक है वहीं भारतकी बड़ी कूटनीतिक उपलब्धि है। इमरान खान दो दिनकी राजकीय यात्रापर २२ फरवरीको श्रीलंका जा रहे हैं। इस दौरान वे श्रीलंकाई संसदको सम्बोधित करनेवाले थे, लेकिन श्रीलंका सरकारने उनके संसद सम्बोधन कार्यक्रमको रद कर उनके भारतको घेरनेके मंसूबेपर वज्रपात कर दिया है। कोरोना कालमें भारतने जिस तरह विश्वके अनेक देशोंकी मदद कर मानवताकी सेवा की है, उससे विश्वमें भारतकी साख बढ़ी है और कोई भी देश इसे नाराज नहीं करना चाहता है। यह तो सभी जानते हैं कि इमरान खान सिर्फ एक ही राग अलापते हैं, भले ही उन्हें हर जगह मुंहकी खानी पड़ती है लेकिन वह कश्मीरका नाम लेनेसे बाज नहीं आते हैं। कोरोना महामारी तो एक बहाना है। श्रीलंका सरकारको आशंका थी कि आदतके मुताबिक इमरान खान अपने सम्बोधनमें कश्मीरका जिक्र कर सकते हैं जिससे भारतके साथ उसके रिश्ते बिगड़ सकते हैं। श्रीलंका और भारतके बीच ऐतिहासिक सम्बन्ध है। महामारीके दौरमें भारतने पहले उसे दवाएं दीं और बादमें कोरोना वैक्सीनकी पांच लाख डोज भेजी। ऐसेमें श्रीलंकाके राष्टï्रपति गोटबाया राजपक्षे और प्रधान मंत्री महिन्द्रा राजपक्षे भारतसे रिश्ते खराब नहीं करना चाहते। हालांकि इमरान खानकी श्रीलंका यात्रा निर्धारित कार्यक्रमके अनुसार होगी लेकिन प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीके नक्शे-कदमपर चलनेकी उसकी चाहत अधूरी रह गयी। श्रीलंकाई संसदको सम्बोधित करनेवाले आखिरी नेता राष्टï्राध्यक्ष नरेन्द्र मोदी थे, जिन्होंने २०१५ में श्रीलंकाई संसदको सम्बोधित किया था। श्रीलंकाके इस कदमको भारतके साथ अच्छे सम्बन्ध बनाये रखनेके तौरपर देखा जा रहा है, क्योंकि श्रीलंकाकी सरकारने पिछले दिनों ट्रेड यूनियन और विपक्षके दबावमें एक पोर्ट प्रोजेक्टको रद कर दिया था जिसे भारत-जापान और श्रीलंका मिलकर बनानेवाले थे। इसको लेकर सम्बन्धोंमें आयी खटासको श्रीलंकाने दूर करनेका प्रयास किया है।