Latest News अन्तर्राष्ट्रीय

तिब्बती बच्चों को माता-पिता से जबरन अलग नहीं किया जा रहा, गलत हैं UN के दावे: चीन


ल्हासा, । संयुक्त राष्ट्र के विशेष रिपोर्टर ने दावा किया था कि चीन ने 10 लाख तिब्बती बच्चों को उनके परिवारों से अलग कर दिया है। उन्हें धार्मिक, सांस्कृतिक और भाषाई रूप से प्रमुख हान चीनी संस्कृति में आत्मसात करने के अपने प्रयास के तहत जबरन बोर्डिंग स्कूलों में रखा गया है। मगर, चीन ने इस दावे को खारिज कर दिया है। बताते चलें कि हान चीनी या हान लोग चीन के मूल निवासी हैं, जो एक पूर्व एशियाई जातीय समूह हैं।

क्या बोला चीन?

चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग ने पिछले हफ्ते एक प्रेस वार्ता के दौरान कहा, “यह निश्चित रूप से सच नहीं है। यह स्पष्ट रूप से चीन के बारे में जनता को गुमराह करने और चीन की छवि खराब करने के लिए लगाया गया एक और आरोप है।”

छात्रों की जरूरतों को पूरा करते हैं बोर्डिंग स्कूल- माओ निंग

माओ निंग ने आगे कहा, “जैसा कि आमतौर पर दुनिया भर में देखा जाता है, यहां भी बोर्डिंग स्कूल हैं। इन्हें स्थानीय छात्रों की जरूरतों को पूरा करने के लिए चीनी प्रांतों और क्षेत्रों में खोला गया है। ये स्कूल आवास, खान-पान और अन्य बोर्डिंग सेवाएं प्रदान करते हैं। यहां कठोर सैन्य अनुशासन नहीं है। इसकी जगह, मॉडरेट सैन्य अनुशासन लागू है, ताकि बच्चों का सर्वांगीण विकास हो।”

उइगर के मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर घिरा है चीन

तिब्बती पहचान को हान संस्कृति में जबरन आत्मसात कराने के कथित कदम के लिए चीन पर जुबानी हमला बोला गया है। वीएए के अनुसार, यह मामला ऐसे समय में आया है, जब उइगरों के मानवाधिकारों के उल्लंघन पर सच्चाई को नकारने में चीन कठिन समय का सामना कर रहा है। बताते चलें कि उइगर, शिनजियांग के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में रहने वाले मुस्लिम जातीय समूह हैं।

हान संस्कृति में बच्चों का ब्रेनवाश किया जा रहा

6 फरवरी को जेनेवा में जारी संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के एक बयान में यह खुलासा हुआ कि चीनी सरकार बोर्डिंग स्कूलों की एक श्रृंखला चला रही है। वहां लगभग दस लाख तिब्बती बच्चों की तिब्बती सांस्कृतिक पहचान को जबरन मिटाने और चीनी हान संस्कृति में उनका ब्रेनवाश करने के लिए रखा गया है।

चीन ने दी यह सफाई

इसकी प्रतिक्रिया में चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, “चीन के तिब्बत के मामले में यह उच्च ऊंचाई वाला क्षेत्र है और कई क्षेत्रों में अत्यधिक बिखरी हुई आबादी है। चरवाहे परिवारों के बच्चों को स्कूल जाने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। यदि छात्रों के रहने वाले हर स्थान पर विद्यालय बनाए जाएं, तो हर स्कूल में पर्याप्त शिक्षक और शिक्षण की गुणवत्ता सुनिश्चित करना बहुत कठिन होगा।”