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दक्षिण में बढ़ते विरोध के दबाव में गरीबों के आरक्षण कोटे पर रूख बदलने को तैयार कांग्रेस


 नई दिल्ली। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्लूएस) को 10 फीसद आरक्षण देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन करने के बाद कांग्रेस अब इसकी समीक्षा करते हुए अपने रुख पर पुनर्विचार कर रही है। दक्षिण भारतीय राज्यों में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ बढ़ते राजनीतिक विरोध के बाद कांग्रेस में यह बदलाव आया है। कांग्रेस के संचार महासचिव जयराम रमेश का यह बयान इसका संकेत है जिसमें उन्होंने कहा है कि बेशक पार्टी सभी वर्गों के गरीबों को 10 फीसद आरक्षण के पक्ष में है, मगर सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों ने अपने फैसले में अलग-अलग अनेक मुद्दे उठाए हैं जिनका पार्टी विस्तार से अध्ययन कर रही है।

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रुख बदलने के लिए पार्टी ने शुरू की समीक्षा

वहीं संकेत यह भी है कि राजनीतिक समीक्षा के बाद गरीबों के आरक्षण कोटे पर अपने रुख में तब्दीली के लिए कांग्रेस कानूनी विकल्प के तौर पर पुनर्विचार याचिका का सहारा लेने पर भी गौर कर रही है। हालांकि पार्टी ने संसद में इस विधेयक का समर्थन किया था। पार्टी के जानकार सूत्रों के अनुसार कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने दक्षिणी राज्यों में बढ़े विवाद के मद्देनजर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से चर्चा शुरू कर दी है। पार्टी के दो वरिष्ठ नेताओं और वकील पी चिदंबरम और अभिषेक मनु सिंघवी से सुप्रीम कोर्ट के फैसले से जुड़े कानूनी जटिलताओं पर खरगे ने शुक्रवार को लंबी चर्चा की। इन दोनों नेताओं को पार्टी के कानूनी विकल्प की राह सुझाने का जिम्मा सौंपा गया है।

 

पुनर्विचार याचिका के विकल्प का सहारा ले सकती है पार्टी

गरीबों के आरक्षण से जुड़े निर्णय के राजनीतिक और कानूनी पहलुओं का आकलन करने के बाद कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर पुनर्विचार याचिका दायर करने के विकल्प पर अंतिम फैसला लेगी। पुनर्विचार याचिका के विकल्प से इन्कार नहीं करने का साफ संकेत देते हुए पार्टी के जानकार सूत्रों ने साफ कहा कि कांग्रेस के लिए दक्षिण के राज्य भी सियासी रूप से अहम हैं और हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले की राजनीतिक समीक्षा कर रहे हैं और इसके कानूनी परिणाम सामने आ सकते हैं।

पार्टी के कई नेताओं ने उठाई आवाज

तमिलनाडु से लेकर केरल तक ईडब्लूएस के 10 प्रतिशत आरक्षण कोटे में एससी-एसटी और ओबीसी को शामिल नहीं किए जाने के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के खिलाफ शुरू हुए राजनीतिक विरोध में कांग्रेस के गठबंधन के साथी द्रमुक नेता तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन जहां सबसे मुखर हैं। वहीं सूबे से पार्टी सांसद कार्ति चिदंबरम और ज्योति मणि आदि ने भी इसके खिलाफ सवाल उठाए हैं। वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने तो अपनी प्रतिक्रिया में इसके खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर किए जाने की उम्मीद जताई थी।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के तुरंत बाद कांग्रेस ने किया था स्‍वागत

इतना ही नहीं, कांग्रेस के वरिष्ठ दलित नेता उदित राज ने भी ईडब्लूएस आरक्षण को लेकर सवाल खड़े किए थे। हालांकि दिलचस्प यह है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के तुरंत बाद कांग्रेस ने गरीबों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण को संवैधानिक रुप से वैध ठहराए जाने का स्वागत करते हुए समर्थन किया था। मालूम हो कि 2019 में आर्थिक रुप से कमजोर वर्ग के लिए 10 फीसद आरक्षण से संबंधित 103वें संविधान संशोधन विधेयक का कांग्रेस ने समर्थन करते हुए संसद के दोनों सदनों में इसके पक्ष में वोट भी दिया था। दिलचस्प यह भी है कि 2009 और फिर 2014 के अपने चुनाव घोषणा पत्र में ईडब्लूएस आरक्षण का संकल्प जाहिर करते हुए पार्टी ने कहा था

 

जयराम रमेश ने दो जजों की असहमति का किया जिक्र

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के मौजूदा आरक्षण को किसी भी तरह से प्रभावित किए बिना सभी समुदायों के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण शुरू करने के लिए आगे का रास्ता खोजने को प्रतिबद्ध है। इस रुख के बावजूद सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अध्ययन करने की जरूरत पर जयराम रमेश ने कहा कि दो जजों ने अपने फैसले में एसी-एसअी और ओबीसी को ईडब्ल्यूएस श्रेणी से बाहर करने को असंवैधानिक माना है।

संसद में कानून को पास करते समय पार्टी ने संशोधन की उठाई थी मांग

साथ ही यह भी याद रखा जाना चाहिए कि पिछले लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए आखिर दिनों में जल्दबाजी में भाजपा सरकार यह संविधान संशोधन लेकर आई, तब कांग्रेस ने संयुक्त संसदीय समिति में भेजकर इसकी कानूनी खामियों को दुरूस्त करने की दोनों सदनों में मांग उठाई थी। तब सरकार ने इसे स्वीकार नहीं किया और इसी वजह से मौजूदा जटिलताएं सामने आयी हैं। जयराम ने आरक्षण की जटिलताओं को दूर करने के लिए सरकार से तत्काल जाति जनगणना कराए जाने की मांग की और कहा कि इस मामले में सरकार की लगातार चुप्पी ठीक नहीं है क्योंकि आरक्षण पर दावों की तस्वीर जाति जनगणना से ही साफ होगी।