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दिल्ली के गाजीपुर में कूड़े का पहाड़ बना भाजपा और आप के बीच राजनीति का अखाड़ा


ज्ञानेंद्र रावत। दिल्ली के गाजीपुर में बने कूड़े के पहाड़ के किनारे की दीवार बीते दिनों कूड़े के दबाव के चलते ढह गई। इसके बाद तुरंत वहां नेताओं के आने और आरोप-प्रत्यारोपों का सिलसिला आरंभ हो गया। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी वहां पहुंचे और इसका ठीकरा उन्होंने भाजपा पर यह कहते हुए फोड़ा कि निगम और केंद्र में काबिज भाजपा आज तक इस मसले का हल करने में नाकाम रही है। वहीं भाजपा के दिल्ली और केंद्र स्तर के नेता दिल्ली सरकार पर यह आरोप लगाते नहीं थक रहे कि पिछले लगभग आठ वर्षों से दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने के बावजूद अब उन्हें कूड़े के इन पहाड़ों की सुध आई है।

दरअसल दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी हाल ही में यहां आकर कूड़े की इस समस्या से दिल्ली वालों को निजात दिलाने में नाकाम रहने का ठीकरा भाजपा पर फोडा़ो थो। चूंकि अगले माह दिल्ली में नगर निगम के चुनाव होने हैं, ऐसे में यह मुद्दा आजकल व्यापक चर्चा में है। असलियत में कहा जाए तो कूड़े के पहाड़ कहें या ढेर, आज अधिकांश जगहों के लिए ये एक बड़ी समस्या बन चुके हैं। देश के शहरों में सालाना 6.2 करोड़ टन से भी ज्यादा कूड़ा निकलता है। कोई शहर या कस्बा इस समस्या से अछूता नहीं है। यह समस्या उस हालत में है, जब इसके निस्तारण के लिए देश में व्यवस्थित रूप से सरकारी विभाग हैं, हजारों कार्यालय हैं और पूरे लाव-लश्कर के साथ लाखों की तादाद में सरकारी और स्थानीय निकायों के कर्मचारी हैं। उस हालत में कूड़ा कैसे भीषण समस्या बन गया, यह विचारणीय है। महानगरों-शहरों-कस्बों की बात छोड़िए, अनेक पर्यटक स्थल और तीर्थस्थल भी इसके दंश को झेलने को अभिशप्त हो चुके हैं।

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देश की राजधानी दिल्ली के लिए तो कूड़े के पहाड़ एक भीषण समस्या बन चुके हैं। हालात ये बता रहे हैं कि चाहे कोई राजनीतिक दल कुछ भी दावा कर ले, परंतु हाल-फिलहाल इसका समाधान होना आसान नहीं दिखता है। इसका सबसे बड़ा कारण तो यह है कि लाख कोशिशों के बावजूद इन पहाड़ों पर कूड़ा कम होने के बजाय दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है। यहां कूड़ा कम किए जाने की दिशा में सरकारी प्रयास अभी तक नाकाफी ही साबित हुए हैं। इसका जीता जागता सबूत है कि बीते वर्षों की तुलना में इस साल यहां पर अभी तक कूड़े की मात्रा में 851 टन की वृद्धि होना, जबकि साल 2024 के मार्च तक इन तीनों (गाजीपुर, भलस्वा और ओखला) लैंडफिल साइट को साफ कर दिए जाने का लक्ष्य निर्धारित है। वर्तमान दशा इसकी गवाही नहीं देते कि मार्च 2024 तक यह लक्ष्य पूरा कर लिया जाएगा। इसका सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि दिल्ली के इन कूड़े के पहाड़ों से जितना कचरा रोज निपटाया जाता है, उससे लगभग 400 टन से ज्यादा नया कचरा रोज आ जाता है।

दुखदायी बात यह है कि इन कूड़े के पहाड़ों पर आग लगने की घटनाएं भी सामान्य होती जा रही हैं। यही नहीं, इनके आसपास के इलाके की हवा की गुणवत्ता इतनी दुष्प्रभावित हो चुकी है जिससे जहरीली हो चुकी हवा से आसपास रहने वाले लोगों का जीना हराम हो गया है। पर्यावरण तो दुष्प्रभावित हुआ ही है, प्रदूषण बढ़ रहा है सो अलग। इससे समीपस्थ इलाके के लोगों के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है और वे अस्थमा, पेट, लिवर, आंत्रशोथ व फेफड़े से संबंधित जानलेवा बीमारियों के शिकार हो अनचाहे मौत के मुंह में जा रहे हैं। आंखों में जलन की समस्या तो आम बात है। इतना ही नहीं, हाल ही में हुए एक अध्ययन की रिपोर्ट में यह भी दर्शाया गया है कि इस क्षेत्र में भूजल प्रदूषित हो रहा है। चिकित्सकों का यह भी कहना है कि जिन लोगों में रोग से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता कम होती है, उन्हें इस अपार कूड़े के दुष्प्रभाव से अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

 

वैसे दिल्ली में स्थानीय निगमों का कहना है कि अभी तक कुल मिलाकर मात्र 20 प्रतिशत ही कूड़ा यहां से हटाया जा सका है। ओखला और भलस्वा लैंडफिल साइटों की बात करें तो वहां पर किए गए प्रयासों का कुछ असर दिखाई अवश्य दे रहा है, परंतु गाजीपुर साइट की दशा अत्यंत गंभीर हो चुकी है। वहां से अभी तक मात्र 10 प्रतिशत ही कूड़ा हटाया जा सका है। असल में देखा जाए तो कचरे का जन्मदाता मूल रूप से जनता ही है। जनजीवन से इसे अलग कर पाना आज बहुत मुश्किल है। यह बात दीगर है कि इसका जन्म ही अव्यवस्था से होता है और इसकी समस्या व्यवस्था से जुड़ी है, इसे नकारा नहीं जा सकता। यह भी कि इसके निपटान के लिए सरकार की संवेदनशीलता और प्रबल इच्छा शक्ति बेहद जरूरी है। यदि इसके निस्तारण की समुचित व्यवस्था की जाए तो समस्या ही पैदा न हो।

वैसे दिल्ली में कचरे की समस्या केवल यहीं तक सीमित नहीं है कि यहां कूड़े के पहाड़ बन चुके हैं। बल्कि यहां अधिकांश क्षेत्रों में निर्माण और पुनर्निर्माण कार्यों की प्रक्रिया निरंतर जारी रहने समेत सड़कों के किनारे अव्यवस्था रहने के चलते धूल और कूड़ा यत्र-तत्र फैला हुआ दिखता है। अक्सर इसके लिए लोग भी जिम्मेदार देखे जा सकते हैं जो अपने आवासीय परिसर, व्यावसायिक प्रतिष्ठान आदि को तो पूरी तरह से साफ रखते हैं, परंतु आसपास की सड़क की सफाई के प्रति बिल्कुल सजग नहीं रहते। कई बार अतिक्रमण के कारण भी सार्वजनिक जगहों की सही तरीके से सफाई नहीं हो पाती है, जिसके लिए नागरिक भी जिम्मेदार हैं। ऐसे में प्रत्येक नागरिक को सजग होना होगा।