सम्पादकीय

दो राष्टï्रपतियोंकी मुलाकातके निहितार्थ


आर.डी. सत्येन्द्र कुमार

महाशक्तियोंके बीचके सम्बन्ध अन्तर्विरोधसे भरपूर होते हैं। अभी वह सहयोग दर्शाता है तो कुछ ही समय बाद वह संघर्षकी मौजूदगीकी तस्वीर पेश करता है। कुल मिलाकर उनके सम्बन्ध अस्थिरता प्रदर्शित करते हैं। बाइडेनके नेतृत्वमें अमेरिका एवं पुतिनके नेतृत्वमें रूस एक अरसेसे इसी अस्थिर स्थितिको प्रदर्शित करते रहे हैं। एक दौर था जब दोनों नेता अस्थिर सम्बन्धोंके दर्शक बने रहे। इसकी गम्भीरताको आप इसी तथ्यसे समझ सकते हैं कि अभी कुछ ही समय पहले इनके सम्बन्ध इतने खराब हो गये थे कि पुतिनको अमेरिकासे रूसी राजदूतको वास बुला लेना पड़ा था और अब हालिया वार्ताके बाद राजदूत फिर अमेरिका वापस लौट गये हैं। यहां यह तथ्य काबिलेगौर है कि महाशक्तियोंके सम्बन्ध अन्तर्विरोधसे भरपूर हुआ करते हैं। जब वैश्विक स्थितियां सामान्य हुआ करती हैं तब यह अन्तर्विरोध महसूस नहीं किये जाते हैं लेकिन जैसे ही स्थितियां असामान्य होती हैं वैसे ही अपनेको तीव्रताके साथ उजागर करते हैं। रूस और अमेरिकाके रिश्तोंपर यही वैश्विक नियम लागू होता है। सम्बन्ध तोडऩे और फिर उसे जोडऩेकी हालिया घटनाओंके पीछे यहीं नियम कार्य कर रहा है। नेता तो बस माध्यमका काम करते हैं। इस बुनियादी नियमको नजरअन्दाज करनेसे वैज्ञानिक नजरिया प्रभावित होता है और लोग गलत एवं मनोगतवादी निष्कर्षपर पहुंचनेके लिए अभिशप्त हो जाते हैं।

हकीकत जो भी हो और उसका स्वरूप जो भी हो, फिलहाल दोनों महाशक्तियोंके नेता पूर्व स्थितिमें लौट गये हैं जिसे विशेषज्ञ सहज, स्वाभाविक एवं नितान्त प्रत्याशित ही मान रहे हैं। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं लेना चाहिए कि इन दो महाशक्तियोंके बीचके मतभेद समाप्त हो गये हैं। दरअसल उनके मतभेद समाप्त न होकर फिलहाल पृष्ठïभूमिमें चले गये हैं। उपयुक्त समय आनेपर वह मतभेद फिर सतहपर आयंगे और नये स्तरके तनावका सृजन करेंगे। दोनों महाशक्तियोंके नेता इस तथ्यसे भली-भांति अवगत हैं कि उनके राष्टï्रीय एवं अन्तरराष्टï्रीय स्वार्थ अलग-अलग हैं। इसलिए वह आगे भी अपनी राजनीतिक भिन्नता प्रदर्शित करते रहेंगे। रूस और अमेरिका दोनों ही करनीमें साम्राज्यवादी देश है, कथनीमें वह चाहे कुछ भी क्यों कहें। वह अपने प्रभाव क्षेत्रोंका विस्तार करते ही रहेंगे। प्रभाव क्षेत्रके विस्तारके क्रममें उनमें छोटे-छोटे टकराव भी होते ही रहेंगे। यह भी सम्भव है कि समय-क्रममें वह छोटे टकराव अपेक्षाकृत बड़े टकरावका रूप धारण लें। साम्राज्यवादी देशोंके बीचके टकरावोंके अध्ययन और अनुभवसे इस निष्कर्षकी पुष्टिï होती है। फिलहाल राष्टï्रपति जो बाइडेन और ब्लादिमीर पुतिनने अपने प्रथम शिखर सम्मेलनका जो २.५ घंटे चली। यह शिखर वार्ता उतनी लम्बी न खिंच सकी जितनी कि उम्मीद की गयी थी। रूसी और अमेरिकी अधिकारियोंको इस शिखर सम्मेलनसे ज्यादा उम्मीदनहीं रही। रूसी राष्टï्रपति पुतिनने वैसे उम्मीद जतायी थी कि दोनों नेताओंकी बैठक लाभकर साबित होगी।

स्पष्टï है कि इस शिखर सम्मेलनके जरिये उम्मीदोंका ज्वार लानेकी दोनों देशोंके राष्टï्रपतियोंने भरपूर पेश की जिसे विशेषज्ञ और विश्लेषक सहज, स्वाभाविक एवं प्रत्याशित ही मान रहे हैं। फिर भी यह बैठक कई दृष्टिïयोंसे महत्वपूर्ण तो रही ही। एक तो यह कि दोनों महाशक्तियोंके बीचके अंतर्विरोधकी धार कुछ समयके लिए कुंठित हो गयी। अब देखना है कि इस सुपर सम्मेलनका विश्व राजनीतिक पटलपर क्या असर होता है। चीनकी बढ़ती शक्तिके मद्देनजर यह प्रश्न अतिशय महत्वपूर्ण ही उठता है। फौरी तौरपर राजनीतिक प्रेक्षकोंके तबकेका मानना है कि यदि दोनों राजनेताओंके इस तरह समीप आनेसे चीनका सशंकित होना स्वाभाविक ही है। वैसे भी चीन नहीं चाहेगा कि रूस और अमेरिकामें दोस्ताना सम्बन्ध बना रहे। अब यह तो समय ही बतायेगा कि इस बाबत हवाका क्या रुख होगा। जहांतक पुतिनका सवाल है वह चीनके साथ दोस्ताना सम्बन्ध बनाये रखनेके पक्षधर प्रतीत होते हैं लेकिन अमेरिकाका रुख इससे निम्र है। वह चीनको अपना खतरनाक प्रतिद्वंदी मानता है और उसे खुशी होगी यदि पुतिनका रुख भी उसीके जैसा हो जाय। वैसे विशेषज्ञ चुप्पी साधे हुए हैं, जो मुखर है वह चीनविरोधी है और चाहेगा कि पुतिन और बाइडेन चीनके विरुद्ध संयुक्त प्रयास करें। उनके अनुसार मौजूदा दौकी राजनीतिका यही मौका है। हकीकत जो भी हो, पुतिन अभी तो चीन विरोधी नहीं है। आगे चलकर क्या होगा यह तो समय ही बता पायेगा। यह भी एक सम्भावना है कि दोनों वैश्विक शक्तियां चीनके मुद्देपर अलग रुख अपनाये।

वैसे पुतिन-बाइडेन वार्ताका अलगसे भी महत्व है, क्योंकि यह दो सुपरहावर्सके नेताओंका मिलन है जिसका दूरगामी परिणाम सम्भव है। फिर भी उसकी पूर्व कल्पना अभीसे नहीं की जा सकती, क्योंकि वैश्विक राजनीतिमें फिलहाल अजीब-सी उथल-पुथल मची हुई है। ऐसे दौरमें राजनीतिक भविष्यवाणी करना आसान बिल्कुल नहीं है। वैसे इतना स्पष्टï है कि विश्वकी राजनीतिमें पुतिनका महत्व बढ़ रहा है। इस महत्वमें अभी और वृद्धिके आसार नजर आ रहे हैं। ऐसेमें पुतिनके पक्षधरोंकी रायमें अमेरिकी राष्टï्रपतिको दंभ परित्यागपर एक हदतक मजबूर होना पड़ सकता है। वैसे दोनों नेताओंके बीच हुई दृष्टिïयां वार्ताका एक पक्ष यह भी है कि इससे दो महाशक्तियोंके बीच सहयोगका दौर भी शुरू हो सकता है। भले ही यह दौर कितना ही अस्थायी और क्षणभंगुर क्यों न साबित हो। फिर भी यह देखना पड़ेगा कि विश्वकी दो महाशक्तियोंके राष्टï्रपतियोंको किस दिशामें ले जायगा। वैसे ऐसे विशेषज्ञोंकी कमी नहीं है जो इस मुलाकातके विशेष महत्व देनेके पक्षमें नहीं है। लेकिन उनका यह दृष्टिïकोण नितानत मनोगतवादी है। उन्हें वैश्विक राजनीतिके उतार-चढ़ावकी गहराईमें समझ नहीं है। फिर भी दोनों महाशक्तियोंके राष्टï्रपतियोंकी इस मुलाकातको बहुत बढ़ाकर पेश करना गलत होगा। अभी कुछ इन्तजारकी जरूरत है ताकि राजनीतिक यथार्थ अपनेको और स्पष्टï रूपसे प्रकट कर सके।

राजनीतिक प्रेक्षकोंका वैसे एक तबका ऐसा भी है जो दोनों महाशक्तियोंके राष्टï्रपतियोंकी इस मुलाकातको एक सामान्य घटना करार देता है। हालांकि यदि दोनों देशोंके रिश्तोंमें विद्यमान तनावको ध्यानमें रखा जाय तो इसे सामान्य घटना करार नहीं दिया जा सकता और कुछ नहीं तो यह तो स्पष्टï ही है कि यह मुलाकात ऐसे तो स्पष्टï ही है कि यह मुलाकात ऐसे दौरमें हुई है जब एक देशके राष्टï्रपतिके सत्ताच्युत होनेके बाद वहां दूसरा राष्टï्रपति आया है जो कुछ भिन्नता लिये हुए है। इसके अलावा इस मीटिंगके जो निहितार्थ हैं वे व्यापक हैं भले ही वे बहुत गहन न हो। इस घटनाके महत्वको कमतर आंकनेवाले प्रेक्षकोंने इस तथ्यको नजरअन्दाज करार दिया है जो भयंकर भूल एवं भटकावके सिवाय कुछ भी नहीं। दो महाशक्तियोंके नेताओंकी यह मुलाकात वैसे अन्तरराष्टï्रीय राजनीतिके एक महत्वपूर्ण दौरमें हुई है जिसे अनेक कारणोंसे सामान्य दौर नहीं करार दिया जा सकता।