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धर्मांतरित दलितों को SC दर्जा देने पर अध्ययन करने के लिए आयोग गठित, दो वर्ष में अध्ययन करके देगा रिपोर्ट


नई दिल्ली,  केंद्र सरकार ने धर्मांतरित दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने पर अध्ययन करने के लिए एक आयोग गठित किया है। इसके लिए सरकार ने पूर्व प्रधान न्यायाधीश केजी बालाकृषणन की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय आयोग गठित किया है। सेवानिवृत आइएएस रविन्दर कुमार जैन व यूजीसी की सदस्य प्रोफेसर (डाक्टर) सुषमा यादव सदस्य होंगी।

आयोग करेगा अध्ययन

आयोग अध्ययन करके दो वर्ष के भीतर अपनी रिपोर्ट देगा। आयोग अध्ययन करेगा कि ऐतिहासिक रूप से सामाजिक असमानता और भेदभाव झेलते आ रहे दलित अगर संविधान के अनुच्छेद 341 में उल्लेखित धर्मों (हिन्दू, सिख, बौद्ध) के अलावा किसी और धर्म में परिवर्तित हो गये हैं तो क्या उन्हें धर्म परिवर्तन के बाद भी अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जा सकता सकता है।

 

यानी विचार किया जाएगा कि धर्म परिर्वतन कर ईसाई या मुसलमान बन गए तो भी क्या उन्हें अनुसूचित जाति का लाभ मिल सकता है। सरकार ने धर्म परिवर्तन करने वालों की अनुसूचित जाति का दर्जा दिये जाने की मांग और अनुसूचित जाति वर्ग के कुछ समूहों द्वारा मांग का विरोध किए जाने को देखते हुए पूरे मामले पर गहनता से अध्ययन के लिए इस आयोग का गठन किया है।

मामले पर 11 अक्टूबर को फिर होगी सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट में भी कई याचिकाएं लंबित हैं, जिनमें ईसाई और मुसलमान बन गए दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की मांग की गई है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर 11 अक्टूबर को फिर सुनवाई होनी है। उम्मीद है कि सरकार सुनवाई के दौरान कोर्ट को मामले में विस्तृत अध्ययन के लिए आयोग गठित किये जाने की जानकारी देगी।

आयोग के गठन की अधिसूचना जारी

केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने 6 अक्टूबर को आयोग के गठन की अधिसूचना जारी की। अधिसूचना में कहा गया है कि धर्म परिर्वतन करने वाले कुछ समुदायों ने अनुसूचित जाति का दर्जा देने की मांग की है जबकि मौजूदा अनुसूचित जाति वर्ग के कुछ समूहों ने धर्म परिर्वतन करने वालों को अनुसूचित जाति वर्ग का दर्जा दिये जाने का विरोध किया है।

सरकार का कहना है कि यह मौलिक और ऐतिहासिक रूप से जटिल समाजशाष्त्रीय और संवैधानिक प्रश्न है। यह सार्वजनिक महत्व का मुद्दा है और इस पर गहराई से अध्ययन की जरूरत है। मामले के महत्व उसकी संवेदनशीलता और संभावित प्रभावों को देखते हुए इससे संबंधित परिभाषा में कोई भी परिवर्तन विस्तृत और निश्चित अध्ययन तथा सभी हितधारकों के साथ व्यापक विचार विमर्श के आधार पर होना चाहिए।

आयोग संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत

अधिसूचना में कहा गया है कि अभी तक जांच आयोग अधिनियम 1952 के अंतरर्गत आयोग ने इस मामले की जांच नहीं की है। इसलिए केंद्र सरकार जांच आयोग अधिनियम 1952 (1952 का 60) की धारा 3 के तहत प्राप्त शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए जांच आयोग नियुक्त करती है।

आयोग संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत समय- समय पर जारी राष्ट्रपति के आदेशों में उल्लिखित धर्मों (हिन्दू, सिख, बौद्ध) के अलावा अन्य धर्म में धर्मांतरित तथा ऐतिहासिक रूप से अनुसूचित जातियों से संबंध होने का दावा करने वाले नये व्यक्तियों को अनुसूचित जाति का दर्जा प्रदान करने संबंधी मामले की जांच करेगा।

 

अनुसूचित जातियों की मौजूदा सूची के हिस्से के रूप में ऐसे नये व्यक्तियों को जोड़ने से मौजूदा अनुसूचित जातियों पर पड़ने वाले प्रभाव की जांच करेगा। आयोग यह भी जांचेगा कि अन्य धर्मों से धर्मांतरण के बाद रीति-रिवाज, परंपरा सामाजिक तथा अन्य दर्जा संबंधी भेदभाव करने व लाभवंचित करने तथा अनुसूचित जाति का दर्जा प्रदान करने के प्रश्न पर पड़ने वाले इसके प्रभाव के संदर्भ में अनुसूचित जाति के व्यक्तियों में आए बदलावों की जांच करना।

संविधान और कानून के तहत

इसके अलावा आयोग केंद्र सरकार से परामर्श और सहमति से इससे संबंधित किसी और प्रश्न पर भी विचार कर सकता है। मालूम हो कि प्रेसिडेंशियल आर्डर के जरिये ही अनुसूचित जाति में शामिल किया जाता है। संविधान और कानून के तहत अनुसूचित जाति वर्ग को कई तरह का आरक्षण और लाभ प्राप्त है। यह आरक्षण अनुसूचित जाति वर्ग के साथ ऐतिहासिक रूप से भेदभाव और असमानता को दूर करने और उन्हें समाज की मुख्य धारा में शामिल करने के लिए दिया जाता है। अनुसूचित जाति वर्ग को 15 फीसद आरक्षण प्राप्त है।