सम्पादकीय

ध्यान और ज्ञान


श्रीश्री रविशंकर

सारी सृष्टि पांच महाभूतोंसे बनी है। हमारा शरीर भी उन्हीं पांच महाभूतों पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाशसे निर्मित हुआ है। हम अग्नि और आकाशको प्रदूषित नहीं कर सकते। पृथ्वी, जल और वायुका प्रदूषण तो हो ही रहा है। पेड़ोंको काटनेसे ऊंची-ऊंची लोहे, कंकड़, पत्थरकी इमारतें बनानेसे नगरोंका मौसम बदल जाता है और उससे वहांका तापमान भी प्रभावित होता है और हां आकाशमें वायु तो है ही। यदि वायुका प्रदूषण होता है तो आकाशका प्रदूषित होना स्वाभाविक ही है। इस तरह अग्नि और आकाश तत्व परोक्ष रूपसे प्रदूषित हो रहे हैं। प्रत्यक्ष प्रदूषण तो तीन तत्वों अर्थात्ï पृथ्वी, जल और वायुका हो रहा है। मनुष्य जीवित या मृत दोनों रूपोंसे पृथ्वीको प्रदूषित कर रहा है। केवल जाग्रत मनुष्य ही पृथ्वीको प्रदूषित होनेसे बचा सकता है, जिसमें समझनेकी सामथ्र्य हो और जो धरती मांका आदर करता हो। किसी जड़ पदार्थको आदर देनेके लिए सचमुच ही विशाल हृदय चाहिए। पहले प्राणियोंके प्रति आदर भाव रखना आये, फिर पशु-पक्षियोंके प्रति और फिर जड़ पदार्थके प्रति आदर भाव पनप सकता है। जब आप जीवंतको सम्मान देना सीख जाते हैं तो जड़ वस्तुओंको सम्मान देना सहज हो जाता है, किंतु इस दृष्टिके लिए चेतनाका विकसित स्तर अनिवार्य है। जल जीवनका आधार है। जलके बिना जीवन नहीं हो सकता। पुरातन कालमें, वैदिक युगमें पानीको पवित्र मानकर पूजा जाता था। प्रत्येक नदी पवित्र अति पूजनीय थी। परंतु पिछली सदीमें लोगोंको पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश इन महाभूतोंकी पूजा करना पड़ा दकियानूसी लगने लगा। अत: उन्होंने इन धारणाओं और परंपराओंको पुराना कहकर जीवनसे हटा ही दिया। जलको पवित्र मानने, उसकी पवित्रता समझने और उसे पवित्र बनाये रखनेकी बहुत आवश्यकता है। ऐसा ही वायुके लिए भी चाहिए। वायुके लिए संस्कृतमें शब्द है पवन। पवनका अर्थ है पवित्र करनेवाली जो वनस्पति जगतको भी पवित्र कर देती है। अग्नि भी पावक है यदि उसका प्रयोग ठीक ढंगसे किया जाय। नहीं तो वह अग्नि जो पावक है, वह प्रदूषणका कारण भी बन सकती है। मन सकारात्मक विचारोंसे अपने आसपास सुखद वातावरण बना सकता है। वही मन नकारात्मक विचारोंसे अपने आसपास दु:खद वातावरण बना सकता है। मनके इस भावको जरा सजग होकर देखें, थोड़ी पैनी दृष्टिसे देखें तो पता चलेगा कि अपने भावोंसे हम आसपासके वातावरणको प्रभावित करते हैं।