सम्पादकीय

व्यक्तित्वकी कसौटी


श्रीराम शर्मा

व्यक्तित्ववानसे तात्पर्य सुंदरता या साज-सज्जासे नहीं लगाया जाना चाहिए। यह विशेषताएं तो रंगमंचके नट नटियोंमें भी हो सकती हैं। इससे उन्हें आकर्षक मात्र समझा जा सकता है। उन्हें व्यक्तित्ववान नहीं कहा जा सकता। ऐसे लोगोंके प्रति किसीको न श्रद्धा होती है न सम्मान। उन्हें कोई उत्तरदायित्व पूर्ण काम भी नहीं सौंपे जा सकते और न उनसे आशा की जा सकती है कि वह जीवनमें कोई महत्वपूर्ण काम कर सकेंगे। व्यक्तित्वसे तात्पर्य शालीनतासे है। जो सद्गणोंके उत्तम स्वभाव और मानवी गरिमाके अनुरूप वाणी एवं विधि-व्यवस्था अपनानेमें है। यह सद्गुण स्वभावके अंग होने चाहिए और चरित्र तथा व्यवहारमें उनका समावेश गहराईतक होना चाहिए। अन्यथा दूसरोंको फंसानेवाले ठग भी कुछ समयके लिए अपनेको विनीत एवं सभ्य प्रदर्शित करते हैं। कोई आदमी वस्तुत: कैसा है इसे थोड़ी देरमें नहीं समझा जा सकता। उसकी पिछली जीवनचर्या देखकर वर्तमान संगति एवं मित्र मंडलीपर दृष्टिपात करके समझा जा सकता है कि उसका चरित्र कैसा है। यह चरित्र ही व्यक्तित्वकी परखका प्रधान अंग है। इसके अतिरिक्त शिक्षा एवं विचार पद्धति भी देखने योग्य है। कुछ समयके वार्तालापमें मनुष्यकी शिक्षा एवं आस्थाका पता चल जाता है। चिंतन वाणीमें प्रकट होता है। ठग आदर्शवादी वार्तालाप कर सकनेमें देरतक सफल नहीं हो सकते। वे किसीको जालमें फंसानेके लिए ऐसी बातें करते हैं मानों उसके हितैषी हों और उसे अनायास ही कृपापूर्वक कोई बड़ा लाभ कराना चाहते हैं। नीतिवान ऐसी बातें नहीं करते वह अनायास ही उदारता नहीं दिखाते और न अनुकंपा करते हैं। न ऐसा रास्ता बताते हैं, जिसमें नीति गंवाकर कमाई करनेका दांव बताया जा रहा है। व्यक्तित्ववान स्वयं नीतिकी रक्षा करते हैं भले ही इसमें उन्हें घाटा उठाना पड़े। यही नीति उनकी दूसरोंके संबंधमें होती है। जब भी, वे परामर्श देंगे वह ऐसा होगा जिसमें चरित्रपर आंच न आती हो, भले ही सामान्य स्तरका बना रहना पड़े। शालीनता उपार्जित करनेके लिए शिक्षाकी भी जरूरत पड़ती है। अशिक्षितोंके व्यवहारमें दूसरोंको हानि पहुंचाकर अपना लाभ कमानेकी नीति होती है। ऐसा ही वे स्वयं करते हैं और दूसरोंको परामर्श देते हैं। कारण कि उनका ज्ञान साधारण लोगोंतक ही सीमित होता है। उनमेंसे अपवाद रूपमें ही भलमनसाहत पायी जाती है। जिसपर इस समुदायका प्रभाव है वे यही समझते हैं कि दुनियाका रीति-रिवाज यही है और इसी रीति-नीतिको अपनानेमें कोई हर्ज नहीं है।