सम्पादकीय

ध्यान और धन 


ओशो

भारतीय ध्यानमें उतरना नहीं चाहता, क्योंकि उसे यह ख्याल है, वह जानता ही है ध्यान क्या है। दूसरा यदि उतरनेको भी राजी होता है तो दो दिनमें ही आकर खड़ा हो जाता है कि अभीतक नहीं हुआ और उसे बेचैनी होती है कि पश्चिमसे आये लोगोंको हो रहा है, क्योंकि वह इतने प्रसन्न और इतने आनंदित! उनके प्रसन्न और आनंदित होनेका कारण है कि उनके मनमें लोभ नहीं है ध्यानका। धनका लोभ था, धन पा लिया पश्चिमने और वह लोभ टूट गया, देख लिया कि उस लोभमें कोई सार नहीं था। अभी ध्यानका लोभ पैदा नहीं हुआ है, महर्षि लोगोंसे कहते है ध्यान करनेसे पारलौकिक लाभ तो होता ही है, सांसारिक लाभ भी होता है। धन भी बढ़ेगा, पद भी बढ़ेगा, परमात्मा भी मिलेगा। एक बहुत आश्चर्यजनक घटना है। विवेकानंदने भारतीय साधु-संतोंके लिए अमेरिकाका दरवाजा खोला। उन्हें दिखायी पड़ता है कि यदि अमेरिकी लोगोंको प्रभावित करना है तो वही भाषा बोलो जो वह समझते हैं। अमेरिका धनकी भाषा समझता है। अमेरिका पूछता है धन इससे कैसे मिलेगा तो भारतीय महात्मा भी धनकी भाषा बोलने लगता है। वह कहता है ध्यानसे मनकी शक्ति बढ़ेगी, सिद्धि मिलेगी। ध्यान करनेसे क्या नहीं हो सकता! तुम्हारे विचार इतने शक्तिशाली हो जायंगे। मैंने ऐसी किताबें देखी हैं जो कहती है कि यदि तुमने ठीकसे ध्यान किया और कहा कि कैडिलक कार मिलनी चाहिए तो मिलेगी। ध्यानकी किताबें! कैडिलक कार मिलनी चाहिए, इसको यदि ध्यानपूर्वक सोचा तो जरूर मिलेगी, यदि तुमने पूरे संकल्पसे, पूरी एकाग्रतासे विचार किया तो यह घटना घटकर रहेगी। क्योंकि विचारमें शक्ति है और एकाग्र विचारमें बड़ी शक्ति है। यह यदि तुम्हारे ऋषि-मुनि कब्रोंसे निकल आयें तो सिर ठोक लें कि यह हमारे महात्मा अमेरिकामें जाकर क्या समझा रहे हैं! परन्तु अमेरिकाको समझाना हो तो अमेरिकाकी भाषा बोलनी पड़ती है। उसी भाषाके बोलनेमें सब व्यर्थ हो जाता है। भारतीय मन सदियोंसे सुनते-सुनते ध्यानकी बात लोभी हो गया है। धनका जो लोभ है, उसी लोभको भारतीय मनने आत्माके लोभपर निरूपित कर दिया, आरोपित कर दिया। पदका जो लोभ है, वही उसने धार्मिक दिशामें संक्रमित कर दिया है, भेद नहीं है। कोई यहां पद पाना चाहता है, वह वहां पद पाना चाहता है। फिर अड़चन होगी। फिर तुम मुझे न समझ पाओगे और फिर मुक्ति खड़ी ही खड़ी रह जायगी। यह तुम्हारे हाथमें है। यह समय चूक भी सकती हो। चूकनेका मतलब सिर्फ इतना ही कि इस समयमें डूबो नहीं तो चूक जाओगी। मैं रोज यहां मौजूद हूं, मेरे द्वार खुले हैं, तुम डुबकी लो तो मेरे जानेके पहले घटना घट जायगी। आज घट सकती है, कलका भी कोई सवाल नहीं है, कभी भी घट सकती है, क्योंकि परमात्मा सदा मौजूद है। जिस क्षण तुम्हारा लोभ लाभ गया, उसी क्षण मिलन हो जाता है।