डा. भरत झुनझुनवाला
वर्तमानमें अपने देशमें लगभग ४० श्रम कानून लागू हैं। सरकारने इन्हें समेटकर चार लेबर कोडमें संकलित कर दिया है। इन नये कानूनको एक अप्रैलसे लागू होना था जिसे सरकारने चुनावके कारण कुछ समयके लिए स्थगित कर दिया है। चुनावके बाद इन्हें शीघ्र ही लागू किये जानेकी पूरी संभावना है। इन लेबर कोडको बनानेके पीछे सरकारकी मंशा श्रम कानूनोंको सरल करनेकी थी जिससे कि देश उद्यमियोंके लिए श्रमिकोंको रोजगार देना आसान हो जाय और मन्युफैक्चरिंग क्षेत्रमें देशकी अधिक संख्यामें रोजगार उत्पन्न हो सकें। लेबर कोडके प्रावधानोंमें कुछ श्रमिकोंके पक्षमें हैं तो कुछ उनके विपरीत हैं। जैसे यदि किसी श्रमिकको कोई आरोप लगाकर मुअत्तल किया जाता है तो अब व्यवस्था कर दी गयी है कि ९० दिनमें उसकी जांच पूरी की जायेगी। पूर्वमें ग्रेच्युटी कई वर्षोंके बाद लागू होती थी जिसे अब एक वर्षके बाद लागू कर दिया गया है। अल्पकालके लिए रखे गये श्रमिकोंको अब वह सभी सुविधाएं उपलब्ध होंगी जो स्थायी श्रमिकोंको उपलब्ध हैं। यह प्रावधान श्रमिकोंके हितमें है। इसके विपरीत उद्यमोंको बंद करने अथवा श्रमिकोंकी छटनी करनेके लिए पूर्वमें सौसे अधिक श्रमिकोंको रोजगार देनेवाली कम्पनियोंके लिए सरकारसे अनुमति लेना जरूरी था। अब इसे तीनसे अधिक श्रमिकोंको रोजगार देनेवाली कम्पनियों मात्रपर लागू किया गया है। सौसे तीन श्रमिकोंको रोजगार देनेवाली कम्पनियोंको सरकारसे अनुमति लेनेसे मुक्त कर दिया गया है। यह श्रमिकोंके विपरीत है। इस प्रकार नया लेबर कोड मिश्रित है।
देखना यह है कि नये लेबर कोडसे रोजगार उत्पन्न करनेको कितना प्रोत्साहन दिया जायगा। इसके लिए हमें समझना होगा कि उद्यमी द्वारा रोजगार किन परिस्थितियोंमें उत्पन्न किये जाते हैं। उद्यमीको सस्ता माल बनाना होता है जिससे कि वह बाजारमें अपना माल बेच सके। सस्ता माल बनानेके लिए जरूरी है कि वह उत्पादनमें श्रमकी लगतको कम करे। इसलिए वह उसके लिए जरूरी होअत है कि वह श्रमकी उत्पादकता बढ़ाये यानी एक श्रमिकसे ही पूर्वकी तुलनामें अधिक उत्पादन कराये। जैसे एक श्रमिक पूर्वमें दस मीटर कपड़ा एक दिनमें बुनाई करता था। वही श्रमिक यदि अब २० मीटर कपड़ा बुनाई करने लगे तो उद्यमीकी उत्पादन लागत कम हो जाती है और वह बाजारमें अपने सस्ते मालको बेच पाता है। लेकिन अधिक उत्पादन करनेके कारण अब कम श्रमिकोंकी जरूरत पड़ती है। जैसे मान लीजिये पूर्वमें उद्यमी प्रति दिन सौ मीटर कपड़ा एक दिनमें बेच पाता था और वह दस मीटर प्रति श्रमिककी दरसे दस श्रमिकोंको रोजगार देता था। उत्पादकता बढ़ानेके बाद उसी सौ मीटर कपड़ेका उत्पादन करनेके लिए अब बीस मीटर प्रति श्रमिककी दरसे उसे केवल पांच श्रमिकोंकी जरूरत होगी। इस प्रकार सस्ते माल और रोजगारके बीच सीधा अन्तर्विरोध है। यदि माल सस्ता बनाते हैं तो रोजगार कम होते हैं।
चीनका माडल इससे भिन्न था जो कि विशेष परिस्थितियोंमें लागू हुआ था। चीनने श्रमिककी उत्पादकता बढ़ानेके साथ अपने बाजार का भारी विस्तार किया। जैसे मान लीजिये पूर्वमें चीनमें एक श्रमिक दस मीटर कपड़ेकी बुनाई करता था, उत्पादकता बढ़ानेके बाद वह बीस मीटर कपड़ा बुनने लगा। लेकिन इसी अवधिमें चीनका बाजार सौ मीटरसे बढ़कर ४०० मीटर हो गया तो ४०० मीटर कपड़ेका उत्पादन करनेके लिए बढ़ी हुई उत्पादकताके बावजूद २० श्रमिकोंकी जरूरत पड़ेगी। २० श्रमिक २० मीटर कपड़ा प्रतिदिन बुनेंगे तब ४०० मीटर कपड़ेका उत्पादन होगा। इस प्रकार यदि बाजारका भारी विस्तार होता रहे तो श्रमिककी उत्पादकताके बढऩेके साथ-साथ रोजगार भी बढ़ सकते हैं। लेकिन यह विशेष परिस्थिति थी जब चीनने विश्व बाजारपर अपना प्रभुत्व बनाया था। यदि बाजारका तीव्र विस्तार न हो तो उत्पादकता बढऩेके साथ रोजगारके बढऩेकी संख्या निश्चित रूपसे घटेगी।
कटु सत्य है कि यदि श्रमकी उत्पादकता बढ़ायी जाती है तो सीमित बाजार होनेके कारण रोजगार घटते हैं और यदि श्रमकी उत्पादकता नहीं बढ़ायी जाती है तो उद्यमीके लिए श्रमके स्थानपर मशीनका उपयोग करना लाभप्रद हो जाता है और पुन: रोजगारमें गिरावट आती है। इन दोनों कठिन विकल्पोंके बीच मेरा मानना है कि हमें श्रमकी उत्पादकता तो बढ़ानी ही पड़ेगी। यदि श्रमकी उत्पादकता नहीं बढ़ायी जायेगी तो उद्यमी स्वचालित मशीनोंका उपयोग करेगा और श्रमिक पूरी तरह बाजारसे बाहर हो जायगा। अत: कम ही सही लेकिन श्रमिकको कुछ रोजगार मिलता रहे इसके लिए जरूरी है कि श्रमकी उत्पादकताको बढ़ाया जाय।
श्रमकी उत्पादकता बढ़ानेके दो प्रमुख उपाय हैं। एक यह कि उत्तम मशीनोंका उपयोग किया जाय जिससे कि उसी कुशलताके स्तरका श्रमिक अधिक उत्पादन कर सके। दूसरा यह है कि श्रमिककी कुशलतामें विस्तार किया जाय। अकसर उद्योगोंमें देखा जाता है कि श्रमिक पूरी तत्परता और मनोयोगसे काम नहीं करते हैं। वर्तमान श्रम कानूनमें व्यवस्था है कि यदि कोई उद्यमी श्रमिकको बर्खास्त करना चाहे तो उसे प्राकृतिक न्यायके अनुरूप उसकी सुनवाई करनी होती है और उसके बाद श्रम न्यायालयमें उसका विवाद चलता है जिस भयके कारण उद्यमी अकसर श्रमिकको रखना ही नहीं चाहते हैं। लेबर कोडने श्रम कानूनकी इस बाधाको दूर नहीं किया है। पश्चिमी देशोंमें उद्यमीको छूट है कि वह अपनी मर्जीसे श्रमिकोंको रख सकता है अथवा बर्खास्त कर सकता है। इसलिए पश्चिमी देशोंमें उद्यमीके लिए कुशल श्रमिकको रखना और अकुशल श्रमिकको बर्खास्त करना दोनों ही आसान है। श्रम कानूनमें इस दिशामें कोई सुधार नहीं किया गया है इसलिए यह लेबर कोड नये रोजगार उत्पन्न करनेमें सहायक नहीं होगा। अपने देशके श्रमिक चीन आदि देशोंके श्रमिकोंकी तुलनामें अकुशल हैं और उनकी कुशलतामें सुधार करनेके लिए लेबर कोड असफल है। इसलिए मेरा मानना है कि अपने देशमें श्रमकी उत्पादकता न्यून स्तरपर बनी रहेगी, उद्यमी अधिकाधिक मशीनोंका उपयोग करते रहेंगे और हमारे श्रमिकोंके रोजगारके अवसर घटते ही जायेंगे। इस दिशामें लेबर कोडमें मूल चिन्तन बदलनेकी जरूरत है।