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नवाचार के प्रोत्साहन से संभव विकास, आत्मनिर्भर भारत की अवधारणा जय अनुसंधान में ही निहित


यह कहना अतार्किक नहीं होगा कि अनुसंधान समाज के जितना ही पुराना है। समय के साथ इसकी तीव्रता और तीक्ष्णता में अंतर भले ही रहा हो, परंतु ज्ञान को योजनागत तरीके से निरूपित करके सटीक कार्य व्यवस्था को प्राप्त करना सदियों पुरानी प्रणाली रही है। अनुसंधान जितना अधिक प्रभावी ढंग से आगे बढ़ता रहता है, समाज की ताकत और सुशासन का परिप्रेक्ष्य उतना ही सशक्त होता रहता है।

पिछले लगभग छह दशक से चले आ रहे ‘जय जवान, जय किसान’ और वर्ष 1998 में पोखरण में किए गए परमाणु परीक्षण के पश्चात जुड़े ‘जय विज्ञान’ और स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव के कालखंड में 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री ने इसमें ‘जय अनुसंधान’ जोड़ कर यह निरूपित करने का प्रयास किया है कि सुशासन को उसका सही मुकाम देने के लिए सुचिता और वैज्ञानिकता से भरी राह चुननी ही होगी। यह सही है कि हमारा देश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के मामले में निरंतर प्रगतिशील है, परंतु बढ़ती जनसंख्या और व्यापक संसाधनों की आवश्यकता ने कुछ निराशा को भी साथ लिया है। चुनौतियों का लगातार बढ़ना और सुशासन को नए मानक के साथ सामाजिक उत्थान में प्रगतिशील बनाए रखने की दिशा में अभी हम आधा सफर ही कर पाए हैं। आज का युग नवाचार का है। ‘ईज आफ लिविंग’ और ‘ईज आफ डूइंग बिजनेस’ समेत तमाम ऐसे ईज की आवश्यकता है जो सामाजिक-आर्थिक भरपाई करने में कमतर न हो।

उल्लेखनीय है कि अनुसंधान से ही नवाचार की राह खुलती है और नवाचार से ही नव लोक प्रबंध, नवीन विकल्प उपागम और तत्पश्चात उपलब्धिमूलक दृष्टिकोण और सुशासन की राह पुख्ता होती है। वित्तीय संसाधन और शोध का भी गहरा नाता है। भारत में शोध को लेकर जो भी प्रयास मौजूदा समय में हो रहे हैं, वे वित्तीय गुणवत्ता में गिरावट के चलते बेहतर अवस्था को प्राप्त करने में सफल नहीं हैं। शोध और नवाचार के मामले में हमारा देश जीडीपी का 0.7 प्रतिशत ही खर्च करता है जो अमेरिका के 2.8 प्रतिशत और चीन के 2.1 प्रतिशत की तुलना में काफी कम है। दो टूक यह भी है कि शोध कार्य एक समयसाध्य प्रक्रिया होने के साथ ही यह धैर्यपूर्वक अनुशासन में ही संभव है। इसके लिए धन से कहीं अधिक मन से तैयार रहने की आवश्यकता है। आधारभूत ढांचा भी शोध कार्य की आवश्यकता में शामिल है। पिछले कुछ वर्षों के बजट में देखें तो शोध और नवाचार को लेकर सरकार ने कदम बढ़ाया है, परंतु इस कदम को मुकाम तब मिलेगा जब जय अनुसंधान धरातल पर भी उतरेगा।

आज का युग तकनीकी है और ज्ञान के प्रबंधन से संचालित होता है। ऐसे में अनुसंधान और विकास की बढ़त ही देश को लाभ की राह पर आगे ले जाएगा। शायद यही कारण है कि जय अनुसंधान को इस अमृत काल के बीच परोसकर इसकी पराकाष्ठा को जमीन पर उतारने का प्रयास किया जा रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत एक वैश्विक अनुसंधान और विकास हब के तौर पर तेजी से उभर रहा है और सरकार इसे रफ्तार देने में कदम भी बढ़ा चुकी है। सरकार के ऐसे ही सहयोग के चलते वैज्ञानिक अनुसंधान के माध्यम से शिक्षा, कृषि और स्वास्थ्य समेत विभिन्न क्षेत्रों में निवेश संभव भी हो रहा है।