सम्पादकीय

नव संवत्सर भारतीय संस्कृतिकी गौरवशाली परम्परा


ऋतुपर्ण दवे

नववर्षका आरंभ चैत्र मासकी शुक्ल प्रतिपदाको शक्तिकी उपासना, चैत्र नवरात्रिसे होता है। पंचाग रचनाका भी यही दिन माना जाता है। इसी दिन सूर्योदयसे सूर्यास्ततक दिन, महीना और वर्षकी गणना की गयी थी।

हिंदू नववर्षकी शुरुआत अंग्रेजीके नये सालकी तरह रातके घनघोर अन्धेरेमें नहीं, बल्कि सूर्यकी पहली किरणके साथ होती है। भारतीय नववर्ष यानी नव संवत्सरकी कोई निश्चित अंग्रेजी तारीख नहीं होती, क्योंकि यह भारतीय संस्कृतिके अनुरूप नक्षत्रों तथा कालगणनापर आधारित होती है। इसका निर्धारण हिन्दू पंचांग गणना प्रणालीसे होता है। यूं तो नव-संवत्सरसे जुड़ी कई बातें हैं जो एक अलग और विस्तृत विषय हैं। लेकिन इसके आनेका आभास काफी पहलेसे ही प्रकृति कराने लगती है। यही वह समय होता है जब पतझड़की विदाई और नये कोंपलोंका आना शुरू होता है, वृक्षोंपर फूल लदने शुरू हो जाते हैं, फाल्गुनी बयारका अलग ही अहसास होता है। सम्पूर्ण वातावरण ही कुछ यूं हो जाता है मानों नया वर्ष दस्तक देनेवाला है। सच कहा जाय तो विक्रम संवत् किसी धर्म विशेषसे संबंधित न होकर सम्पूर्ण धराकी प्रकृति, खगोल सिद्धांतों और ग्रह-नक्षत्रोंसे जुड़ा है। इसका उल्लेख हमारे धर्मग्रन्थोंमें भी है। इसके कई वैज्ञानिक आधार और पूरे विश्वके मानने हेतु तर्क भी हैं। महान ऋषि-महर्षि दयानन्द जो अनेकों प्राचीन हिन्दू धर्म ग्रन्थोंके गूढ़ एवं सूक्ष्म विवेचनकर्ता थे, ने अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाशमें सृष्टिकी उत्पत्तिकी बेहद सटीक जानकारी दी है। इससे संसारकी उत्पत्तिकी एक-एक दिनकी गणना करनेमें सहजता तो हुई वहीं लोगोंको सृष्टि उत्पत्तिकी सही जानकारी भी हुई। सबसे बड़ा प्रमाण यही है कि वैज्ञानिक भी यह मानने लगे हैं कि सृष्टिकी रचना दो अरब वर्ष पूर्व हुई होगी। इस वर्षका हिन्दू नव वर्ष अर्थात्ï नव-संवत्सर २०७८ की शुरुआत १३ अप्रैल, २०२१ से होगी। दूसरे शब्दोंमें भारतीय कालगणनाके हिसाबसे मंगलवार १३ अप्रैलको चैत्र शुक्ल-प्रतिपदाको सूर्योदयके समय सप्तम वैवस्वत मान्वंतरके २८वें महायुगमें तीन युग सत, त्रेता और द्वापर बीत जानेके उपरांत कलियुगके इस प्रथम चरणमें ब्रह्मïाजी द्वारा रचित मौजूदा सृष्टिकी उत्पत्तिका एक अरब ९५ करोड़ ५८ लाख ८५ हजार १२२ वर्ष पूरा हो जायगा तथा नया संवत्सर यानी नया वर्ष दस्तक देगा।

विक्रम संवत्का भी यह पहला दिन माना जाता है जिसकी स्थापनाको लेकर विद्वानों एवं इतिहासकारोंमें थोड़ा मतभेद जरूर है फिर भी माना जाता है कि यह ईसा पूर्व ५७ में शुरू हुआ होगा। तब इसका नाम मालवागण स्थिति और कृत संवत था लेकिन मालवागणकी पूर्ण स्थापना होनेसे उसी संवत्ïका नाम मालवा और इसके प्रवर्तक विक्रमादित्य होनेसे विक्रम नामसे विख्यात हुआ। यह हिन्दू पंचांगकी गणना प्रणाली भी है। धारणा है कि यह एक ऐसे राजाके नामपर प्रारम्भ होता है जिसके राज्यमें न कोई चोर हो, न अपराधी हो, न ही भिखारी। महाराजा विक्रमादित्य ही वह राजा थे, जिन्होंने सम्पूर्ण देश यहांतक कि प्रजाके ऋणको भी चुकाकर इसे चलाया। उज्जयिनी (मौजूदा उज्जैन) के सम्राट विक्रमादित्यने २०७७ ई. पू. इसी दिन अपने राज्यकी स्थापना की थी। मार्च माहसे ही दुनियाभरमें पुराने कामोंको समेटकर नयेकी रूपरेखा तैयार की जाती है। २१ मार्चको पृथ्वी भी सूर्यका एक चक्कर पूरा कर लेती है और रात-दिन बराबर होते हैं। १२ माहका एक वर्ष, सात दिनका एक सप्ताह रखनेकी परम्परा भी विक्रम संवत्से ही शुरू हुई है। इसमें महीनेका हिसाब सूर्य-चंद्रमाकी गतिके आधारपर किया जाता है। विक्रम कैलेण्डरकी इसी पद्धतिका बादमें अंग्रेजों और अरबियोंने भी अनुसरण किया तथा भारतके विभिन्न प्रान्तोंने इसी आधारपर अपने कैलेण्डर तैयार किये।

भारतमें नवसंवत्सर संवत्सरपर पूजा पाठ कर पुरानी उपलब्धियोंको याद करके नयी योजनाओंकी रूपरेखा भी तैयार की जाती है। इस दिन अच्छे व्यंजन और पकवान भी बनाये जाते हैं। इस पर्वपर विभिन्न प्रान्तोंमें अलग परम्पाएं अब भी हैं जिसमें कहीं स्नेह, प्रेम और मधुरताकी प्रतीक शमी वृक्षकी पत्तियोंके आपसमें लोग एक-दूसरेको देकर परस्पर सुख और सौभाग्यकी कामना करते हैं। कहीं काली मिर्च, नीमकी पत्ती, गुड़ या मिश्री, आजवायइन, जीराका चूर्ण बनाकर मिश्रण खाने एवं बांटनेकी परम्परा है। हिन्दू नव वर्षका आरंभ चैत्र मासकी शुक्ल प्रतिपदाको शक्ति-भक्तिकी उपासना, चैत्र नवरात्रिसे होता है। पंचाग रचनाका भी यही दिन माना जाता है। महान गणितज्ञ भाष्कराचार्यने इसी दिन सूर्योदयसे सूर्यास्ततक दिन, महीना और वर्षकी गणना कर पंचागकी रचना की थी। भारत सरकारका पंचांग शक संवत् भी इसी दिनसे शुरू होता है। भारतके लगभग सभी प्रान्तोंमें यह नव वर्ष अलग-अलग नामोंसे मनाया जाता है जो दिशा एवं स्थानके अनुसार मार्च-अप्रैलमें लगभग इसी समय पड़ते हैं। विभिन्न प्रान्तोंमें यह पर्व गुड़ी पड़वा, उगडी, होला मोहल्ला, युगादि, विशु, वैशाखी, कश्मीरी नवरेहु, चेटीचण्ड, तिरुविजा, चित्रैय आदिके नामसे मनाये जाते हैं।