पटना

नीति आयोग को नहीं सुहाता बिहार का विकास : विजेंद्र


      • सरकार ने दर्ज करायी आपत्ति
      • स्वास्थ्य, शिक्षा, पेयजल एवं स्वच्छता में बेहतर प्रदर्शन : सुबहानी

(आज समाचार सेवा)

पटना। योजना एवं विकास मंत्री विजेंद्र प्रसाद यादव ने कहा है कि नीति आयोग की हालिया रिपोर्ट विरोधाभासी है। बिहार का विकास नीति आयोग को नहीं सुहा रहा है। इसलिए जिन क्षेत्रों में बिहार ने तरक्की की है उन क्षेत्रों को सतत विकास लक्ष्य के सूचकांक से हटा दिया गया है। ऐसे सूचकांकों को जोड़ दिया गया है जो अप्रासंगिक है। बिहार को उसके लक्ष्य को हासिल करना संभाव नहीं है। अयोग ने बिहार की सच्ची तस्वीर देश के सामने पेश नहीं किया है। वहीं विकास आयुक्त आमिर सुबहानी ने कहा कि स्वास्थ्य, शिक्षा, पेयजल, स्वच्छता, सडक़, प्रजनन दर एवं बिजली के क्षेत्र में अच्छी तरक्की हुई है उसे सूचकांक से हटा दिया गया है। हाल ही में सरकार ने नीति आयोग के समक्ष अपनी आपत्ति दर्ज करायी है। मंत्री सोमवार को पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि वर्ष २०२० में ११० सूचकांकों के आधार पर बिहार राज्य का दर्जा निर्धारण किया। इसमें बिहार का २८वां स्थान है। बिहार की प्रगति का दर राष्ट्रीय स्तर से बेहतर हो रहा है और दूसरी तरफ वार्षिक रैंक राज्य २८वें अर्थात पायदान पर रहे। यह विवेकपूर्ण विवेचना नहीं प्रतीत होती है। हमारी इस अवधारणा को बल मिलता है कि नीति आयोग के सूचकांक बिहार की प्रगति को सही रूप से दर्शा पाने में सफल नहीं रही है।

मंत्री ने बताया कि सतत विकास लक्ष्य का प्रथम गोल गरीबी को सभी रुप में सभी स्थलों से समाप्त करना है। बिहार में गरीबी दर में २००४-०५ के ५४ प्रतिशत से २०११ में ३३.७ रही है। इसके बाद आयोग के प्रास कोई आंकड़ा नही है, जबकि बिहार गरीबी उन्मूलन की दिशा में बेहतर काम किया है। बिहार में गरीबी दर में कमी लगभग २१.६ प्रतिशम अंक रही है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर श्ह कमी मात्र १२.५ प्रतिशत रही है। एसडीजी इंडिया इंडेक्स की रैंकिंग में इस बात का महत्व नहीं दिया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि बिहार तीव्र गति से विकास वाले राज्यों की श्रेणी में है। राज्य का आर्थिक विकास दर २०१६-१७ में १३.३ प्रतिशत, २०१७-१८ में ११.३ प्रतिशत, २०१८-१९ में १३.१ प्रतिशत तथा २०१९-२० में १५.४ प्रतिशत रही है। बिहार में वर्ष २००४-५ में गरीबी दर ५४.४ प्रतिशत थी जो घटकर वर्ष २०११-१२ में ३३.७ प्रतिशत रह गयी थी। २०१४-१५ से २०१९-२० की अवधि में राज्य में प्रति व्यक्ति विकास व्यय में १७.९ प्रतिशत की वार्शिक वार्षिक दर से वृद्घि हुई है। सतत विकास लक्ष्य का दूसरा लक्ष्य भूख मिटाने एवं कृषि की उत्पादकता से संबंधित है। वर्ष २०१९-२० में कृषि एवं संबद्घ प्रक्षेत्र का बिहार का ग्रौस स्टेट वैल्यू एडेड १८.७ प्रतिशत रहा है इसके बावजूद राज्य को शून्य अंक दिया गया।

विकास आयुक्त ने कहा कि शिक्षा की गुणवत्ता के लक्ष्य के लिए राज्य में अनेक सकारात्म कदम उठाये गये हैं। राज्य की साक्षरता दर २००१ में ४७ प्रतिशत थी जो १४.८ प्रतिशत की वृद्घि के साथ वर्ष २०११ में ६१.८ प्रतिशत हो गयी। इसी अवधि में महिला साक्षरता दर १७.९ प्रतिशत की वृद्घि हुई है। परंतु साक्षरता दर में वृद्घि को सूचकांक में शामिल नहीं किया गया है। स्वास्थय प्रक्षेत्र में राज्य में नवजात मृत्यु दर में वर्ष २०१५ से २०१८ के बीच १० अंकों की कमी आयी है। परंतु इसे एसडीजी दंडिया इंडेक्स में इसे शामिल नहीं किया गया है। १२ से २३ माह के बच्चों के पूर्ण टीकाकरण प्रतिशत के सूचकांक में राज्य में अच्छी प्रगति हो रही है। यह वर्ष २०१८ के सूचकांक में शामिल था, परंतु वर्ष २०१९-२० एवं वर्ष २०२०-२१ से हटा दिया गया है। नौवां गोल संख्श्या नौ उद्योग, नवाचार एवं संरचना निर्माण से संबंधित है।

इस गोल की उपलब्धि के लिए राज्य में महत्वाकांक्षी योजनाओं का क्रियान्वयन किया जा रहा है। प्रति लाख जनसंख्या पथों का घनत्व वर्ष २००३ में ९१ किलोमीटर था जो २०१७ में बढ़ कर १८१ किलोमीटर हो गया है। यह इस अवधि में १०० प्रतिशत की वृद्घि को दर्शाता है। वर्ष २०१५ में निर्मित ग्रामीण पथ ४८.७९४ किलोमीटर थे जो वर्ष २०१९ में ९२.२०४ किलोमीटर हो गये। सात निश्चय योजना अंतर्गत घर तक पक्की गली, नाली योजना अंतर्गत ३६०८४० घरों को आच्छादित करने के लक्ष्य के विरुद्घ २०१९ तक ३५७२३७ घरों का आच्छादन हो चुका था। २०१२-१३ से वर्ष २०१८-१९ तक ८९१ पुल बनाये गये हैं।

राज्य में पथ, पुल-पुलियों का जाल बिछाया गया है। अगर केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र कंपनी एवं निगमों को देखा जाये तो बिहार जैसे बड़े राज्य में इनकी संख्या नगण्य है जिससे राज्य में उत्पादन एवं रोजगार पर विपरित प्रभाव पड़ा है। विभिन्न प्रक्षेत्र के  केंद्रीय शोध संस्थानों की संख्या देखी जाये तो बिहार में केंद्रीय संस्थानों की संख्या भी बहुत कम है। जिसका विपरित प्रभाव यहां के मानव संसाधन पर पड़ा है।

श्री सुबहानी ने कहा कि सतत विकास लक्ष्य २०१५-३० के सूचकांक के लिए आधार वर्ष में नीति आयोग द्वारा प्रतिस्पर्धात्मक आधार पर राज्यों का दर्जा निर्धारण किया जा रहा है। एसडीजी का कार्यान्वयन वर्ष २०१५ से किया जा रहा है। न्यायोचित यह है कि वर्ष २०१५ के बाद के विकास आंकड़ों अथवा उपलब्धियों के आधार पर राज्यों का दर्जा निर्धारण के सूचकांक तैयार हो।

देश के राज्यों की भौगोलिक एवं सामाजिक परिस्थितियां विषम है। इसी के अनुसार लक्ष्यों का निर्धारण वर्ष २०१५ या निकटतम वर्ष के आंकड़ों को समीक्षा का आधार बनाया जाना चाहिए। सूचकांको के परिमार्जन करने की आवश्यकता है। यह भी आवश्यक है कि सूचकांको की निर्धारण कमेटी में विकासशील राज्यों का प्रतिनिधित्व होना चाहिए।