सम्पादकीय

नेपालमें राजनीतिक अस्थिरता


डा. गौरीशंकर राजहंस    

हालमें नेपालमें राजनीतिक अस्थिरता बहुत बढ़ गयी है। केपी शर्मा ओली जो हालतक नेपालके प्रधान मंत्री थे, उन्होंने नेपालको चीनकी गोदमें डाल दिया है। तराईके क्षेत्रमें जहां बिहार और उत्तर प्रदेश मूलके लोग अधिक रहते हैं, वहां ओलीका घौर विरोध हो रहा है और तराईकी जनता चाहती है कि ओलीकी जगह किसी औरको नेपालका प्रधान मंत्री बनाया जाय। नेपालकी राष्ट्रपति विद्यादेवी भंडारी ओलीके समर्थनमें है। उन्होंने दो बार ओलीको संसदमें अपना बहुमत साबित करनेका आदेश देकर उनकी मदद की है। परन्तु लगातार प्रयासके बावजूद भी ओली संसदमें अपना बहुमत साबित नहीं कर सके। इस बीच ओलीने मध्यरात्रिमें केबिनेटकी बैठक की और नेपालके राष्ट्रपतिसे अपनी सिफारिश की कि देशकी वर्तमान संसदको भंग कर दिया जाय और देशमें आगामी १२ तथा १९ नवम्बरको आम चुनाव कराये जायं।

ओलीके इस निर्णयसे नेपालमें तूफान आ गया है। वहां विपक्षी दलोंने मिलकर बहुमतका दावा किया है और मांग की है कि विपक्षके नेता देउबाको नेपालका प्रधान मंत्री बनाया जाय। परन्तु राष्ट्रपति विद्यादेवी इसे माननेको तैयार नहीं हैं। सभी जानते हैं कि उनका ओलीकी तरफ अधिक झुकाव है। नेपालकी हालत तो पहलेसे ही बहुत खराब थी, अब और खराब हो गयी है। वहां एक तरहसे हाहाकार मचा हुआ है। कोरोनासे निबटनेके लिए नेपालमें कोई प्रबंध नहीं है। न तो मरीजोंके लिए आक्सीजन है, न कोरोना वैक्सीन। लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि इस स्थितिसे कैसे निबटा जाय?

प्रत्यक्षदर्शियोंका कहना है कि वहां नदीके किनारे प्रतिदिन हजारों शवोंका अंतिम संस्कार किया जा रहा है। लोगोंको यह समझमें नहीं आ रहा है कि कोरोनासे कब और कैसे मुक्ति मिलेगी। प्रचण्डके नेतृत्वमें बन्दूककी नोकके बलपर नेपालसे राजशाहीको तो मिटा दिया गया। परन्तु जबसे राजशाहीका अन्त हुआ वहां तबसे ही नेपालमें  अराजकताके बादल मंडराते रहे हैं। पहले नेपालको हिन्दू राष्ट्रका जो दर्जा प्राप्त था वह समाप्त कर दिया गया है। उसकी जगह उसे संसदीय लोकतांत्रिक देशका दर्जा दिया गया। प्रत्यक्षदर्शियोंका कहना है कि इतनी बड़ी संख्यामें लोगोंने नेपालमें शवोंको जलते हुए कभी नहीं देखा था। ओलीकी सिफारिशपर राष्ट्रपतिने आगामी १२ और १९ नवम्बरको नेपालमें आम चुनाव करानेकी घोषणा की है। परन्तु सभी विपक्षी दलोंने इसका विरोध किया है और वह सरकारके इस निर्णयको नेपालकी सुप्रीम कोर्टमें ले जायंगे। पहले भी नेपालमें सरकारके निर्णयको सुप्रीम कोर्टने खारिज कर दिया था और संसदकी बहालीका निर्णय सुनाया था। सुप्रीम कोर्टका फैसला सबोंको मान्य होता है और संभव है कि सुप्रीम कोर्ट इस बार भी सरकारके फैसलेको उलटते हुए निर्णय दे कि पुरानी संसद फिरसे बहाल किया जा जाय।

नेपालकी स्थिति अत्यन्त ही दयनीय है। भारतसे भी अधिक वहां दवाई और कोरोना वैक्सीनका बहुत ज्यादा अभाव है। लोग कीड़े-मकोड़ोंकी तरह मर रहे हैं। सभीको इस बातका इन्तजार है कि कब कोरोना समाप्त होगा और कब फिरसे संसदकी बहाली होगी? नेपालके साथ भारतके संबंध सदियों पुराने हैं और वहांकी घटनाओंका सीधा असर भारतपर पड़ता है। भारतके नेपालके साथ सदियों पुराने सांस्कृतिक संबंध हैं। नेपालके साथ भारतके लोगोंके बेटी-रोटीके भी संबंध हैं। कई बार नेपालकी तत्कालीन सरकारोंने यह प्रयास किये कि नेपालके भारतके साथ संबंध तोड़ दिये जायं। परन्तु यह संभव नहीं हो पाया। कई बार नेपाली सरकारोंने यह प्रयास किये कि भारतसे आयात की जानेवाली कार, टैक्सी और ट्रक आदिपर रोक लगायी जाय और भारतीय वाहनोंके नेपालमें प्रवेशको भी रोक दिया जाय। परन्तु नेपालकी जनता इसके खिलाफ खड़ी हो गयी, खासकर तराईकी जनता। जहां भारतीय मूलके लोग खासकर बिहार और उत्तर प्रदेशसे आये हुए लोग सरकारके इस निर्णयके खिलाफ उठ खड़े हुए और सरकारने अन्तमें झुकना पड़ा और स्थिति यथावत बहाल करनी पड़ी।

नेपालकी सर्वोच्च अदालत क्या निर्णय लेगी इसपर नेपाल और नेपालके बाहर, खासकर भारतके लोगोंकी नजरें टिकी हुई हैं। परन्तु यदि कोई निर्णय ऐसा होता है जिससे चीनको मदद मिले और भारतके हितोंको ठेस पहुंचेगी तो नेपालकी जनता जो बहुतायतसे तराई क्षेत्रमें रहती है, वह इसे बर्दाश्त नहीं करेगी। कोरोनाकी वैक्सीनकी कमी भारत और भारतके सभी पड़ोसी देशोंमें भी है। परन्तु नेपालमें तो वैक्सीनका घोर अभाव है। कुल मिलाकर स्थिति यह बनती है कि ओली फिरसे नेपालको चीनकी गोदमें डालना चाहते हैं जिसका तराईकी जनता जो बहुमतमें ओलीके खिलाफ है, वह इसका घोर विरोध कर रही है। नेपाल वैसे भी गरीब देश है और अब जबकि वहां राजनीतिक अस्थिरता फैल गयी है। दुर्भाग्यवश नेपालकी स्थिति और बदतर हो जायगी। पड़ोसी देश, खासकर भारतके राजनेता सांस रोककर यह प्रतीक्षा कर रहे हैं कि नेपालमें व्याप्त राजनीतिक अस्थिरतासे नेपाल उभरता है अथवा नहीं?