सम्पादकीय

 समुद्री तूफानका कहर


निरंकार सिंह      

ताउतेके बाद चक्रवाती तूफान यासने दस्तक दिया। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीने बड़े पैमानेपर राहत और बचावकी टीमें पहलेसे लगा दी थीं और समुद्रके तटवर्ती क्षेत्रोंमें रहनेवाले लगभग १२ लाख लोगोंको वहांसे हटाकर सुरक्षित स्थानोंपर पहुंचा दिया गया। ‘यासÓ ने ओडिशाके तटवर्ती क्षेत्रोंमें बनी झोपडिय़ोंको पूरी तरह तबाह कर दिया। इसका असर ओडिशाके अलावा पश्चिम बंगाल, आन्ध्र प्रदेश, झारखंड और कुछ अंशोंमें बिहार और उत्तर प्रदेशपर भी पड़ा। इन राज्योंमें तेज हवाओंके कारण मौसम बदल गया। समुद्री तूफान उन कुदरती विपदाओंमेंसे एक है जिसे रोका तो नहीं जा सकता, लेकिन इसकी अग्रिम सूचना देकर समुद्रके तटवर्ती क्षेत्रोंमें जन-धनकी क्षतिसे काफी हदतक बचाव किया जा सकता है। यह तूफान क्यों आते हैं। इस बारेमें मौसम विज्ञानी बताते हैं कि जब गर्म क्षेत्रोंके समुद्रमें हवा गर्म होकर अत्यंत कम वायुदाबका क्षेत्र बना देती है तो संघननसे बादलोंका निर्माण करती हैं और फिर रिक्त स्थानको भरनेके लिए नम हवाएं तेजीके साथ नीचे जाकर ऊपर आती हैं। ऐसेमें तेज हवाओंके साथ मूसलाधार बारिश होती है। इससे पहले अम्फान, फानी जैसे चक्रवातोंने भी बहुत नुकसान पहुंचाया है। उससे भी पहले कटरीना, निवार, निसर्ग, हुदहुद, बुलबुल, हिकाका, लैरी, लीजा, कटरीना वगैरह। फिर ताउते और अब यास साइक्लोन। क्या आपने कभी यह सोचा है कि इन चक्रवाती तफानोंको नाम कैसे दिये जाते हैं? नामकरणकी इस व्यवस्थामें भविष्यमें आनेवाले तूफानोंके नाम भी तय कर लिये गये हैं। म्यांमारने ही ताउते तूफानको नाम दिया था और इसी देशने ताउतेके बाद आनेवाले तूफानको यास नाम दिया है।

मौसम वैज्ञानिकोंकी मानें तो इसके लिए बदलता मौसम जिम्मेदार है। लेकिन यह मौसम इतने खतरनाक रूपमें क्यों बदल रहा है। प्रशान्त महासागरमें पैदा हो रहे तापमानमें बदलावको मौसम वैज्ञानिकोंने ‘ला नीनाÓ का नाम दिया था। पायलिन सहित नारी और हईयान जैसे दूसरे तूफान भी प्रशान्त महासागरके तापमानमें उछालकी वजहसे ही उठे थे। अंडमानमें नम मौसम वजहसे इन तूफानमें काफी तेजी पैदा हुई। बंगालकी खाड़ीमें नम और गरम मौसमकी वजहसे तूफान चक्रवातका रूप धारण कर रहा है। मौसम वैज्ञानिकोंका कहना है कि प्रशान्त महासागरमें तापमानमें हो रहे बदलावसे भी इस तरहके तूफानोंमें तेजी आ रही है। भारतीय मौसम विभागके महानिदेशकके अनुसार प्रशान्त महासागरमें तापमानमें काफी बदलाव देखा जा रहा है। ऐसा पहले नहीं था। अमूमन जब भी प्रशान्त महासागरके तापमानमें बदलाव दर्ज होता था तो उससे तेज हवाएं उत्पन्न होती रही हैं। अब यह बदलाव काफी जल्दी-जल्दी देखे जा रहे हैं। भारतके पूर्वी तट और बंगलादेशमें बार-बार तूफान आते क्यों हैं? इस बारेमें नेशनल साइक्लॉन रिस्क मिटिगेशन प्रोजेक्टका कहना है कि उत्तरी हिन्द महासागरसे आनेवाले तूफान दुनियामें आनेवाले कुल तूफानोंका सिर्फ सात फीसदी ही होते हैं। लेकिन पश्चिम बंगाल और बंगलादेशके तटोंपर इन तूफानोंका असर सबसे ज्यादा गंभीर होता है।

मौसम विभागका मानना है कि समुद्र जल छिछला होनेसे भारतके पूर्वी तटपर लरहें ऊंची उठती हैं। लेकिन भारतका पश्चिमी तट पूर्वी तटकी तुलनामें शांत है। १८९१ से २००० के बीच भारतके पूर्वी तटपर ३०८ तूफान आये। इसी दौरान पश्चिमी तटपर सिर्फ ४८ तूफान आये। भारतके मौसम विभागके मुताबिक पश्चिम बंगालकी खाड़ीके ऊपर बननेवाले तूफान या तो बंगालकी खाड़ीके दक्षिण पूर्वमें बनते हैं या उत्तर पश्चिम प्रशांत सागरपर बननेवाले तूफानोंके अंश होते हैं जो हिन्द महासागरकी ओर बढ़ते हैं। उत्तर पश्चिम प्रशांत सागरपर बननेवाले तूफान वैश्विक औसतसे ज्यादा होते हैं इसलिए बंगालकी खाड़ीपर भी ज्यादा तूफान बनते हैं या बंगालकी खाड़ीपर बननेवाले तूफानोंके अंश होते हैं। क्योंकि बंगालकी खाड़ीपर बननेवाले तूफान जमीनसे टकरानेके बाद कमजोर पड़ जाते हैं इसलिए ऐसा कम ही होता है कि अरब सागरतक पहुंचे। इसके अलावा बंगालकी खाड़ीकी तुलनामें अरब सागर ठंडा है इसलिए इसपर ज्यादा तूफान नहीं बनते। ऊंची लहरोंके खतरेकी ओर मौसम विभाग मानता है कि तूफानसे तीन तरहके खतरे होते हैं। भारी बारिश तेज हवाएं और ऊंची लहरें। इन तीनोंमें भी सबसे खतरनाक ऊंची लहरें ही हैं और हाई टाइडके वक्त लहरें और ज्यादा उठती हैं। यह तब और खतरनाक हो जाती हैं जब समुद्रका तल छिछला होता है।

गुजरातके आसपासके पश्चिमी तटपर ऊंची लहरें उठनेका खतरा कम है। लेकिन पूर्वी तटपर हम जैसे-जैसे तमिलनाडुसे ऊपर आंध्र प्रदेश, ओडीशा और पश्चिम बंगालकी ओर बढ़ते हैं, यह खतरा बढ़ता जाता है। जब एक विशेष तीव्रताका तूफान भारतके पूर्वी तट और बंगलादेशसे टकराता है तो इससे जो लहरें उठती हैं वह दुनियामें किसी भी हिस्सेमें तूफानकी वजहसे उठनेवाली लहरोंके मुकाबले ऊंची होती हैं। इसके पीछे वजह है तटोंकी खास प्रकृति और समुद्रका छिछला तल। यह सही है कि ऊंची लहरें तबाही मचाती हैं लेकिन जनसंख्याके ज्यादा घनत्व और तूफानोंके प्रति लोगोंके जागरूक न होने या इनसे निबटनेमें सरकारोंकी कमजोर तैयारीसे मुसीबत और बड़ी हो जाती है। उड़ीसा और आन्ध्र प्रदेशके तटीय इलाकेमें पिछले दिनों आये समुद्री तूफान ‘फानीÓ ने भारी कहर बरपाया। आम तौरसे भारतमें तूफान आनेका महीना अप्रैलसे दिसम्बरके बीच होता है। इस दौरान ही सबसे ज्यादा जन-धन और फसलोंकी तबाही होती है। समुद्री तूफानोंकी तीव्रताको पांच श्रेणियोंमें बांटा गया है। पहली श्रेणीके तूफानोंमें हवाकी रफ्तार ९० से १२५ किमी प्रति घंटा, पेड़ों और फसलोंको कुछ नुकसान, घरोंको कोई नुकसान नहीं होता है। दूसरी श्रेणीके तूफानोंमें तबाही करनेवाली हवा १२५ से १६४ किमी प्रति घंटाकी रफ्तारसे चलती है। पेड़ों और फसलोंको अधिक नुकसान, बिजली ठप और घरोंपर असर पड़ता है। तीसरी श्रेणीके तूफानोंमें भारी तबाही करनेवाली हवाएं १६५ से २२४ किमी प्रति घंटेकी रफ्तारसे चलती है। इमारतोंको थोड़ा नुकसान, पशुओं और फसलोंपर बुरा प्रभाव पडता हे। चौथी श्रेणीके तूफानोंमें रास्तेकी कई चीजोंको अपने चपेटमें लेनेवाली २२५ से २७९ किमी प्रति घंटेकी रफ्तारसे चलनेवाली हवाएं चलती हैं। इसमें घरों और इमारतोंको नुकसान जान-मालकी हानि, बिजलीका ठप पड़ जाना शामिल है। पांचवी श्रेणीके तूफानोंमें सबसे ज्यादा नुकसान करनेवाली २८० किमी प्रति घंटेसे चलनेवाली तेज हवाएं चलती हैं, जिससे धन-जनकी भारी तबाही होती है। उड़ीसा और आन्ध्र प्रदेशमें आया तूफान तीसरी श्रेणीका बताया गया है। इसमें उड़ीसा और आन्ध्र प्रदेशके तटकी करीब २०० किमी घंटेकी रफ्तारसे विनाशकारी हवाएं आयीं और तटीय क्षेत्रोंमें भारी कहर ढाया। १९९९ में उड़ीसामें आये तूफानके कारण दस हजार लोगोंकी जानें गयी थी। पिछले १२४ सालोंमें उड़ीसामें सत्ताइस तूफान आ चुके हैं। अटलांटिक महासागरके तूफानोंको हरिकेन और हिन्द महासागरके तूफानोंको चक्रवात कहा जाता है।