पटना (विधि सं)। पटना हाईकोर्ट ने राज्य के कोविड अस्पतालों में ऑक्सीजन व दवाओं की आपूर्ति, लिक्विड ऑक्सीजन ढोने वाले टैंकर और सूबे में लोगों को मिलने वाले कोविड के टिके सम्बंधित अद्यतन आंकड़ों के विवरण की एक फेहरिस्त मुख्य सचिव से तलब किया है। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय करोल व न्यायमूर्ति एस कुमार की खण्डपीठ ने शिवानी कौशिक व अन्य की जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए उक्त निर्देश दी।
उक्त मामले पर अगली सुनवाई शुक्रवार को पूर्वाह्न साढ़े दस बजे होगी। कोरोना महामारी से निपटने में सरकारी व्यवस्था को लेकर एमिकस क्यूरी यानी न्याय मित्र मृग्यांक मौली की रिपोर्ट पी एम सी एच में ऑक्सीजन सिलेंडर व गैस की खपत में गंभीर हेराफेरी की ओर इशारा करती है। रिपोर्ट उक्त मामले में पूर्व में सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह व न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह की खण्डपीठ के विगत 29 अप्रेल के आदेश के आलोक समर्पित किया गया।
ऑक्सीजन सिलेंडर की कालाबाजारी की आशंका जताते हुए कोर्ट ने डॉ उमेश भदानी की तीन सदस्यीय एक्सपर्ट कमेटी और इस मामले में कोर्ट द्वारा नियुक्त हुए न्याय मित्र को कहा था कि पी एम सी एच का दौरा कर उक्त मामले में पड़ताल करें व वस्तुस्थिति से अवगत कराएं। न्याय मित्र एक्सपर्ट कमिटी के साथ पीएमसीएच का दौरा गत 1 मई को किया था। उस दिन वे पीएमसीएच में जाकर पटना के डीडीसी से मिले जो वहां ऑक्सीजन वितरण हेतु नोडल अफसर प्रतिनियुक्त थे। वहां एक्पर्ट कमिटी की सहायता से ये बातें स्पष्ट हुई। पीएमसीएच में मुख्यत: डी टाइप सिलेंडर का इस्तेमाल होता है, 7 हज़ार क्यूबिक लीटर (7 एमटी) गैस रहता है।
उक्त अस्पताल के विभिन्न वार्ड में कोविड सहित अन्य तमाम मरीज जिन्हें ऑक्सीजेंन की ज़रूरत थी, उनमें 99त्न नॉर्मल रेस्पिरेशन वाले मरीज थे, जिन्हें खून में नॉर्मल ऑक्सीजेंन की सचुरेशन स्तर पाने के लिए 5 लीटर/मिनट की दर से रोजाना लगभग एक सिलेंडर ऑक्सीजेंन की ज़रूरत होती है, यदि लगातार ऑक्सीजेंन सिलेंडर से ही सांस लेते रहें तब। एक फीसदी ही कोविड के गम्भीर मरीज ऐसे हैं जिन्हें अपने खून में नार्मल ऑक्सीजेंन लाने हेतु 15 लीटर/मिनट ऑक्सीजेंन की दर से रोजाना 3 सिलेंडर की ज़रूरत होती है। पीएमसीएच में उक्त नोडल ऑफ़सर व अन्य डॉक्टरों से आंकड़े इकट्ठे कर न्याय मित्र ने कुछ सनसनीखेज खुलासा किया।
एक दिन के चार्ट के मुताबिक वहां कोविड मरीजों की संख्या 127 थी। उनमें नॉर्मल रेस्पिरेटरी वाले मरीजों 125 (रोजाना 1 सिलेंडर) और 2 मरीज गम्भीर रेस्पिरेटरी (रोजाना 3-4 सिलेंडर वाले) थे। यानी 24 घण्टे में उन 127 मरीजों को ज़्यादा से ज़्यादा 150 सिलेंडर की ही ज़रूरत थी, लेकिन चार्ट के मुताबिक उनपर 348 सिलेंडर खपत हुए। कितना सिलेंडर किस मरीज पर खपत किया गया, इसका कोई रिकार्ड जाँच दल को प्रस्तुत नही किया गया।
सबसे अचरज की बात है कि एक दिन के चार्ट को तीन शिफ्ट में बांटा गया था। उन अलग-अलग शिफ्टों में खपत हुए, सिलेंडर की तादाद भर्ती हुए मरीजों की अनुपात में नही पाए गए डॉक्टरों की शिकायत थी कि अधिकांश सिलेंडरों में स्टैंडर्ड प्रेशर (150 केजी/स्क्वायर सेंटीमीटर) से कम (120-130 यूनिट) ही पाया गया था। ईएनटी (कान-नाक-गले) विभाग में 23 मरीजों पर 63 ऑक्सीजेंन सिलेंडर की खपत दर्शाई गई थी। टाटा वार्ड में 48 मरीजों के लिए जहां अधिकतम 50 सिलेंडरों की ज़रूरत थी वहां एक दिन में 143 सिलेंडर खर्च हो गए। ऑक्सीजन आपुर्ति करने वाले ठीकेदार कम्पनीयों की कोई सुचारू व्यवस्था नही है।
उपरोक्त आंकड़ों के साथ न्याय मित्र ने हाईकोर्ट से सिफारिश किया है कि पीएमसीएच में ऑक्सीजन ऑडिटिंग की व्यवस्था व एक स्वतंत्र निकाय से कराने की नितांत ज़रूरत है। अगर ऐसा नही हुआ तो हाईकोर्ट आदेश का सही अनुपालन नही हो पायेगा। गुरुवार को हुई सुनवाई में इस रिपोर्ट की जब चर्चा की गई तब चीफ जस्टिस की खण्डपीठ कहा कि अगली सुनवाई में कोर्ट उक्त रिपोर्ट सुनवाई करेगी।