पटना

पटना: रवियोग में नहाय-खाय के साथ आज से चैती छठ


सर्वार्थ सिद्धि योग में खरना कल, सायंकालीन अर्ध्य गुरुवार को 

पटना (आससे)। लोक आस्था के महापर्व चैती छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान आज चैत्र शुक्ल चतुर्थी मंगलवार को नहाय-खाय से शुरू हो रहा है। चैती छठ व्रत पूर्वांचल व उत्तर भारत के अलावा पूरे देश में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। यह महापर्व नवरात्रि की तर्ज पर साल में दो बार मनाया जाता है। हिन्दू पंचांग के मुताबिक चैत्र मास में प्रथम तथा कार्तिक मास में दूसरी बार छठ महापर्व बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश समेत पूरे भारत में मनाया जाता है।

छठ पूजा मुख्य रूप से प्रत्यक्ष देव भगवान भास्कर की उपासना का पर्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठ सूर्यदेव की बहन हैं। छठ पर्व में सूर्य की उपासना करने से छठी माता प्रसन्न होती है तथा परिवार में सुख, शांति व धन-धान्य से परिपूर्ण करती है। इस व्रत को करने वाले श्रद्धालु आज गंगा, पवित्र नदी, जलाशय या अपने घरों में गंगाजल मिलाकर स्नान, पूजा के बाद प्रसाद के रूप में अरवा चावल, सेंधा नमक से निर्मित चना की दाल, लौकी की सब्जी, आंवला की चटनी आदि ग्रहण कर चार दिवसीय इस अनुष्ठान का संकल्प लेंगी।

ग्रह-गोचरों का शुभ संयोग

भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद के सदस्य कर्मकांड विशेषज्ञ ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश झा ने कहा कि आज कृतिका नक्षत्र व प्रीति योग के अलावे रवियोग एवं अति पुण्यकारी सर्वार्थ सिद्धि योग के शुभ संयोग में नहाय-खाय के साथ चैती छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान शुरू हो रहा है। कल छह अप्रैल बुधवार को रोहिणी नक्षत्र के साथ आयुष्मान योग में व्रती पुरे दिन निराहार रह कर संध्या में खरना का पूजा कर प्रसाद ग्रहण करेंगी। खरना के पूजा के बाद व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जायेगा। चैत्र शुक्ल षष्ठी दिन गुरूवार को रवियोग में भगवान सूर्य को सायंकालीन अर्घ्य तथा शोभन योग में व्रती आठ अप्रैल शुक्रवार को प्रात:कालीन अर्घ्य देकर पुरे तप और निष्ठां के साथ इस महाव्रत को पूर्ण करेंगी।

प्रसाद ग्रहण से दूर होते कष्ट

पंडित झा के अनुसार छठ महापर्व के प्रथम दिन नहाय-खाय में लौकी की सब्जी, अरवा चावल, चने की दाल, आंवला की चासनी के सेवन का खास महत्व है। वैदिक मान्यता है कि इससे पुत्र की प्राप्ति होती है वहीं वैज्ञानिक मान्यता है कि गर्भाशय मजबूत होता है। खरना के प्रसाद में ईख के कच्चे रस, गुड़ के सेवन से त्वचा रोग, आँख की पीड़ा समाप्त हो जाते है। वही इसके प्रसाद से तेजस्विता, निरोगिता व बौद्धिक क्षमता में वृद्धि होती है।