पटना

पटना: 16 को नहाय-खाय से शुरू होगा चैती छठ का चतुर्दिवसीय अनुष्ठान


ग्रह-गोचरों के युग्म संयोग में पूरा होगा व्रत, बरसेगी छठी मैया की कृपा

पटना (आससे)। वर्ष में कुल दो छठ महापर्व होते है, जिसमें पहला चैत्र मास में एवं दूसरा कार्तिक मास में। साल का पहला लोक आस्था के महापर्व चैती छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान चैत्र शुक्ल चतुर्थी 16 अप्रैल शुक्रवार को नहाय-खाय से शुरू हो रहा है। छठ पूजा मुख्य रूप से प्रत्यक्ष देव भगवान भास्कर की उपासना का पर्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठ सूर्यदेव की बहन हैं। मान्यता है कि छठ पर्व में सूर्योपासना करने से छठ माता प्रसन्न होती है तथा परिवार में सुख, शांति व धन-धान्य से परिपूर्ण करती है।

ग्रह-गोचरों का शुभ संयोग

भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद के सदस्य कर्मकांड विशेषज्ञ ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश झा ने कहा कि 16 को रवियोग तथा सौभाग्य योग के युग्म संयोग में नहाय-खाय के साथ छठ महापर्व का चार दिवसीय अनुष्ठान शुरू होगा। 17 अप्रैल शनिवार को शोभन योग में खरना का पूजा होगा। 18 को रविवार दिन के साथ रवियोग में भगवान भास्कर को सायंकालीन अर्घ्य तथा सुकर्मा योग में व्रती प्रात:कालीन अर्घ्य देकर व्रत को पूर्ण करेंगे। यह पर्व पारिवारिक सुख समृद्धि और मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए व्रती पुरे विधि-विधान से छठ का व्रत करेंगी। इस पर्व को करने से रोग, शोक, भय आदि से मुक्ति मिलती है। छठ व्रत करने की परंपरा ऋग्वैदिक काल से ही चला आ रहा है।

आरोग्यता व संतान के लिए उत्तम

ज्योतिषी झा के अनुसार सूर्य षष्ठी का व्रत आरोग्यता, सौभाग्य व संतान के लिए किया जाता है। स्कंद पुराण के मुताबिक राजा प्रियव्रत ने भी यह व्रत रखा था। उन्हें कुष्ठ रोग हो गया था। भगवान भास्कर से इस रोग की मुक्ति के लिए उन्होंने छठ व्रत किया था। स्कंद पुराण में प्रतिहार षष्ठी के तौर पर इस व्रत की चर्चा है। वर्षकृत्यम में भी छठ की चर्चा है।

नहाय-खाय एवं खरना के प्रसाद से दूर होते कष्ट

पंडित झा के अनुसार छठ महापर्व के प्रथम दिन नहाय-खाय में लौकी की सब्जी, अरवा चावल, चने की दाल, आंवला की चासनी के सेवन का खास महत्व है। वैदिक मान्यता है कि इससे पुत्र की प्राप्ति होती है वहीं वैज्ञानिक मान्यता है कि गर्भाशय मजबूत होता है। खरना के प्रसाद में ईख के कच्चे रस, गुड़ के सेवन से त्वचा रोग, आँख की पीड़ा समाप्त हो जाते है। वही इसके प्रसाद से तेजस्विता, निरोगिता व बौद्धिक क्षमता में वृद्धि होती है।

स्वस्थ जीवन के लिए जरूरी है छठ

पटना के प्रमुख ज्योतिष विद्वान आचार्य राकेश झा ने कहा कि इस मौसम में शरीर में फॉस्फोरस की कमी होने के कारण शरीर में रोग (कफ, सर्दी, जुकाम) के लक्षण परिलक्षित होने लगते है। प्रकृति में फॉस्फोरस सबसे ज्यादा गुड़ में पाया जाता है। जिस दिन से छठ शुरू होता है उसी दिन से गुड़ वाले पदार्थ का सेवन शुरू हो जाता है, खरना में चीनी की जगह गुड़ का ही प्रयोग किया जाता है। इसके साथ ही ईख, गागर एवं अन्य मौसमी फल प्रसाद के रूप प्रयोग किया जाता है।

भास्कर को प्रिय है सप्तमी तिथि

पंडित झा ने बताया कि प्रत्यक्ष देव भगवान भास्कर को सप्तमी तिथि अत्यंत प्रिय है। विष्णु पुराण के अनुसार तिथियों के बंटवारे के समय सूर्य को सप्तमी तिथि प्रदान की गई। इसलिए उन्हें सप्तमी का स्वामी कहा जाता है। सूर्य भगवान अपने इस प्रिय तिथि पर पूजा से अभिष्ठ फल प्रदान करते हैं।

सूर्य के तेज में वायरस को नष्ट करने की है क्षमता

ज्योतिषी झा ने कहा कि चैती छठ के व्रती को भगवान भास्कर की उपासना से कोरोना जैसी महामारी के प्रकोप से लडऩे की क्षमता मिलेगी। क्योकि सूर्य की रौशनी से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है इससे व्रती को इस चार दिवसीय अनुष्ठान में उनका ज्यादा समय सूर्य की रौशनी में ही बीतेगा।

जैसे- गेहूं सूखने से लेकर प्रसाद आदि बनाने में। सूर्य के तेज में खतरनाक वायरस, विषाणु एवं हानिकारक जीवाणु को नष्ट करने की क्षमता विद्यमान है। मान्यता भी है कि छठ महापर्व के दौरान इनके तेज में कई गुना वृद्घि हो जाती है। इससे व्रती के साथ सभी श्रद्घालुओं को इस वैश्विक महामारी कोरोना से लडऩे का बल मिलेगा।