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पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ सिफर मामले में सुनवाई एक बार फिर टली


इस्लामाबाद। पाकिस्तान की एक विशेष अदालत ने शुक्रवार को पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ सिफर मामले में किसी सुनवाई बिना आगे की कार्यवाही को 14 नवंबर तक के लिए स्थगित कर दी।न्यायाधीश अबुल हसनत जुल्करनैन की अध्यक्षता वाली विशेष अदालत ने रावलपिंडी की अदियाला जेल में मुकदमे की सुनवाई की। इमरान खान 26 सितंबर से रावलपिंडी की अदियाला जेल में बंद हैं। उन्हें जिला जेल अटक से यहां स्थानांतरित किया गया था।

खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी ने एक बयान में कहा, “अदियाला जेल में सिफर मामले की सुनवाई बिना किसी कार्यवाही के मंगलवार 14 नवंबर तक के लिए स्थगित कर दी गई।” पिछले साल मार्च में वाशिंगटन में देश के दूतावास द्वारा भेजे गए एक गुप्त राजनयिक केबल (सिफर) का खुलासा करने के लिए उनके खिलाफ मामला दर्ज किए जाने के बाद 71 वर्षीय खान को इस साल अगस्त में गिरफ्तार किया गया था।

खान और कुरैशी को 23 अक्टूबर को ठहराया गया दोषी

खान के खिलाफ मुकदमा आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के तहत चलाया जा रहा है और अदालत ने आखिरी सुनवाई के दिन 7 नवंबर को गवाहों के बयान दर्ज किए। यह स्पष्ट नहीं है कि 10 में से कितने गवाहों ने अपना बयान दर्ज कराया है। पूर्व प्रधानमंत्री और उनके करीबी सहयोगी पूर्व विदेश मंत्री 67 वर्षीय शाह महमूद कुरैशी को 23 अक्टूबर को एक राजनयिक केबल को लीक करने और देश के गोपनीयता कानूनों का उल्लंघन करने के लिए दोषी ठहराया गया था।

संघीय जांच एजेंसी (एफआईए) ने मार्च 2022 में देश के वाशिंगटन दूतावास द्वारा भेजे गए दस्तावेज के मामले में सह-आरोपी खान और कुरैशी के खिलाफ मामला दर्ज किया। 31 अक्टूबर को विशेष अदालत ने 10 गवाहों में से किसी के भी बयान दर्ज किए बिना सिफर मामले की सुनवाई 7 नवंबर तक के लिए स्थगित कर दी।

अमेरिकी साजिश के तहत खान को हटाया गया!

पीटीआई अध्यक्ष इमरान खान ने अगस्त 2018 से अप्रैल 2022 तक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया, लेकिन उनपर एक कथा बनाने के लिए “सिफर की सामग्री का दुरुपयोग” करने का आरोप है। उनकी सरकार को अमेरिका द्वारा रची गई एक विदेशी साजिश के कारण हटा दिया गया था। हालांकि, वाशिंगटन द्वारा इस आरोप का खंडन किया गया। खान को 5 अगस्त को गिरफ्तार किया गया था।

इससे पहले, एफआईए ने 30 सितंबर को आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923 के तहत दोनों के खिलाफ अपना आरोप पत्र दायर किया था। आरोप पत्र के अनुसार, खान ने अवैध रूप से एक राजनयिक सिफर को अपने कब्जे में रखकर आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम का उल्लंघन किया था। उस समय कुरैशी पर खान को विदेश मंत्री के रूप में सुविधा देने का आरोप लगाया गया था।