सम्पादकीय

प्रत्येक आगतका करें स्वागत


विकेश कुमार बडोला
आंग्ल नववर्षपर मौसमके अनुरूप तो नवताका कोई बोध नहीं होता, परन्तु अरबों लोगोंकी भावनाओंके लिए यह नवीनता चर्चित तो बनी ही हुई है। इस वर्षकी शुरुआतसे ही हम सभी हमने अनमोल जीवनकी पहचान करना शुरू करें। जब हम अपनी जिन्दगीका वास्तविक मूल्य समझेंगे कि वह कितनी अनुपम है, तभी हम खुद और दूसरोंसे लगाव रखने योग्य होंगे। नववर्ष ऐसा ही स्वर्णिम अवसर है, जब हम केवल अंक-परिवर्तन परिपाटीके अनुसार नहीं, बल्कि मानवीय मंगलकामनाओंसे भरे वातावरण द्वारा प्राप्त समुत्साहके बलपर स्वयंसे जुड़ते हैं। इस अवसरपर अपने लिए नये विचारों, नयी संकल्पनाओं, सपनों और लक्ष्योंका निर्धारण करते समय हमें मानवीयता, सामाजिकताके उत्तरदायित्वोंको निभानेका प्रण भी लेना चाहिए। साथ ही उन लोगोंके लिए भी हमारे हृदयमें कृतज्ञता होनी चाहिए जो दुनिया, समाज और मानवजातिके उत्थानमें किसी न किसी प्रकार योगदान देनेके बाद अब हमारे साथ नहीं हैं। आज जब दुनिया औद्योगिक, भौतिक और वैज्ञानिक उन्नतिके नये-नये आयाम छू रही है और हम सभी इन उपलब्धियोंसे प्राप्त सुख-सुविधाओंके अत्यधिक भोगोंमें लिप्त हैं तब हमें थोड़ा रुककर एवं सचेत होकर अपने मूल स्वभाव, प्राकृतिक स्वरूपके बारेमें अवश्य सोचना चाहिए। क्योंकि भौतिक प्रगतिके फलस्वरूप अर्जित सुखों-सुविधाओंके समानांतर उत्पन्न नकारात्मक जलवायु परिवर्तनकी अनदेखी करते रहनेसे अभी नहीं तो निकट भविष्यमें मानवजातिके सम्मुख अस्तित्वका संकट अवश्य खड़ा होगा। गत वर्ष यह संकट कोरोनाके रूपमें हमारे सम्मुख था। पूरे २०२० में संपूर्ण जगतमें कोरोनाने हाकाकार मचाया। लाखों लोग इस महामारीमें असमय मारे गये। अब भी विश्व महामारीसे पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाया है। भविष्यमें मुक्त हो भी जायेगा तो आश्वस्त नहीं कि कोरोना जैसी ही कोई अन्य महामारी हमारे सामने खड़ी न हो। ब्रिटेनमें कोरोना विषाणुके नया स्ट्रेन मिलनेसे नयी महामारीकी हलचल भी दिख रही है। इन परिस्थितियोंपर अति गंभीरतापूर्वक विचार करते हुए दुनियाके देशोंको उन सभी विज्ञानजन्य प्रयोगोंको रोकनेकी पहल करनी ही होगी, जो दुनियामें कोरोना नामक महामारीका कारक बने हैं। यदि हम अब भी नहीं चेते तो हमारी भावी पीढ़ी प्राकृतिक विघटनोंसे बुरी तरह घिर जायेगी। इसलिए इस नववर्षमें प्रवेश करते समय हम जो उत्साह, उमंग और खुशियां समेटेंगे उन्हें दीर्घकालिक दायित्वोंमें बदलनेके लिए भी हमें कुछ संकल्प लेने होंगे।
प्राय: मनुष्यके अधिकांश सुख एवं आनन्द उसके व्यक्तिगत जीवनसे जुड़े होते हैं। व्यक्तिगत और पारिवारिक सुख तब ही मिल सकता है जब मनुष्य अपने परिवेशके सार्वजनिक दायित्वोंके प्रति सत्यनिष्ठा दिखाये। सार्वजनिक सुविधाएं, व्यवस्थाएं और अन्य उपक्रम हमें गर्व एवं आनन्दकी अनुभूतियोंसे तब भरेंगे जब इनका उपयोग नियमोंके अंतर्गत किया जायगा तथा जब इनकी साफ-सफाई, सुरक्षा और सदुपयोगके लिए हम हर समय तत्पर रहेंगे। एक अच्छा नागरिक और मनुष्य बननेके लिए हमें धन-संसाधनकी आवश्यकता नहीं। जीवनके बारेमें संवेदनशील होकर निरन्तर आत्मपरीक्षण करते रहनेसे हम अच्छे नागरिक एवं मनुष्य बन सकते हैं। ध्यानपूर्वक विचार करते हैं तो अनुभव होगा कि आज शहरों, नगरों और महानगरोंमें जितनी भी सार्वजनिक समस्याएं हैं उनके मूलमें अच्छे नागरिकोंकी कमी ही है। प्राकृतिक रूपमें प्रत्येक मनुष्य सांसारिक अच्छाई और बुराईके पैमानोंसे अलग अच्छा ही होता है। उसे अच्छा या बुरा बनानेका वातावरण परिवार, समाज और देश ही निर्मित करता है। अत: जो मनुष्य वयस्क हैं और दुर्भाग्यसे कुमार्गपर चल रहे हैं और जिनके कारण देश-समाजकी सार्वजनिक व्यवस्थाएं बिगड़ गयी या बिगड़ रही हैं उनको सुधारनेके प्रयास तो हो ही रहे हैं परन्तु हमें छोटे बच्चोंके लिए सन्मार्गकी सुदृढ़ लीक तैयार करनी होगी।
कोई देश या समाज अपनी सर्वश्रेष्ठ राजनीतिक, वैज्ञानिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक उपलब्धियां तभी प्राप्त करता है जब वह अपने शिशुओंकी समुचित देखभाल करते हुए उन्हें सन्मार्गकी ओर प्रशस्त करता है। नववर्षके माहौलमें प्राप्त उमंग-ऊर्जा-ऊष्मासे भरे प्रत्येक व्यक्ति और विशेषकर देशके कर्ताधर्ताओंको इस दिशामें नीतियां बनाकर उन्हें क्रियान्वित करना चाहिए। इस समय सूचनाओं और ज्ञानकी बातोंके लिए देशके लोग जिन माध्यमोंका अनुसरण करते हैं, उनका संचालन करनेवाले महानुभवोंको भी शिशुओंको अपनी कार्य-योजनाओंके केन्द्रमें रखकर अपने कार्यक्रम निर्धारित करने चाहिए। इस देशमें सभी लोगोंको दैनिक जीवनमें विभिन्न सरकारी और सामाजिक समस्याओंका सामना करना पड़ता है।
वर्षोंसे हम लोग इन समस्याओंसे पीडि़त-प्रताडि़त होते आये हैं परन्तु इनके उन्मूलनके लिए हम कोई बौद्धिक-शारीरिक और सामाजिक प्रयास नहीं करते। हममेंसे यदि कुछ लोग प्रयास करते भी हैं तो उन्हें हतोत्साहित करनेवाली बड़ी जनसंख्या सड़कसे लेकर सरकारी प्रतिष्ठानोंमें विराजमान रहती है। इस कारण समस्याओंके उन्मूलनमें कुछ लोगोंका विशिष्ट परिश्रम और अथक प्रयास सार्वजनिक सूचनामें नहीं आ पाता। ऐसे प्रयासकी न तो चर्चा होती है और न ही प्रशंसा। लेकिन पिछले दो-तीन वर्षोंसे भारत सरकारने समाज सेवा और सार्वजनिक सद्कार्योंके लिए पद्मश्री एवं पद्मविभूषण जैसे पुरस्कार जिन गुमनाम आम लोगोंको प्रदान किये हैं, वह अत्यंत सराहनीय शासकीय पहल है।
इस पहलसे सार्वजनिक जीवनमें वास्तवमें सहकारिता, परोपकार और जनकल्याणकी भावनाका विकास होता है। यदि अंग्रेजी कैलेंडरका नववर्ष जीवनमें सकारात्मक परिवर्तनों और नवीन संकल्पोंका आधार बनता है तो यह अच्छी बात है। जिस भी माध्यमसे व्यक्तिको जीवनमें नयी उमंगों, उत्सवों, तरंगों और आनन्ददायक अनुभवोंका आभास होता है, ऐसे प्रत्येक माध्यमका स्वागत है। जीवनका वास्तविक अर्थ आनन्द और उत्सव ही है। आधुनिक जीवन संतोषजनक आनन्दसे वंचित होता जा रहा है। इस स्थितिमें नये वर्षके अवसरपर व्यक्ति-व्यक्तिमें जो हर्षोल्लास एकत्र होता है, उसे गहरायीतक और लगातार महसूस किये जानेकी आवश्यकता है। भागती-दौड़ती जिन्दगीमें तनाव और कुंठाओंसे घिरे मनुष्यके लिए ऐसे अवसर वरदानसे कम नहीं। इसलिए प्रत्येक मनुष्यको जीवनके ऐसे अवसर स्वीकार करने चाहिए। इनमें जीवनकी खुशियोंके साथ व्यस्त रहना चाहिए और खुदको इन खुशियोंसे स्वस्थ करते हुए मानवताके प्रति समर्पित होनेकी दिशा ग्रहण करनी चाहिए। न्यू ईयर मनानेकी सार्वजनिक खुशी मनुष्यको भौतिक सुख दे या न दे, परन्तु यह खुशी सामूहिक जीवनको शांतचित्त हो महसूस करनेका माध्यम तो अवश्य बनती है।