सम्पादकीय

क्षणभंगुर जीवन


हरीश
नपी-तुली औपचारिक बातोंसे एक सूत आगे न बढऩे और बिना स्वार्थ कहीं निगाहें न डालनेके लिए मशहूर मित्र वर्माजीका फोन आया। अरसेसे मुलाकात नहीं हुई, मिलनेका बहुत मन है। आग्रहको टालना अशिष्टता थी। मैंने कहा, आपका स्वागत है। कल छुट्टी है, चले आइये। नियत समयपर सपत्नीक पधारे। खुफिया निगाहोंसे कमरेके आकारका मुआयना करते हुए उन्होंने पूछा, ‘कैसे हैं?Ó जवाबका इंतजार किये बिना उनकी श्रीमतीजीने दूसरा प्रश्न दाग दिया, ‘इन फ्लैटोंका क्या रेट चल रहा है आजकल? हालमें ब्याहे बेटेको जल्द ही खरीदना है।Ó मैंने उन्हें बताया कि इस बाबत मुझे न तो जानकारी है और न ही कोई उत्सुकता। दोनों खिन्न, खीझेसे लौट गये। नौकरी, शादी और गाड़ीके बाद युवाओंके दिलो-दिमागमें प्राय: एक ही एजेंडा हावी रहता है, कैसे भी जोड़-तोड़से किसी पॉश कॉलोनीमें दो या तीन बेडरूमवाला फ्लैट खरीदनेका। मोटी ईएमआईपर हासिल फ्लैट बरसोंतक रोजमर्राके बजटमें तनातनी और झिकझिकका कारण बनता है। इतना ही नहीं, यह उन सरोकारोंसे विचलित कर देता है जो सार्थक और सुकूनसे जीनेके लिए आवश्यक हैं। बेशक पारिवारिक परवरिशके लिए छत चाहिए, किंतु भव्य मकानकी सनकमें उन जीवन मूल्योंकी अनदेखी हो जाती है जो आध्यात्मिक संपन्नतामें बाधक बन जाते हैं। यह उचित नहीं। वैसे भी उम्र ढलनेपर मकानकी संवार दुष्कर होती है। मकानके प्रति आसक्ति या अहंकारको सिंचित करती मालामाल होनेकी चाहत अनेक व्यक्तियोंको तनावग्रस्त और बीमार बना रही है। चीनके महान दार्शनिक लाओत्सेके अनुसार, जब आप समझ लेंगे कि दुनियामें सब कुछ परिवर्तनशील और नश्वर है, आपकी आसक्ति छूट जायगी। अमेरिकामें बरसों मकान और दुकानके दिवास्वप्नमें जीने, डिनर पार्टियोंमें इसी मुद्देपर बतियाते रहनेके सोचके दुष्परिणामोंको डैनियल मैकजीनने अपनी लोकप्रिय पुस्तक ‘हाउस लस्टÓ में बखूबी दर्शाया है। इससे पहले कि मकानकी चाहत सुचारू चलते जीवनको बोझिल बना दे, युवावस्थामें आवासकी न्यूनतम आवश्यकता और समृद्धिपर पुनर्विचार आवश्यक है। उन बंगलोंकी दुर्गत देखें जहां रहनेवाले दो बुजुर्ग एक-एक कर दुनियासे चल बसे और उनके स्वामित्वके मामले कचहरीमें बरसोंसे घिसट रहे हैं और फिर घर वह परिसर नहीं जहां आप वक्त गुजारें, बल्कि वह स्थल है जहां लोग आपको समझते हैं। बुलंद दरवाजा, फतेहपुर सीकरीके मुख्यद्वारपर ईशूकी इबारत खुदी है, यह दुनिया एक पुल है, पार जानेके लिए, यहां मकान न बनायें। संदेश यह है कि इस क्षणभंगुर जीवनमें स्थायित्व तलाशने और संपत्ति जुटानेके बदले प्रार्थना और नेकीमें चित्त लगाये रखें।