सम्पादकीय

प्राणियोंके हृदयमें स्थित आत्मा


आर.एन. तिवारी

अर्जुनने चित्ररथसे संगीत विद्या सीखी। गान-विद्यामें अत्यंत निपुण और सभी गन्धर्वोंमें मुख्य होनेके कारण भगवानने चित्ररथको अपनी विभूति कहा है। मैं ही सभी सिद्ध पुरूषोंमें कपिल मुनि हूं। सिद्ध दो तरहके होते हैं- एक तो साधना करके सिद्ध बनते हैं और दूसरे जन्मजात सिद्ध होते हैं।

मुश्किलें हमेशा बेहतरीन लोगोंके हिस्सेमें आती हैं, क्योंकि वह लोग ही उन मुश्किलोंको बेहतरीन तरीकेसे अंजाम देनेकी ताकत रखते हैं। यह संसार एक सिनेमा है। सिनेमामें मुश्किल भूमिका श्रेष्ठ अभिनेताको ही दी जाती है। महाभारत युद्धमें अर्जुन मुख्य पात्र है, क्योंकि महाभारत जैसे मुश्किल युद्धकी बागडोर वह ही संभाल सकता है। जिज्ञासु अर्जुनको भगवानके प्रिय वचन बहुत विलक्षण लगते हैं, इसीलिए अर्जुन भगवान श्रीकृष्णसे प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि आप ऐसे अमृतमय वचन सुनाते जाय। श्रीभगवानुवाच-

हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या ह्यात्मविभूतय:।

प्राधान्यत: कुरुश्रेष्ठ नास्त्यन्तो विस्तरस्य मे॥

श्री भगवानने कहा, हे कुरु वंशमें श्रेष्ठ अर्जुन! अब मैं तुम्हारे लिए अपने अलौकिक विभूतियों और ऐश्वर्यपूर्ण रूपोंको संक्षेपमें ही कहूंगा, क्योंकि मेरे विस्तारकी तो कोई सीमा नहीं है। भगवान अनंत हैं, इसलिए उनकी विभूतियां भी अनंत हैं। भगवानकी विभूतियोंको न कोई विस्तारसे कह सकता और न ही कोई सुन सकता है, इसलिए भगवान कहते हैं कि मैं अपनी विभूतियोंको संक्षेप में ही कहूंगा।

अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थित:।

अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च॥

हे अर्जुन! मैं समस्त प्राणियोंके हृदयमें स्थित आत्मा हूं और मैं ही सभी प्राणियोंकी उत्पत्तिका, मैं ही सभी प्राणियोंके जीवनका और मैं ही सभी प्राणियोंकी मृत्युका कारण हूं। कहनेका तात्पर्य यह है कि सभी प्राणियोंके आदि, मध्य और अंतमें भगवान ही हैं।

आदित्यानामहं विष्णुज्र्योतिषां रविरंशुमान्ï।

मरीचिर्मरुतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी॥

मैं सभी आदित्योंमें विष्णु हूं। अदितिके जितने भी पुत्र हैं, उनमें विष्णु अर्थात् वामन मुख्य हैं। भगवानने ही वामन रूपमें अवतार लेकर दैत्य राज बलिकी सारी संपत्ति दानमें ले ली थी। मैं सभी ज्योतियोंमें प्रकाशमान सूर्य हूं। जितनी भी प्रकाशमान चीजें हैं, उनमें सूर्य मुख्य है। सूर्यके प्रकाशसे ही सभी प्रकाशमान होते हैं। मैं सभी मरुतोंमें मरीचि नामक वायु हूं और मैं ही सभी नक्षत्रों (अश्विनी, भरणी आदि सत्ताईस नक्षत्रों) में चंद्रमा हूं।

वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासव:।

इंद्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना॥

मैं सभी वेदोंमें सामवेद हूं। वेदोंकी जो ऋचाएं स्वरके साथ गायी जाती हैं उनका नाम सामवेद है। सामवेदमें भगवानकी स्तुतिका वर्णन है। इसलिए सामवेद भगवानकी विभूति है। भगवान कहते हैं, मैं सभी देवताओंमें स्वर्गका राजा इंद्र हूं, सभी इंद्रियोंमें मन हूं और सभी प्राणियोंमें चेतना स्वरूप जीवन-शक्ति हूं।

रुद्राणां शङ्करश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम्ï।

वसूनां पावकश्चास्मि मेरु: शिखरिणामहम्ï॥

मैं सभी रुद्रोंमें शिव हूं, मैं यक्षों तथा राक्षसोंमें धनका स्वामी कुबेर हूं, मैं सभी वसुओंमें अग्नि हूं और मैं ही सभी शिखरोंमें मेरु हूं। ग्यारह रुद्रोंमें शिवजी सबके अधिपति हैं। ये कल्याणप्रद और कल्याण स्वरूप हैं, इसलिए भगवानने इनको अपनी विभूति बताया।

पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम्ï ।

सेनानीनामहं स्कन्द: सरसामस्मि सागर:॥

हे पार्थ! सभी पुरोहितोंमें मुख्य बृहस्पति मुझे ही समझो, क्योंकि संसारके सभी पुरोहितोंमें और विद्या-बुद्धिमें बृहस्पति ही सर्व श्रेष्ठ हैं। मैं सभी सेनानायकोंमें कार्तिकेय हूं। कार्तिकेय शंकरजीके ज्येष्ठ पुत्र हैं इनके छह मुख और बारह हाथ हैं। ये देवताओंके प्रधान सेनापति हैं इसलिए भगवानने इनको अपनी विभूति बताया है। इस धरतीपर जितने भी जलाशय हैं, उनमें समुद्र सबसे बड़ा है, समुद्र सम्पूर्ण जलाशयोंका स्वामी है और अपनी मर्यादामें रहनेवाला तथा गंभीर है, इसलिए भगवानने कहा कि मैं ही सभी जलाशयोंमें समुद्र हूं।

महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम्ï।

यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालय:॥

भृगु, अत्रि, मरीचि आदि ऋषियोंमें भृगुजी भक्त, ज्ञानी और परम तेजस्वी हैं। इन्होंने ही ब्रह्मïा, विष्णु और महेश इन तीनोंकी परीक्षा लेकर भगवान विष्णुको श्रेष्ठ साबित किया था, भगवान विष्णु भी अपनी छातीपर इनके चरण चिह्नको भृगुलता नामसे धारण किये रहते हैं, इसीलिए भगवान कहते हैं- मैं महर्षियोंमें भृगु हूं। मैं सभी वाणीमें एक अक्षर (प्रणव) हूं। मैं सभी प्रकारके यज्ञोंमें जप (कीर्तन) यज्ञ हूं और मैं ही सभी स्थिर (अचल) रहने वालोंमें हिमालय पर्वत हूं।

अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारद:।

गन्धर्वाणां चित्ररथ: सिद्धानां कपिलो मुनि:॥

भगवान कहते हैं, हे अर्जुन! मैं सभी वृक्षोंमें पीपल हूं। पीपल एक बहुत ही सौम्य वृक्ष है। इसके नीचे हरेक पेड़ लग जाता है और यह पहाड़, दीवार, छत आदि कठोर जगहपर भी उत्पन्न हो जाता है। पीपल पेड़के पूजनकी बड़ी महिमा है। आयुर्वेदमें बहुतसे रोगोंका नाश करनेकी शक्ति पीपल वृक्षमें बतायी गयी है। इन सब दृष्टियोंसे भगवानने पीपलको अपनी विभूति बताया है। मैं सभी देवर्षियोंमें नारद हूं। देवर्षि भी कई हैं और नारद भी कई हैं परन्तु देवर्षि नारद एक ही हैं। ये भगवानके मनके अनुसार चलते हैं और भगवानको जैसी लीला करनी होती है, ये पहले ही वैसी भूमिका तैयार कर देते हैं। शायद इसीलिए नारदजीको भगवानका मन कहा जाता है। वाल्मीकि और व्यासजीको उपदेश देकर उनको रामायण और भागवत जैसे धर्म-ग्रन्थोंके लेखन-कार्यमें प्रवृत्त करानेवाले भी नारद जी ही हैं। नारदजीकी बातपर मनुष्य, देवता, असुर, नाग आदि सभी विश्वास करते हैं। सभी इनकी बात मानते हैं और इनसे सलाह लेते हैं। महाभारत आदि ग्रन्थोंमें इनके अनेक गुणोंका वर्णन किया गया है, इसीलिए भगवान नारदजीको अपनी विभूति कहते हैं।

मैं सभी गन्धर्वोंमें चित्ररथ हूं। स्वर्गके गायकोंको गंधर्व कहा जाता है और उन सभी गन्धर्वोंमें चित्ररथ मुख्य है। अर्जुनके साथ चित्ररथकी मित्रता रही है इनसे ही अर्जुनने संगीत विद्या सीखी थी। गान-विद्यामें अत्यंत निपुण और सभी गन्धर्वोंमें मुख्य होनेके कारण भगवानने चित्ररथको अपनी विभूति कहा है। मैं ही सभी सिद्ध पुरुषोंमें कपिल मुनि हूं। सिद्ध दो तरहके होते हैं- एक तो साधना करके सिद्ध बनते हैं और दूसरे जन्मजात सिद्ध होते हैं। कपिलमुनि जन्मजात सिद्ध हैं इनको आदिसिद्ध भी कहते हैं। ये कर्दम जीके यहां देवहूतिके गर्भसे प्रकट हुए थे। इन्हें सांख्य शास्त्रका आचार्य और सिद्धोंका अधीश्वर माना जाता है। इसलिए भगवानने इनको अपनी विभूति बताया है। इन सब विभूतियोंमें जो विलक्षणता दिखाई देती है वह मूल रूपसे भगवानका ही तत्व है। इसलिए सबकी स्तुति करते हुए भी हमारी दृष्टि भगवानमें ही रहनी चाहिए।