सम्पादकीय

विलक्षण मनीषी श्री सत्येन्द्र कुमार गुप्त


सुमन द्विवेदी

श्रद्धेय सत्येन्द्र कुमार गुप्तजीने हिन्दी पत्रकारिताको अद्यतन रूप प्रदान करनेके साथ हिन्दीके प्रचार-प्रसारमें महत्वपूर्ण योगदान किया है। आपके मातामह राष्ट्ररत्न श्री शिवप्रसाद गुप्त हिन्दीके अनन्य सेवक थे। श्रद्धेय सत्येन्द्र कुमार गुप्तजीको हिन्दी प्रेम विरासतमें प्राप्त हुआ। आपने विदेशोंमें उच्च शिक्षा प्राप्त की थी फिर भी आपमें भारतीय संस्कार मूर्तिमान थे। आप नये विचारोंका आदर करते थे किन्तु भारतीय मनीषाकी कसौटीपर कसकर ही ग्रहणीय मानते थे। आप हिन्दीको राष्ट्रीयताका प्रतीक मानते थे। जब भी कभी ऐसा अवसर उपस्थित होता और आपको अनुभव होता कि हिन्दीपर किसी प्रकारकी चोट पहुंचनेवाली है, आप सिंहकी भांति तन जाते और पूरी शक्तिके साथ उसका विरोध करते थे। निस्सन्देह श्रद्धेय सत्येन्द्र कुमार गुप्तजीने जो आदर्श प्रस्तुत किया है वह राष्ट्र सेवाके मार्गको सदा आलोकित करता रहेगा। परम श्रद्धेय गुप्तजीको कभी लहर बांध नहीं सकी और वह सभी प्रकारके वाद-विवादसे परे थे, ऐसे महापुरुषको जन्मदिनपर शत-शत नमन्ï।

हिन्दी पत्रकारिताके उन्नयनमें परम श्रद्धेय श्री सत्येन्द्र कुमार गुप्तका विशिष्ट योगदान रहा है। आपने हिन्दी पत्रकारिताके आदर्श और मूल्योंके संरक्षण एवं संवर्धनके साथ राष्ट्रीय नवचेतनाका प्रसार कर उसे नया आयाम दिया। प्रधान सम्पादकके रूपमें आपने ‘आज’ को नयी ऊंचाई प्रदान की। आप सही अर्थमें सच्चे पत्रकार थे। आप उन राजनीतिक और उद्योगपति पत्र संचालकोंसे पृथक थे जो अपसंचय अथवा सम्पत्तिके साधनके रूपमें समाचारपत्रका इस्तेमाल करते हैं। आपका विश्वास था कि दैनिक समाचारपत्रको समाज और राष्ट्रकी आवाजका शक्तिशाली माध्यम होना चाहिए। इस दिशामें आपने जो अभिनव कार्य किया, वह सदा स्मरणीय रहेगा। श्रद्धेय गुप्तजीने सन्ï १९४२ से सोलह वर्षोंतक ‘आज’ का संचालन कुशलतापूर्वक किया और उसके बाद सन् १९५९ में प्रधान सम्पादकका गुरुगम्भीर दायित्व वहन किया। यह ऐसा समय था जब स्वतन्त्रताके बाद राष्ट्रके पुनर्निर्माणकी समस्या सामने खड़ी थी। समाज रूढ़ीवाद, पिछड़ापन, निरक्षरता, दरिद्रता और अशिक्षा जैसी अनेक समस्याओंसे संत्रस्त था। समाचारपत्र भी परिवर्तनके दौरसे गुजर रहे थे। अब उनका स्वरूप वैसा नहीं रहा जैसा स्वतन्त्रतासंग्रामके साथ था। मिशनकी भावनाका लोप हो चुका था। व्यावसायिक मानसिकता और व्यावसायिक वास्तविकताने पत्रोंके स्वरूप और उद्देश्योंको ही बदल दिया था। उद्योग, व्यापार और राजनीतिका नया अर्थ नवीन शक्तिके रूपमें समाजको प्रभावित कर रहा था। ऐसे संक्रमण कालमें श्रद्धेय गुप्तजीने दूरदर्शिता, दृढ़संकल्प और अटूट निष्ठासे ‘आज’ की गौरवमयी परम्पराकी रक्षा करते हुए उसे नयी दिशा दी।

राष्ट्ररत्न श्री शिवप्रसाद गुप्तने सन् १९२० में जिन महान उद्देश्योंको लेकर ‘आज’ की स्थापना की थी, उनके लिए श्रद्धेय गुप्तकी प्रतिबद्धता अडिग थी। आपने संसाधनोंके भीषण संकटके बावजूद करवट बदलते युगके अनुरूप ‘आज’ को नया रूप और नया कलेवर दिया। एक ओर जहां समाचारपत्रोंको लाभ अर्जित करनेका माध्यम बनाया जा रहा था, वहीं आपने सबसे अलग हटकर पत्रको जनसेवा और राष्ट्रीय जागरणका माध्यम बनाये रखा। व्यावसायिक आग्रहके बढ़ते दबावमें सामाजिक दायित्वका निर्वाह कठिन हो गया था किन्तु देानोंके बीच सन्तुलन स्थापित कर आपने जो आदर्श प्रस्तुत किया वह अनुकरणीय है। पराधीन भारतमें स्थापित समाचारपत्रोंका मुख्य उद्देश्य विदेशी शासकोंको उखाड़ फेंकना था किन्तु स्वतन्त्रताप्राप्तिके बाद पत्रोंका उद्देश्य बदल गया था। ‘आज’ राष्ट्रके पुनर्निर्माण एवं गौरववर्धनके साथ जनहितको सर्वोपरि रखा,इसका श्रेय श्रद्धेय गुप्तजीको है। परिणामस्वरूप ‘आज’ का जो महत्व स्वतन्त्रताप्राप्तिसे पूर्व था, वह स्वतन्त्रताके बाद द्विगुणित हुआ। श्रद्धेय गुप्तजी ‘आज’ के माध्यमसे जनताके कष्टों और उनकी ज्वलन्त समस्याओंके प्रति सरकारका ध्यान आकृष्ट करते थे और उनके समाधानके लिए प्रेरित भी करते थे। पत्रमें प्रकाशित समाचारोंकी चर्चा प्राय: संसदमें होती थी। ‘आज’ में प्रकाशित समाचारोंके कारण ही जवाहरलाल नेहरूको पूर्वांचलके पिछड़ेपन और गरीबीकी स्थितिके अध्ययन एवं उसके निदानके लिए पटेल समितिका गठन करना पड़ा था। आपने अखबारी कागजके घनघोर संकटके दौरमें भी ‘आज’ का पृष्ठ विस्तार कर उसे नये भारतकी आवश्यकताके अनुरूप बनाया। पत्रमें देश-विदेशके समाचारको ही नहीं, सांस्कृतिक, साहित्यिक एवं लोकमंगलसे जुड़ी खबरोंको भी समान रूपसे महत्व दिया जाने लगा। अपने पत्रके माध्यमसे राष्ट्रके नवनिर्माणके प्रति समाजके नवचेतनाका संचार किया। आपने गांवोंकी लुप्त होती लोकसंस्कृतिके पुनर्रुद्धारका विशेष प्रयास किया। पत्रमें गांवोंके समाचारोंको अधिक स्थान दिया गया। इसके अतिरिक्त गांवोंकी चिट्ठी प्रकाशित होती थी जिसे सभी वर्गके पाठक रुचिसे पढ़ते थे।

समाचारोंकी विश्वसनीयता पत्रकी पूंजी होती है। यही सफलताकी कुंजी होती है जो समाचारपत्रोंकी सार्थकता सिद्ध करती है। श्रद्धेय गुप्तजीने कभी इससे समझौता नहीं किया। यही कारण था कि ‘आज’ का स्तर अंग्रेजीके उत्तम पत्रोंसे जरा भी कम नहीं था। आप वस्तुनिष्ठताकी कसौटीपर खरे उतरनेमें सतत, सजग एवं सक्रिय रहे। इसीसे ‘आज’ राष्ट्रका सर्वाधिक लोकप्रिय पत्र बना रहा। आपका मानना था कि लिखे हुए शब्द सत्यनिष्ठ होने चाहिए और यह निर्देश भी था कि सत्यका निरूपण करना व्यर्थ है किन्तु उसकी अभिव्यक्तिकी भी मर्यादा है जिनकी व्यंजना जन-कल्याणकारी भावनासे ही करनी चाहिए।

श्रद्धेय गुप्तजीने हिन्दी पत्रकारिताको अद्यतन रूप प्रदान करनेके साथ हिन्दीके प्रचार-प्रसारमें महत्वपूर्ण योगदान किया है। आपके मातामह राष्ट्ररत्न श्री शिवप्रसाद गुप्त हिन्दीके अनन्य सेवक थे। श्रद्धेय गुप्तजीको हिन्दी प्रेम विरासतके रूपमें प्राप्त हुआ था। आपने विदेशोंमें उच्च शिक्षा प्राप्त की थी फिर भी आपमें भारतीय संस्कार मूर्तिमान थे। आप नये विचारोंका आदर करते थे किन्तु भारतीय मनीषाकी कसौटीपर कसकर ही ग्रहणीय मानते थे। आप हिन्दीको राष्ट्रीयताका प्रतीक मानते थे। जब भी कभी ऐसा अवसर उपस्थित होता और आपको अनुभव होता कि हिन्दीपर किसी प्रकारकी चोट पहुंचनेवाली है, आप सिंहकी भांति तन जाते और पूरी शक्तिके साथ उसका विरोध करते थे। अप्रैल १९६९ की घटना प्रासंगिक है। तत्कालीन केन्द्र शिक्षामंत्री डा. वी.के. आर.वी. रावने एक समारोहमें हिन्दीके स्वरूपपर विचार व्यक्त किया। उनके अनुसार संविधानमें जिस हिन्दीको सम्पर्क भाषाके रूपमें निर्धारित किया गया, उसका अभिप्राय विशुद्ध हिन्दी नहीं, प्रत्युत मिली-जुली हिन्दी है। श्रद्धेय श्रीगुप्तजीने उक्त विचारको असंगत माना और आपने उसपर ‘आज’ में लिखा कि वस्तुत: केन्द्रीय शिक्षामंत्रीका यह कथन अत्यन्त भ्रामक है। भ्रामक इस अर्थमें कि संविधानमें हिन्दीको देशकी राजभाषा घोषित किया गया है। उसे केवल सम्पर्ककी भाषा कहना उसका असम्मान करना है। जिस भाषाका आरम्भसे राष्ट्रीय भाषाके  रूपमें विकास हुआ है, उसके स्वरूपके सम्बन्धमें नित्य एक नयी बात कहकर भ्रम नहीं फैलाया जाना चाहिए। उक्त तीखी टिप्पणी आपके हिन्दी प्रेमका नमूना है। ‘आज’ का रविवासरीय विशेषांक आपके हिन्दी प्रेम तथा सांस्कृतिक, साहित्यिक पत्रकारिताको प्रोत्साहनका साक्षी रहा है।

श्रद्धेय गुप्तजीका विराट व्यक्तित्व और विलक्षण कृतित्व था। असाधारण प्रतिभा और क्षमताके धनी राष्ट्ररत्न श्री शिवप्रसाद गुप्तने आपको अपना उत्तराधिकारी बनाया। उनकी धरोहरका संवहन सरल एवं सहज नहीं था। आपने न केवल उनको सहेजा अपितु संवर्धित भी किया। आप अपने सिद्धान्तोंपर अडिग रहे और जिस बातका औचित्य स्वीकार करते थे उसका दृढ़तासे प्रतिपादन करते थे। आपने पत्रकारिताकी पवित्र परम्पराको दूषित नहीं होने दिया एवं विवेकका सदैव समादर किया। आप निर्भीकताके साथ अपने विचार प्रस्तुत करते थे। पंडित जवाहरलाल नेहरूके साथ आपके घनिष्ठ पारिवारिक सम्बन्ध थे। इसके बावजूद उनकी कतिपय नीतियोंकी आलोचना करनेसे नहीं हिचकते थे। आपकी विचारधारा मूलत: राष्ट्रवादी थी। बीसवीं सदीके छठें दशकके पूर्वार्धमें समाजवादकी जो लहर चली उसने राष्ट्रीय राजनीतिको प्रभावित किया। राजनीतिक द्वन्द्वोंके इस झंझावातमें आपने अपने राजनीतिक लेखमें उसी मार्गपर चलनेकी सलाह दी, जिससे राष्ट्रकी सर्वांगीण उन्नति हो।

वामपंथ एवं दक्षिणपंथके बजाय आप मध्यमार्गके अनुगमनके पक्षधर थे। ‘आज’ का प्रत्येक अंक अपने सम्पादकके व्यक्तित्वकी उद्घोषणा करता था। दूर-दूरतक फैले लाखों पाठकों तक ‘आज’ के ताजा समाचार तथा नयी-नयी जानकारियां शीघ्रताशीघ्र पहुंचानेके लिए श्रद्धेय गुप्तजीने आधुनिक मुद्रण यन्त्र स्थापित किये। राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय समाचारोंके साथ राजनीतिक सिंहावलोकन, विभिन्न विषयोंके लेख तथा अन्य पठनीय सामग्रीके प्रकाशनकी व्यवस्था की गयी। प्रत्येक सप्ताह ‘जनताका न्यायालय’ के स्तम्भके अन्तर्गत ज्वलन्त प्रश्नोंके बारेमें पाठकोंकी राय एवं सुझाव प्रकाशित किये जाते थे। कार्टूनके नियमित प्रकाशनका प्रबन्ध किया गया। विशेष अवसरोंके लिए ‘विशेषांक’ की श्रृंखला शुरू की गयी। कार्टूनका नियमित प्रकाशन पाठकोंके लिए आकर्षण एवं कौतूहलका विषय ही बन गया था। पाठकोंकी रुचिके अनुसार पत्रमें उपयोगी एवं ज्ञानवर्धक सामग्रीके प्रकाशनका प्रबन्धन किया गया। अनेकों समीकरणोंसे ‘आज’ सर्वाधिक लोकप्रिय बन गया। निस्सन्देह श्रद्धेय गुप्तजीने जो आदर्श प्रस्तुत किया है वह राष्ट्र सेवाके मार्गको सदा आलोकित करता रहेगा। परम श्रद्धेय गुप्तजीको कभी लहर बांध नहीं सकी और वह सभी प्रकारके वाद-विवादसे परे थे, ऐसे महापुरुषको उनके जन्मदिनपर शत-शत नमन्ï।